कुछ वर्ष पहले पत्रकार रामशरण जोशी नें हंस में दो किश्तों में लेख लिखा था. उसमें उन्होंनें लिखा था कि आपतकाल में दो माह के लिए वे बस्तर आये थे. वहां रहकर अपने आई.पी.एस.मित्र की कृपा से बस्तर की बालाओं के साथ उन्होंनें खुलकर दैहिक शोषण का खेल ख्ोला. जुगुप्ता उपजाने वाला अमर्यादित लंबा वृतांत दो किश्तों में छपा. उन्होंनें लिखा कि छत्तीसगढ में पदस्थ दीगर प्रांत के अफसर अपनी बीबी लेकर छत्तीसगढ में नहीं आते क्योंकि यहॉं औरतें आसानी से उपलब्ध रहती हैं.
उन्होंनें यह भी लिखा कि जो अफसर बीबी लेकर छत्तीसगढ आता है उसे बेवकूफ समझा जाता है. हंस में छपे उस आलेख पर मैनें तुरंत प्रतिवाद किया. हंस संपादक राजेन्द्र यादव नें अगले अंक में लेखमाला के प्रकाशन के लिए माफी मांग ली. और किस्सा खत्म हो गया. मगर इस प्रकरण से यह तो जाहिर ही हो गया कि छत्तीसगढ़ और विशेषकर छत्तीसगढ़ी को कितनी हिकारत से तथाकथित सभ्य दुनिंया देखती है.
डॉ.परदेशीराम वर्मा जी के एक लेख का अंश. (छत्तीसगढ़ आसपास से साभार)
रामशरण जोशी से संबंधित एक और पोस्ट पढ़ें - अपने करीबी देह संबंधों की कथा क्या सार्वजनिक की जानी चाहिए ?
शर्मनाक.
जवाब देंहटाएंरामशरण जोशी द्वारा इसे लिखा जाना भी सही नहीं था और हंस ने इसे छाप कर तो अपराध किया था।
जवाब देंहटाएंयह भी शोषण का एक रुप है जिस में बंद समाज के लोग खुले समाज के लोगों का शोषण करते हैं सिर्फ इस लिए कि एक आर्थिक रूप से सक्षम और दूसरे कमजोर हैं।
मगर इस प्रकरण से यह तो जाहिर ही हो गया कि छत्तीसगढ़ और विशेषकर छत्तीसगढ़ी को कितनी हिकारत से तथाकथित सभ्य दुनिंया देखती है. >>>
जवाब देंहटाएंऔर यह तथाकथित सभयसमाज भी हिकारत का पात्र है! नाली के कीड़े!
patrkarta ke daroga logo kaha ho,ek aur babhan fansa jaal me .suru ho jao.
जवाब देंहटाएंतीव्र भर्त्सनीय
जवाब देंहटाएंअभी एक पोस्ट पर राज्यपाल के द्वारा छत्तीसगढ़ी में भाषण की मिसाल पढ़ कर आ रहा हूं और अब यहां छत्तीसगढ़ का दूसरा रूप देख रहा हूं। निंदनीय।
जवाब देंहटाएंAFSOSNAAK.
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
उस समय वाकई इस लेख पर विवाद हुआ था वर्मा जी और अन्य साहित्यकारो ने इस का विरोध भी किया था । लेकिन क्या करें कोई आदत से बाज न आये तो ।
जवाब देंहटाएंaapne badi himmat se likha hai...
जवाब देंहटाएं