पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

- विनोद साव

आधुनिक काल में हिन्दी निबंधों के विकास का पहला युग भारतेंदु युग कहलाया और दूसरा युग द्विवेदी युग. तीसरा युग शुक्ल युग. इस तीसरे युग में रामचंद शुक्ल के साथ बाबू गुलाबराय, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, जयशंकर प्रसाद आदि हुए थे. बक्शी जी का नाम पदुमलाल था; नाम के साथ वे पिता का नाम पुन्नालाल लगाते थे. अनेक विधाओं में लिखने के बाद निबंधकार के रूप में उन्हें अच्छी पहचान मिली. अपनी विशिष्ट शैली में उनके निबंध मौलिकता और नवीनता लिए हुए हैं जो अपने समय से पहले आधुनिक खड़ी बोली में मंजे हुए हैं.
बख्शी जी छत्तीसगढ़ की माटी की देन है. उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ की आत्मा’ कहानी लिखी है. इसमें वे लिखते हैं ‘छत्तीसगढ़ के जनजीवन में चरित्र की एक ऐसी उज्ज्वलता है, जो अन्यत्र नहीं पायी जाती. वे स्वयं धोखा नहीं देते. वे स्वयं कष्ट सह लेते हैं पर दूसरों को कष्ट नहीं देते. वे कठिन परिस्थितियों में भी स्नेह और ममत्व नहीं छोड़ते. जो इस आत्मा से परिचित नहीं होते वे छत्तीसगढ़ के जीवन की महिमा व्यक्त नहीं करते.’ लोककला निर्देशक रामचंद देशमुख बताते थे कि ‘चंदैनी गोंदा’ के बाद ‘कारी’ नामक प्रस्तुति तैयार करने की प्रेरणा मुझे बख्शी जी की इसी कहानी और उसकी नायिका से मिली थी.’
बख्शी जी के जन्मशताब्दी वर्ष १९९४ में भिलाई में तीन दिवसीय राष्ट्रीय साहित्य सम्मलेन रखा गया था. सम्मलेन में कथाकार कमलेश्वर आव्हान कर रहे थे कि ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास में जिसे द्विवेदी युग कहा जाता है, उसे द्विवेदी जी को प्रणाम अर्पित करते हुए सप्रे युग भी कहा जाना चाहिए. हिन्दी कहानी और हिन्दी गद्य को माधव राव सप्रे और बाद में बख्शी जी ने बड़ी ऊंचाई दी. इन दोनों सृजनकारों ने हिन्दी साहित्य के आधुनिकीकरण और गद्य को दिशा दी है लेकिन हिन्दी साहित्य का वर्णवादी इतिहास इन दोनों व्यक्तित्वों के बारे में मौन है. आचार्य शुक्ल का इतिहास सप्रेजी के बारे में मौन है तो बाद के इतिहासकारों के विवरण बख्शी जी के बारे में खामोश हैं.’
अपने निबंध ‘साहित्य और शिक्षा’ में बख्शी जी लिखते हैं ‘लोकरुचि बदलती रहती है और उसी के अनुसार ग्रंथों की लोकप्रियता भी बढती-घटती रहती है. वर्तमान युग प्रचार का युग है. राजनीति की तरह साहित्य में भी प्रचार का बड़ा महत्त्व है. ढोल पीटकर या नगाडा बजाकर यदि कोई जनता का मत प्राप्त कर मंत्री बन सकता है तो साहित्य के क्षेत्र में भी यथेष्ट ढोल पीटकर कोई लेखक या कवि गौरव के शिखर पर पहुँच कर विशेष ख्याति भी प्राप्त कर सकता है.’
हास्य-व्यंगात्मक शैली तथा भाषा उनके ललित निबंधों में प्रयुक्त हुई है. आत्मपरक निबंधों में इस शैली को अपनाया गया है - ‘क्या लिखूं निबंध’ उनकी आत्मव्यंजक शैली का सुंदर नमूना है । इसमें लेखक की निजता और उसका व्यक्तित्व उभरकर सामने आता है। उनके विनोदप्रिय व्यक्तित्व का उल्लेख करते हुए धमतरी के रामायणी दाउद-खां एक बार एक प्रसंग सुना रहे थे कि ‘खैरागढ़ में एक मारवाड़ी अपनी अंतिम सांसें ले रहा था. तब उनका एक सेवक दौड़ते हुए बख्शी जी के पास आया और कहा कि ‘मास्टर जी.. मालिक ने खटिया पकड़ ली है और आपको याद कर रहे हैं. चलिए ज़ल्दी चलिए.’ यह सुनकर बख्शी जी बोले कि ‘जाओ तुम्हारे मालिक से कहना कि कुछ नहीं होगा. वो मारवाड़ी मरेगा नहीं.. अभी इतने गुनाह बाकी हैं उसे कौन करेगा..?’




