विगत एक वर्ष से मैंने छत्तीसगढ़ी वेब मैगज़ीन गुरतुर गोठ डॉट कॉम (www.gurturgoth.com) को सर्च इंजन से डिसेबल कर दिया था। इसके पीछे मूल कारण एक व्यक्ति था जो गुरतुरगोठ और अन्य छत्तीसगढ़ी ब्लॉगों के आलेखों को कापी कर अपने ब्लॉग में लगातार लगा रहा था, इससे गूगल बोट को समझ में नहीं आ रहा था कि, डेटा पहले कहाँ पब्लिश हुआ है। इसके अतिरिक्त कारण यह था कि मुझे दूसरे आयामों में काम करना था और छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के इंटरनेट में हो रहे ब्लॉगिया-फेसबुकिया भण्डारण को सर्च में प्राथमिकता देना था। ताकि गूगल, नेट सर्च में छत्तीसगढ़ी भाषा के शब्दों के प्रति भी संवेदनशील (मशीनी) हो। यह मेरे आत्ममुग्ध मानस का भ्रम भी हो सकता है या मेरे अधकचरा तकनीकी ज्ञान का सत्य।
जो भी हो, मुझे 'खुसी' है कि इस बीच एंड्राइड युक्त युवा साथियों ने अपनी भाषा को वैश्विक बनाने में सराहनीय कार्य किया और दर्जनों छत्तीसगढ़ी ब्लॉग व फेसबुक, व्हॉट्स एप ग्रुप बनाये। क्रांति सेना के 'संगी' लोग भी भाषा और संस्कृति के लिए लगातार अलख जगा रहे हैं।
वरिष्ठ और आदरणीय अग्रजों में नंदकिशोर शुक्ला ने तो अपनी उम्र के तमाम 'सियानों' को पीछे छोड़ते हुए फेसबुक में छत्तीसगढ़ी अस्मिता को जगाने में अभूतपूर्व कार्य किया है। भाषा को बचाने और प्राथमिक स्तर से छत्तीसगढ़ी की शिक्षा अनिवार्य करने के लिए वे अपनी मांग प्रतिपल बुलंद करते रहते हैं। इसके बावजूद हम उनके पोस्टों को टैग करने की अनुमति देने के सिवाय, कुछ नही कर पा रहे हैं। हमारे पास न ही उनके सामान ज्ञान है और न ही वैसी ऊर्जा।
बहरहाल हमने छत्तीसगढ़ी वेब मैगज़ीन गुरतुर गोठ डॉट कॉम (www.gurturgoth.com) को फिर से सर्च इनेबल कर दिया है। हम यहाँ व्हॉट्स एप, फेसबुक और दूसरे मीडिया में छत्तीसगढ़ी भाषा पर हो रहे उल्लेखनीय चर्चाओं को प्रकाशित भी करेंगे। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ी के ऐसे रचनाओं को पुनः आमन्त्रित कर रहे है जो इंटरनेट में पूर्व प्रकाशित न हो। ब्लॉ ब्लॉ ब्लॉ, इन सबके बावजूद हमारे द्वारा नेट पर जो कुछ भी किया जा रहा है उसकी उपादेयता पर इस सवाल का जवाब अब भी अनुत्तरित है कि, '.. .. जब भाषा ही नहीं रहेगी तो क्या??'
-संजीव तिवारी