
यों तो मैंने लगभग आठ-नौ वर्षों पहले महाकौशल कला विथिका में सुश्री साधना ढांढ की कृतियों की प्रदर्शनी देख रखी थी, पर उस वक़्त मुझे कतई गुमां न था कि ये कृतियां अस्सी प्रतिशत् शारीरिक निःशक्तता से पीडित किसी महिला द्वारा रचीं गयी हैं। मुझे जब यह ज्ञात हुआ कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर रोल माॅडल अवार्ड मिला है, तो मैं अपने आपको उनसे मिलने से रोक नहीं पाया। वहां कुछ पत्रकार बंधु पूर्व से ही विराजमान थे। वे भी उनसे ही मिलने आये हुए थे। साधना जी को देखकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि अस्सी प्रतिशत् शारीरिक निःशक्तता के बावजूद उन्होंने अपने अन्दर के कलाकार को निःशक्त नहीं होने दिया है। उनके अन्दर के कलाकार की जिजीविषा देखते ही बन रही थी। वे हमारी उपस्थिति से पूरी तरह अनभिज्ञ अपनी कृतियों को उकेरने में मग्न थीं और हम उन्हें विभिन्न तरह के क़ाग़ज़ों पर उनके शिल्प को आकार लेते हुए, खो जाने की हद तक तन्मय होकर देख रहे थे। वहां पर उपस्थित उनकी बधिरों की भाषा में समझाने वाली शिक्षिका ने उन्हें हल्के से छुआ और उनकी तन्द्रा टूटी। फिर उन्होंने हमारी ओर देखा उनकी आंखें आत्मविश्वास से लबरेज़ थीं। संभवतः मैंने पहली बार किसी निःशक्त को छलकते हुए आत्मविश्वास के साथ पाया। अवार्ड के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें यह अवार्ड राष्ट्रपति महोदय द्वारा 3 दिसम्बर को प्रदान किया जायेगा।
साधनाजी अपने घर पर ही एक शिल्प स्कूल चलातीं हैं, जहां पर वें बच्चों और बड़ों को समान रूप से प्रशिक्षण देतीं हैं। नई पीढ़ी के कलाकारों के बारे में पूछने पर उन्होंनें बताया कि वे मेहनत से बचना चाहतें हैं और शाॅर्टकट में ही सफलता पा लेना चाहते हैं। मोबाईल फोन भी उनकी एकाग्रता में बाधक हो जाता है।
वर्तमान में रायपुर शहर की दिशा और दशा के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि रायपुर में तो चारों ओर कंक्रीट ही कंक्रीट पसरा हुआ है । लोगों में संवेदनशीलता भी कम होती जा रही है। बातों ही बातों में हमें पता चला कि लगभग 12 वर्ष की उम्र से ही उन्हें निःशक्तता का दंश झेलना पड़ रहा है। इसके अलावा इस दौरान उन्हें हुए लगभग अस्सी फ्रेक्चर्स, जो कि अच्छे-अच्छों का दिल हिलाने का माद्दा रखते हैं, से भी वे अप्रभावित रहीं। हमने जब इन हालातों में भी उनकी इस अतीव क्रियाशीलता का राज़ पूछा तो उन्होंने एक पंक्ति में उत्तर दिया व्यस्त रहो मस्त रहो। उनकी उपलब्धियों के बारे में पूछने पर उन्होंने इनकार में सिर हिला दिया इस पर मध्यस्थ शिक्षिका ने बताया कि दीदी सिर्फ काम पर यकीं रखती हैं। वे नेम एण्ड फेम से बचतीं है । बाद में मध्यस्थ शिक्षिका से ही ज्ञात हुआ कि उनकी लगभग आठ-नौ जगह प्रदर्शनियां लग चुकी हैं और लगभग सत्रह से भी अधिक संगठनों एवं संस्थाओं द्वारा उन्हे पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। अंत में हमने उस निष्णात कलाकार की कलाकृतियों का भरपूर आनंद लिया और उसी खुमारी में वापस आ गये।
वाकई इसमें कोई संदेह नही है कि अपनी निःशक्तता को अभिशाप मानकर हताशा-निराशा के दलदल में फंसे हुए निःशक्तों के लिये साधनाजी आशा की किरण नहीं बल्कि आशा का पूरा सूर्य ही है, जिन पर पूरी उपन्यास लिखी जा सकती है।आलोक कुमार सातपुते,हाउसिंग बोर्ड कालोनी सड्डू रायपुर
