जस्टिस जगदीश भल्ला : छत्तीसगढ के बासी मे उबाल सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

जस्टिस जगदीश भल्ला : छत्तीसगढ के बासी मे उबाल

छत्तीसगढ समाचार के २७ अप्रेल के अंक में शुभ्राशु चौधरी ने एक सार्गर्भित व जन मानस को झकझोर देने वाला आलेख लिखा है “क्या छत्तीसगढ दोयम दर्जे का राज्य है” उसी के अंश व दूसरे साईट के जुगाड खोज कर छत्तीसगढ के सुधियो के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं, छत्तीसगढ समाचार सांध्य दैनिक होने के कारण सबेरे के अखबार से कम पढा जाता है जिसके कारण इतना गम्भीर लेख सब के सम्मुख प्रस्तुत करने के उद्देश्य से हम इसे इस चिठ्ठे मे पेश कर रहें हैं

छत्तीसगढ उच्च न्यायालय में एक नये न्यायाधीश की नियुक्ति से बहुत सारे सवाल उठ खडे हुए हैं क्योंकि इस न्यायाधीश को लेकर पहले से काफी विवाद चल रहे थे औरा उन विवादों को वजन इस बात से आंका जा सकता है कि इस न्यायाधीश को पदोन्नति देने की फाईल राष्ट्रपति नें वापस कर दी थी । वे इस पदोन्नति से सहमत नही थे । लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में इन प्रशासनिक कार्यों के लिए जो कमेटी है उसने राष्ट्रपति की आपत्ति से असहमति जताते हुए फिर से इस जज का नाम भेजा है - शुभ्राशु चौधरी का आलेख प्रस्तुत करते हुए सांध्य दैनिक छत्तीसगढ, रायपुर नें लिखा है । सम्पुर्ण लेख छत्तीसगढ समाचार के २७ अप्रेल के अंक में देखा जा सकता है “क्या छत्तीसगढ दोयम दर्जे का राज्य है - शुभ्राशु चौधरी”

ज्ञात हो कि शुभ्राशु चौधरी बी बी सी के पूर्व पत्रकार एवं छत्तीसगढ के एकमात्र अंतरजाल सिटिजन जर्नलिस्ट के प्रयोगधर्मी साईट http://www.cgnet.in/ से जुडे हैं । सीजी नेट मे अनूप साहा के साईट का लेख है

शुभ्राशु चौधरी नें लिखा है “इन दिनों केरल और दिल्ली में छत्तीसगढ की बडी चर्चा है पर आश्चर्य की बात यह है कि जिस छत्तीसगढ को लेकर चर्चा जोरों पर है वह स्वयं खामोश है . . .”

किस्सा है लखनउ उच्च न्यायालय बेंच के न्यायाधीश जगदीश भल्ला का ।

क्या हैं चर्चा -
१. २१ जुलाई २००३ को जस्टिस भल्ला की पत्नी श्रीमती रेणु भल्ला नें नोएडा में ५ लाख रूपये में एक प्लाट खरीदा जिसका बाजार भाव ७.२ करोड रूपये था ।

२. दिल्ली के समीप दादरी में जहां रिलायंस एनर्जी का प्लांट लगने वाला है जिसके विरूद्ध रैली, घरना, प्रदर्शन पूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में किया जाना था. इस कार्य को रोकने हेतु रिलायंस एनर्जी के दवारा कार्यालयीन समय के बाद लखनउ बेंच में ७ जुलाई को गैर तारांकित मामले की सुनवाई एक जज के घर में हुई जबकि वह मामला लखनउ बेंच की अधिकारिता में नही आता । देर रात हुए फैसले के जोर पर ही पुलिस नें प्रदर्शनकारी किसानों पर जमकर लाठियां भांजी, वी पी सिंह को भी सभा स्थल पर पहुंचने नही दिया गया । उक्त दमनकारी फैसले में रिलायंस एनर्जी के वकील आरोही भल्ला नें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और वकील आरोही भल्ला जस्टिस जगदीश भल्ला के पुत्र हैं ।

