विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
केंद्र सरकार ने बड़े अफसरों को संपत्ति का व्यौरा देने से छूट दे दिया। बिरोधी लोगों को छत्तीसगढ़ में भी आंच जनाने लगा, फटा-फट विज्ञप्ति जारी होने लगे।यह जानते हुए भी कि बड़े अफसर इतने चूतिया नहीं हैं। वे संपत्ति अपने नाम पर नहीं ख़रीदते, अपने दोस्त - रिश्तेदारों के नाम खरीदते हैं। नगदी बिल्डरों के यहाँ खपाते हैं, नोटबंदी के बाद बेकार हुए नोटों से आग तापते हैं और सब कुछ छुपाते हैं।
ये अलग बात है के लुकाने-छुपाने के बावजूद साहेब के घर-आफिस में कोई डायपर पहनाने वाला भी होता है जिसके सहारे पावर गेम को न्यूज मिलते रहता है और तमंचा को भी पता चल जाता है कि फलां प्राधिकरण के बड़े अफसर ने अपनी बहन के नाम से नया रायपुर के आसपास भारी मात्रा में जमीन ख़रीदा है.. या फलां जिले के सूबेदार ने मेटाडोर में पैसा भरकर दिल्ली तरफ भेजा है ब्लाँ.. ब्लाँ।
हमारे जान लेने से साहेब लोगों को कोई फरक नहीं पड़ता, हाँ जे बात तो है भैया, जब से दबंग टाइप मुखिया ने एसीबी का चार्ज सम्हाला है, सबकी फटी हुई है। सभी ने एसीबी से बचे रहने का सुप्पर एंटीवायरस एक्टिव मोड़ में ले लिया है। सिरिफ दो झने का टेंसन है, सीएस और सीएम। क्योंकि ये दोनों रूठे तो अमन (,) चैन से रहने नहीं देंगे।
बहरहाल, अफसर खुश है क्योंकि केंद्र ने उनकी काली कमाई को नजरअंदाज कर दिया है और दोनों टेंसन कैशलेश में बिपतियाये हैं। चैन ही चैन है ... - तमंचा रायपुरी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-12-2016) को गांवों की बात कौन करेगा" (चर्चा अंक-2566) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'