मो-09827406575
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बुलंद हौसलों से बनीं 'रोल मॉडल
यदि जज्बा और हौसले बुलंद हों, तो किसी भी कठिनाई में अपना मुकाम हासिल किया जा सकता है। जिंदगी में अब तक 80 फ्रैक्चरों का सामना कर चुकी तथा ऑस्ट्रियोपॉरेसिस जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त प्रदेश की सुश्री साधना ढांड ने अपनी कला को ही अपनी बीमारी से लडऩे का जरिया बनाया। उनके जज्बे और हौसले का सम्मान करते हुए सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय ने उन्हें रोल मॉडल के अवार्ड से नवाजा है। विकलांग दिवस के अवसर पर आगामी 3 दिसंबर को राष्ट्रपति के हाथों उन्हें यह सम्मान दिया जाएगा। सुश्री साधना के इस सम्मान पर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल ने भी हर्ष व्यक्त किया है। 12 बरस की उम्र से श्रवण शक्ति को खोने, पैरों से निशक्त, नाटे कद के साथ जिंदगी की तमाम चुनौतियों से लड़ते हुए उन्होंने पेंटिंग, शिल्पकला तथा फोटोग्राफी के क्षेत्र में सुकून तलाशा।
कल्पना की ऊंचाइयों पर अपने दुख विस्मृत करती साधना जिंदगी का उत्सव अपनी कला में तलाशती हैं। चित्रकला, शिल्पकला के साथ अप्रतिम फोटोग्राफी करने वाली साधना की कृतियां न केवल दर्शकों को अचंभित करती हैं, बल्कि विपरीत स्थितियों में भी जीवन कैसे जिया जा सकता है, इसकी प्रेरणा भी देती हैं। पेड़-पौधों के बीच भी उनका कलाकार अनुपम कृतियां तलाशता रहता है। फल, फूलों, सब्जियों से साकार किए 100 से अधिक गणेश के चित्र इसकी गवाही देते हैं। यह उनके भीतर बैठे कलाकार का ही करिश्मा है कि वे अपनी तस्वीरों में भी अद्भुत शेड एंड लाइट तथा कलर इफेक्ट का कौशल प्रदर्शित करती हैं। 1982 से अपने घर पर बच्चों को चित्रकला का प्रशिक्षण देने वाली साधना ने अब तक 20000 से ज्यादा छात्रों को प्रशिक्षित किया है। गणेश भगवान के विभिन्न स्वरूपों पर केंद्रित उनकी एकल फोटो प्रदर्शनी न केवल शहर में बल्कि देश के विभिन्न शहरों में भी दर्शकों ने भरपूर सराहना दी। जवाहर कला केंद्र, जयपुर के अलावा भुवनेश्वर, पूना, नागपुर, भोपाल, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली जैसे स्थानों पर उन्होंने अपने प्रदर्शनों से न केवल अपना बल्कि प्रदेश का नाम भी रौशन किया है।
स्त्री शक्ति, सृजन सम्मान, महिला शक्ति सम्मान, बेस्ट टेरेस गार्डन अवार्ड, बोंसाई- फ्लावर डेकोरेशन, लैंडस्कैप, फोटोग्राफी आदि क्षेत्रों में विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित साधना अपनी व्यस्तता और एकाग्रता के जरिए आज इस मुकाम तक पहुंची हैं। बुलंद हौसलों वाली सशक्त और नन्हें कद की साधना हालांकि विगत दो वर्षों से चलने-फिरने में असमर्थ हैं, बावजूद इसके उनकी न तो कल्पना मुरझाई है, न ही एकाग्रता विचलित हुई है। बदलते परिवेश में उनका मानना है कि लोगों के पास समय नहीं हैं, जाहिर है इससे एकाग्रता कहां मिलेगी। निश्चित रूप से वे न केवल निशक्तजनों के लिए, बल्कि सशक्तों के लिए भी साधना एक रोल मॉडल हैं।
अरूण काठोटे