३. जुलाई ०५ में ग्रेटर नोएडा में भू आबंटन की लाटरी में जस्टिस जगदीश भल्ला के बेटे आरोही भल्ला के नाम आबंटन एवं उसके उपरांत उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के उक्त आबंटन पर रोक लगाने के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय नें खारिज कर दिया इस पर भी विवाद हैं जबकि इस आबंटन एवं प्रक्रियाओं में जस्टिस सबरवाल की बहू श्रीमती शीबा सबरवाल का भी नाम है ।


११ जुलाई २००६ को सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई के सबरवाल को प्रख्यात वकील रामजेठमलानी, वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बालकृष्णन सहित दो पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों की समिति कोजा (कमेटी आन जुडिसियल एकाउंटिबिलिटी) नें जस्टिस जगदीश भल्ला के विरूद्ध गंभीर अनियमितता का आरोप लगाते हुए उन पर महाभियोग चलाने की अपील की थी । छ: माह बाद भी उस अपील पर कोई कार्यवाही नही की गयी तब इस समिति नें जस्टिस जगदीश भल्ला के विरूद्ध एफ आई आर दायर करने की अनुमति की मांग भी की थी ।

तहलका से उपलब्ध जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि जस्टिस जगदीश भल्ला के संबंध में सीबीआई से रिपोर्ट भी मंगाई गयी थी जिसके बाद ही राष्ट्रपति नें उनकी फाईल वापस कर दी थी ।
इधर अपने रिटायरमेंट के समय मुख्य न्यायाधीश वाई के सबरवाल नें पत्रकारों द्धारा पूछे गये सवाल के जवाब में जस्टिस जगदीश भल्ला को क्लीन चिट दे दिया था – “जस्टिस भल्ला के खिलाफ लगे आरोपों में कोई दम नही है ।“

अस्तु जस्टिस जगदीश भल्ला को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाये जाने की कवायद शुरू हो गयी इस बीच केरल के ही एक न्यायाधीश बालकृष्णन जो जस्टिस भल्ला के विरूद्ध शिकायत करने वाली कमेटी कोजा के सदस्य थे, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाये गये। तदैव जस्टिस जगदीश भल्ला को केरल के बजाय छत्तीसगढ भेजा जाना तय हो गया, अब राष्ट्रपति जी को फाईल पुन: प्रेषित की गयी है जिसमें उन्हे हस्ताक्षर करना ही है यही हमारा संविधान कहता है । ईसी सम्बंध में परंजय गुहा की भी बातें देखिये ।


न्यायाधीशों की कमी व लंबिंत मामलों से जूझते छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का तबादला केरल कर दिया गया और यहां मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो गया सो जस्टिस भल्ला के लिए छत्तीसगढ का रास्ता साफ हो गया ।

डा सुकुमार ओझिकोड, (पूर्व उप कुलपति, कालिकट विश्वविद्यालय, कालम लेखक) देशाभिमानी, सीपीएम का आमुख अखबार में लिखा जिसका अनुवाद शुभ्राशु चौधरी नें बासी में उबाल में लिखा है – “जस्टिस भल्ला को केरल न भेजा जाना एक अच्छा फैसला है । . . . क्या इस देश में दो तरह के प्रदेश हैं यदि जस्टिस भल्ला को केरल न भेजना एक उचित फैसला है तो उन्हे छत्तीसगढ का मुख्य न्यायाधीश कैसे बनाया जा सकता है ।“

टिप्पणियाँ

  1. संजीव तिवारी जी; आपकी प्रस्तुति वाकई झकझोर देने वाली है.
    छत्तीसगढ़ या कोई भी राज्य दोयम दर्जे का नहीं है. मुझे पूरा विश्वास है कि भल्ला छत्तीसगढ़ में नहीं सिकेंगे.

