सुबह से ही आरंभ हो जाने वाले नवतपा के भीषण गर्मी का जायका लेने के लिए आज मैं अपने घर के चाहरदीवारी में चहलकदमी कर रहा था जहां कुछ फूल, आम और फलों से भरपूर अमरूद के पेड हैं। वैसे ही मुझे ध्यान आया कि यहां लगे कुछ पेडों में से आम के एक पेड पर दो आम भी फले हैं। मैंनें आम के दस फुटिये पेंड पर नजरें घुमाई तो देखा दो बडे आम महोदय पेंड में लटके मुस्कुरा रहे थे। हमने उन्हें कैमरे में कैद कर लिया, कैमरे की फ्लैश चमकते देखकर बाजू वाले पंडित जी नें पूछ ही लिया कि आम में क्या खास है जो फोटो खींच रहे हो ?
दरअसल इस आम में खास बात यह थी कि इस बैगनपली आम को हमने सात साल पहले कम्पनी से अलाटेड 'हाउस' में लगाया था, और पिछले चार साल से इसके फलने की राह देख रहे थे। सात साल बाद जब इसमें बौर आया और जब यह मेरी श्रीमती के नजरों में आया तो वह क्षण उसके लिए खास ही था। मुझे याद है पिछले मार्च में उसने इसे देखने के तुरंत बाद मुझे फोन किया था, मैं उस समय कार्यालयीन आवश्यक मीटिंग में, मीटिंग हाल में था और मेरा मोबाईल बाहर मेरे एक सहायक के हाथ में था, फोन में उधर से मैडम कह रही थी कि आवश्यक है बात कराओ तो सेवक मीटिंग हाल में लाकर फोन मुझे दिया, मैंनें झुंझलाते हुए पूछा था कि क्या आवश्यक काम है, श्रीमती जी ने कहा कि हमारे आम में दो बौर आया है .....। मीटिंग में फोन सुनकर अपने चेहरे को मैं संयत कर रहा था पर साथ बैठे लोग उसे खुली किताब की भांति पढ लेना चाह रहे थे। मैंनें फोन बंद कर जेब में रखा तो सभी समवेत स्वर में पूछने लगे कि क्या हुआ। और जब मैनें इस आवश्यक समाचार को वहां सुनाया तो सभी हंस पडे थे। मीटिंग में ऐसी बातें आम नहीं होती कहते और झेंपते हुए मैंनें बात खत्म कर दी पर यह चर्चा कई दिनों तक आम रहा।
दो बौरों में छोटे छोटे कई आम के फल लगे किन्तु दो को छोड बाकी सब झड गये, अब घर के इन दोनों आम के पकने का इंतजार है, बचपन में गांव में ऐसे बीसियों आमों की अमरैया में भरी दोपहरी पके आम के टपकने का इंतजार करते गुजरे कई कई दिन अब लद गये हैं। भाग दौड और काम ही काम से भरे शहरी जिन्दगी में हम अपने घर के पेड में फले कुल जमा दो आम से अत्यंत संतुष्ट और प्रसन्न हैं जिसकी कीमत पैसों में दस रूपये से ज्यादा नहीं है।
संजीव तिवारी
अजी! इस का नाम ही आम है, वर्ना ये खास है।
जवाब देंहटाएंइनकी कीमत तो वो ही जान सकता है,जिसने पेड लगाकर उसकी बच्चों की तरह परवरिश की होगी.
जवाब देंहटाएंदो आम पर एक पोस्ट ठेली। हम तो प्रति आम एक पोस्ट कम से कम ठेलते!
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट!
आपके खास आम को एक आम आदमी का सलाम
जवाब देंहटाएंसंजीव, दानेश्वर शर्मा जी के पास गर्मी का एक ऐसा शानदार गीत है जिसे सुनकर गर्मी भी अच्छी लगने लगती है इससे पहले कि आम खाने और पीने(?) का मज़ा खत्म हो जाये उनसे लेकर ब्लोग पर दो.चाहो तो उनकी खनकती आवाज़ मे ले लो
जवाब देंहटाएंअमराईयों की बात अब याद बन कर रह गई है। वैसे आम की बात खास ही होती है।
जवाब देंहटाएंआपके 'हाउस' में लगे आम को देखकर हमें भी लालच आ गया, वैसे आम मुझे बहुत पसंद है । हमारे घर में इसका पेड़ तो नहीं है मगर हमारे अरजुन्दा के नर्सरी में यह बहुत फलता है इसका ठेका हमारे एक पुराने मित्र के पास ही है जिसके पास से अलग-अलग वैरायटी के आम खरीदकर हम अपने इस लालच को पूरा जरूर करते है ।
जवाब देंहटाएंआपके आमा के भाखा बने लागीस ....महु ला आमा के फ़ुलवारी के सुरता आगे !!
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