विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
हैलो.... हैलो..... हॉं क्या हुआ ?, कहॉं का ..... बारसूर फीडर का ? ..... अरे बाप रे .....
बातें लम्बी चलती रही बीच बीच में कई कई बार फोन कटा और बातें चलती रही कि कहां कहां का लाईन ध्वस्त हुआ । एयर कंडीशन्ड रेस्तरॉं में भी पसीने से भर भर जा रहे माथे को एक अंगुली से बार बार पोंछते हुए वह अपने दोनों मोबाईलों से अपने मातहतों को निर्देश देता रहा एवं उधर से प्राप्त जवाबों से बार बार झुंझलाता रहा ।
'क्या हुआ साहब' मैंनें पूछा । यद्यपि फोन में हो रहे चर्चा के अनुसार मुझे बाकया सब समझ में आ गया था ।
'फिर उडा दिये यार बिजली टावर को ....' उसने बदहवासी के साथ कहा ।
मैनें पानी का गिलास उनकी ओर बढाते हुए उन्हें संयत रहने का निरर्थक सलाह दिया । वे उठने लगे ।
'सर खाना लग रहा है ।'
'नहीं भाई सब मूड खराब हो गया' उसने उठते हुए कहा और अपने साथ आये चार कर्मचारियों को भी चलने को कहा । मेरे खाने पर अनुनय नें उन्हें रोक लिया ।
'सर पिछली बार भी तो उडा दिये थे ना इन लोगों नें टावर को .... ब्लैक आउट ........ बस्तर ।' मैनें बात को कुछ सामान्य करने के उम्मीद से कहा ।
'हां यार कुछ वैसा ही बडा लफडा हुआ है ।' साहब नें कहा ।
'क्या मिलता होगा सर इन्हें बिजली टावरों को उडा कर ?' मैनें पूछा ।
'पिछली बार पांच करोड रूपये खर्च हुए थे, बिजली को पुन: बहाल करने में .... ' साहब नें बताया ।
'हॉं वो तो हुआ ही होगा ... पर इससे इन्हें क्या, सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुचाना आजकल विरोध का अच्छा माध्यम है ।' मैनें कहा ।
' यही तो तो मूल है बाबू, जानते हो पिछली बार जो बिजली की बहाली में पैसे खर्च हुए वे यदि अन्य इलाके में खर्च होता तो कितना होता ? .... ज्यादा से ज्यादा दो करोड ठेकेदारों के अधिकतम लाभ सहित ।'
'तो तीन करोड ? ..... ' मेरे आंखों में प्रश्न थे ।
' हॉं ये तीन करोड उन्हें ही गये, ठेकेदारों के माध्यम से ।'
मैंनें पनीर चिल्ली का प्लेट उनकी ओर सरकाया और चटनी अपनी ओर खींच लिया
बातें लम्बी चलती रही बीच बीच में कई कई बार फोन कटा और बातें चलती रही कि कहां कहां का लाईन ध्वस्त हुआ । एयर कंडीशन्ड रेस्तरॉं में भी पसीने से भर भर जा रहे माथे को एक अंगुली से बार बार पोंछते हुए वह अपने दोनों मोबाईलों से अपने मातहतों को निर्देश देता रहा एवं उधर से प्राप्त जवाबों से बार बार झुंझलाता रहा ।
'क्या हुआ साहब' मैंनें पूछा । यद्यपि फोन में हो रहे चर्चा के अनुसार मुझे बाकया सब समझ में आ गया था ।
'फिर उडा दिये यार बिजली टावर को ....' उसने बदहवासी के साथ कहा ।
मैनें पानी का गिलास उनकी ओर बढाते हुए उन्हें संयत रहने का निरर्थक सलाह दिया । वे उठने लगे ।
'सर खाना लग रहा है ।'
'नहीं भाई सब मूड खराब हो गया' उसने उठते हुए कहा और अपने साथ आये चार कर्मचारियों को भी चलने को कहा । मेरे खाने पर अनुनय नें उन्हें रोक लिया ।
'सर पिछली बार भी तो उडा दिये थे ना इन लोगों नें टावर को .... ब्लैक आउट ........ बस्तर ।' मैनें बात को कुछ सामान्य करने के उम्मीद से कहा ।
'हां यार कुछ वैसा ही बडा लफडा हुआ है ।' साहब नें कहा ।
'क्या मिलता होगा सर इन्हें बिजली टावरों को उडा कर ?' मैनें पूछा ।
'पिछली बार पांच करोड रूपये खर्च हुए थे, बिजली को पुन: बहाल करने में .... ' साहब नें बताया ।
'हॉं वो तो हुआ ही होगा ... पर इससे इन्हें क्या, सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुचाना आजकल विरोध का अच्छा माध्यम है ।' मैनें कहा ।
' यही तो तो मूल है बाबू, जानते हो पिछली बार जो बिजली की बहाली में पैसे खर्च हुए वे यदि अन्य इलाके में खर्च होता तो कितना होता ? .... ज्यादा से ज्यादा दो करोड ठेकेदारों के अधिकतम लाभ सहित ।'
'तो तीन करोड ? ..... ' मेरे आंखों में प्रश्न थे ।
' हॉं ये तीन करोड उन्हें ही गये, ठेकेदारों के माध्यम से ।'
मैंनें पनीर चिल्ली का प्लेट उनकी ओर सरकाया और चटनी अपनी ओर खींच लिया
छत्तीसगढ़ के हालत वाकई चिंताजनक हैं....
जवाब देंहटाएंतो आपने सिर्फ़ चटनी खाई ऐसा क्यो?? हा हा हा
जवाब देंहटाएंबाकि तो आपने बिना कुछ कहे बहूत कुछ कह दिया
सच, इतना बेबस हो जाता है इन्सान कि बस चटनी ही खाई जा सकती है. हालात चिन्ताजनक हैं छत्तीसगढ़ के. कब थमेगा यह.
जवाब देंहटाएंतिवारी जी
जवाब देंहटाएंअच्छी कलम घसीटी है आपने।