    जवाब देंहटाएं
  2. यह जस्टिस भल्ला को पिछले दरवाजे से मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने की कवायद है जिसका कई समाचार पत्रों ने भी खुलासा किया है. इसका पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  3. चाहे वाह केंद्र सरकार हो या फ़िर नई दिल्ली में बैठी अन्य उच्च स्तरीय संस्थाएं, ना जानें क्यों इन के मानस में यही बैठा हुआ है कि छत्तीसगढ़ को जो भी दे दें वह बिना किसी प्रतिवाद के ले ही लेगा, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से यहां की राजनीति मे एक शब्द बहुत चला था वह था " छत्तीसगढ़ से सौतेला व्यवहार"। लेकिन क्या न्याय पालिका भी सौतेला व्यवहार कर रही है। जिसे केरल ना भेजा गया उसे छत्तीसगढ़ भेज दो, यह सौतेला व्यवहार नही है तो क्या है।
    संजीव भैया,इस बात को चिट्ठे के माध्यम से सबके सामने लाकर आपने यह एक सराहनीय कार्य किया है ।

    जवाब देंहटाएं
  4. भल्ला जी के िनयुकि्त के उपर िलखने के िलए शुक्िरया । हम सभी को कलाम साहब के नाम एक सामुिहक पत्र िलखना चािहए । शाॅत रहना नाइॅसाफी होगी ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भट्ट ब्राह्मण कैसे

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है। पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजव

क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है? बैगनी फूलो वाले कंटकारी या भटकटैया को हम सभी अपने घरो के आस-पास या बेकार जमीन मे उगते देखते है पर सफेद फूलो वाले भटकटैया को हम सबने कभी ही देखा हो। मै अपने छात्र जीवन से इस दुर्लभ वनस्पति के विषय मे तरह-तरह की बात सुनता आ रहा हूँ। बाद मे वनस्पतियो पर शोध आरम्भ करने पर मैने पहले इसके अस्तित्व की पुष्टि के लिये पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की। यह पता चला कि ऐसी वनस्पति है पर बहुत मुश्किल से मिलती है। तंत्र क्रियाओ से सम्बन्धित साहित्यो मे भी इसके विषय मे पढा। सभी जगह इसे बहुत महत्व का बताया गया है। सबसे रोचक बात यह लगी कि बहुत से लोग इसके नीचे खजाना गडे होने की बात पर यकीन करते है। आमतौर पर भटकटैया को खरपतवार का दर्जा दिया जाता है पर प्राचीन ग्रंथो मे इसके सभी भागो मे औषधीय गुणो का विस्तार से वर्णन मिलता है। आधुनिक विज्ञ

दे दे बुलउवा राधे को : छत्तीसगढ में फाग 1

दे दे बुलउवा राधे को : छत्‍तीसगढ में फाग संजीव तिवारी छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के लोकगीतों में फाग का विशेष महत्व है । भोजली, गौरा व जस गीत जैसे त्यौहारों पर गाये जाने लोक गीतों का अपना अपना महत्व है । समयानुसार यहां की वार्षिक दिनचर्या की झलक इन लोकगीतों में मुखरित होती है जिससे यहां की सामाजिक जीवन को परखा व समझा जा सकता है । वाचिक परंपरा के रूप में सदियों से यहां के किसान-मजदूर फागुन में फाग गीतों को गाते आ रहे हैं जिसमें प्यार है, चुहलबाजी है, शिक्षा है और समसामयिक जीवन का प्रतिबिम्ब भी । उत्साह और उमंग का प्रतीक नगाडा फाग का मुख्य वाद्य है इसके साथ मांदर, टिमकी व मंजीरे का ताल फाग को मादक बनाता है । ऋतुराज बसंत के आते ही छत्‍तीसगढ के गली गली में नगाडे की थाप के साथ राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुह से बरबस फूटने लगते हैं । बसंत पंचमी को गांव के बईगा द्वारा होलवार में कुकरी के अंडें को पूज कर कुंआरी बंबूल की लकडी में झंडा बांधकर गडाने से शुरू फाग गीत प्रथम पूज्य गणेश के आवाहन से साथ स्फुटित होता है - गनपति को म