प्रसिद्द व्यंग्यकार रवीन्द्रनाथ त्यागी अपने संस्मरण ‘पचास वर्ष पूर्व का प्रयाग’ में लिखते हैं ‘बख्शी जी अत्यंत साधारण स्तर का जीवन जीते थे पर साहित्य पर उनकी असाधारण पकड़ थी. साहित्य के अतिरिक्त कोई और शगल उनका था ही नहीं. वे बहुत ही दीन व संकोची स्वाभाव के व्यक्ति थे जिन्होंने विश्व साहित्य का गहरा अध्ययन किया था. वे प्रेमचंद और पंत के भक्त अनुचर थे. देव, बिहारी और मतिराम जैसे कवियों के प्रेमी थे पर पद्माकर से उन्हें इतना मोह था कि कुछ कहा ही नहीं जा सकता. देवकीनंदन खत्री व मैथिलीशरण गुप्त के उपासक थे पर वे यह कहने में कोई संकोच नहीं करते थे कि ‘भविष्य जो है वह प्रेमचंद, जैनेंद्रकुमार, पंत और निराला का ही है, किसी और का नहीं.’ उन्हें देखकर पता चलता था कि एक समर्पित साहित्यकार कैसा होता है. मित्रों के दबाव के फलस्वरूप उन्होंने ‘विश्व साहित्य का अनुशीलन’ नामक आलोचनात्मक निबंध संग्रह भी लिखे जो मील के पत्थर हैं. वे साहित्य के मूक साधक थे और इस कारण भी उनको उचित सम्मान नहीं मिला हालाँकि उनमें महान प्रतिभा थी. निराला जी भी उनकी प्रतिभा के कायल थे और पंत जी उन पर जान देते थे.
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ‘सरस्वती’ के संपादक बनकर जब फिर प्रयाग आए तो पत्रिका का स्तर बहुत ही ज़ल्दी ऊपर उठने लगा. वे हिन्दी के महानतम निबंधकार हैं. गुलेरीजी की ‘उसने कहा था’ नामक कहानी की भांति, बख्शी जी का ‘रामलाल पंडित’ नामक एक निबंध ही उन्हें अमर रखने के लिए काफी है. यह दुखद है कि विद्यानिवास मिश्र ने जब निबंध संग्रह तैयार किया तो उन्होंने ‘आधुनिक निबंधावली’ में राम मनोहर लोहिया और कमलापति त्रिपाठी जैसे लोगों की रचनाओं को शामिल किया पर बख्शी जी को लेना वे भूल गए.’
वे लगभग दो वर्ष प्रयाग में रहे. उसके बाद उन्होंने इंडियन प्रेस के मालिक हरिकेशव घोष (पटल बाबू) से सदा के लिए विदा मांगी. पटल बाबू ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की पर पता नहीं क्यों, बख्शी जी ने अपने गांव जाने की जिद न छोड़ी. प्रयाग छोड़ने से पहले उन्होंने संगम में स्नान किया, पंत और निराला से अंतिम भेंट की, हिंदू-होस्टल के कर्ता-धर्ता देवीदत्त शुक्ल के साथ भोजन किया और नौसिखियों को आशीर्वाद भी दिया और कहा कि ‘सच्चा साहित्यकार वही हो सकता है जिसमें सृजन का सुख होगा. सृजन के सुख के सामने प्रशंसा, पुरस्कार व यश कोई मायने नहीं रखते. साहित्य का सच्चा समीक्षक मात्र काल है, और कोई नहीं.’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘पुराने साहित्यकारों को सदैव पढते रहना चाहिए. पुराने को जाने बिना आप नया नहीं लिख सकते.’
त्यागी जी लिखते हैं कि ‘उनको छोड़ने मैं स्टेशन गया और जब गाड़ी चली तो प्रयाग को सदा के लिए छोड़ते हुए वे अत्यंत भावुक हो उठे. सभी लोगों की आँखों में आंसुओं के अतिरिक्त और कुछ नहीं था. अपने जीवन में मैंने अनेक बड़े बड़े साहित्यकार देखे पर बख्शी जी जैसा विरक्त और नि:संग व्यक्ति कोई और नहीं देखा.
बख्शी जी के जाने के बाद ‘सरस्वती’ छपती तो रही पर उसमें अब पहले जैसी बात नहीं रही थी.’





20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जनमे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व विभाग में सहायक प्रबंधक हैं। fहंदी व्यंग्य के सुस्थापित लेखक विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, अक्षरपर्व, वसुधा, ज्ञानोदय, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में छपी हैं। उनके दो उपन्यास, तीन व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों व कहानियों के संग्रह सहित अब तक कुल बारह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें वागीश्वरी और अट्टहास सम्मान सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं। छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल के लिए भी चित्र-कथाएं उन्होंने लिखी हैं। वे उपन्यास के लिए डाॅ. नामवरfसंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी सम्मानित हुए हैं। उनका पता है: मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001 ई-मेलः vinod.sao1955@gmail.com लेखक संपर्क मो. 9009884014

1 टिप्पणी:

  1. देख लिया सेंगर जी. शेयर करने के लिए धन्यवाद. बख्शी जी पर आलेख को और भी लोग पढेंगे.

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...