भट्ट ब्राह्मण कैसे सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

भट्ट ब्राह्मण कैसे

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख 'चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख -


लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है।

पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजवंश ब्राह्मणों का है और इस राजवंश की स्थापना भी दक्षिणा से हुई है। मराठा साम्राज्य के संस्थापक मराठा शासक शिवाजी भोसले के 1674 में छत्रपति की उपाधि ग्रहण करने के समय उनके क्षत्रिय होने पर विवाद हुआ था तब काशी के महान पंडित विश्वेक्ष्वर भट्ट (जिन्हें गागा भट्ट भी कहा जाता है) ने शास्त्रार्थ कर शिवाजी को क्षत्रिय प्रमाणित किया था और उनका राज्याभिषेक करवाया था। उस समय विश्व की सबसे बड़ी दक्षिणा पं.गागा भट्ट को दी गई थी। यह दक्षिणा ही अपने आप में एक छोटे राज्य के बराबर थी। दक्षिणा से स्थापित हुआ यह देश का पहला छोटा ब्राह्मण राज्य था। मराठा राज्य के आधीन रहते हुए इसी छोटे राजवंश ने अपने को विकसित किया। तत्कालीन समय में उत्तर भारत से भट्ट ब्राह्मणों का बड़ी संख्या में महाराष्ट्र माइग्रेशन हुआ। इसी राजवंशी ब्राह्मणों में सन 1700 से 1740 के बीच बाजी राव पेशवा मराठा सेनापति हुए जो अपनी बहादुरी के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उन्होंने 41 लड़ाइयां लड़ीं जिसमें एक में भी वे पराजित नहीं हुए। इसी राजवंश ने आगे चलकर अपना विस्तार किया और उसकी एक शाखा में आगे चलकर बुंदेलखंड के राजा गंगाधर राव नेवालकर की पत्नी (1828-1858) झांसी की रानी लक्ष्मी बाई हुईं जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सन 1857 की लड़ाई लड़़ी और वीरगति को प्राप्त हुईं। आज पूरा विश्व उन्हें नारी सशक्तिकरण का प्रतीक मानता है। उनकी विद्वता की मिसाल यह थी कि उन्होंने न केवल अंग्रेजों को सामान्य शास्त्रार्थ में परास्त किया था बल्कि खुद अंग्रेजों की अदालत में भी उनके शासन को चुनौती दी थी।





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दुर्ग दर्पण : दुर्ग जिले का इतिहास सन् 1921

बिलासपुर वैभव : बिलासपुर जिले का इतिहास सन् 1923


अब हम अपने मूल प्रश्न पर आते हैं कि आखिर भट्ट ब्राह्मण कैसे जिन पर कई लेखों में विपरीत टिप्पणियां अंकित हैं। संस्कृत-हिन्दी कोश (वामन शिवराम आप्टे) में भट्टों की उत्पत्ति के बारे में एक सूत्र दिया गया है-क्षत्रियाद्विप्रकन्यायां भट्टो जातो..नुवाचकः। इसकी व्याख्या में आगे पढ़ने पर पता चलता है कि विधवा ब्राह्मणी और क्षत्रिय पिता से उत्पन्न जाति भट्ट हुई। अगर इसे सत्य मान लिया जाए तो इस संयोग से उत्पन्न जाति ब्राह्मण नहीं बल्कि क्षत्रिय होगी। जबकि ऐसा कदापि नहीं है सभी भट्ट स्वयं को ब्राह्मण कहते हैं और तदानुसार आचरण भी करते हैं। वास्तव में भट्टों की उत्पत्ति के लेख से दुर्भावना पूर्वक छेड़छाड़ की गई है। ऊपर दिए गए सूत्र का क्रम परिवर्तित किया गया है जिसके कारण भ्रम की स्थिति निर्मित हुई है और जिससे उसके बाद की कड़ियां नहीं जुड़ती हैं। भट्ट ब्राह्मण वंश में पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होने वाली जानकारी में यह क्रम ब्राह्मण पिता और क्षत्रिय माता का है। इसके ऐतिहासिक प्रमाण भी हैं। वंशानुगत जानकारी के अऩुसार प्राचीन काल में युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में क्षत्रिय मारे जाते थे। उनकी युवा विधवाओं को ब्राह्मणों को उपपत्नी के रूप में दे दिया गया था। इस तरह इस जाति का प्रादुर्भाव युद्धों की त्रासदी से हुआ है। यह परंपरा किस सदी तक जारी रही इस बारे में जातीय इतिहास मौन है। जबकि उपरोक्त छेड़छाड़ के बाद जो स्थितियां बन रहीं है इसका कोई प्रमाणिक ऐतिहासिक घटनाक्रम से कोई जुड़़ाव नहीं है। इतिहास में कभी भी ऐसी कोई घटना दर्ज नहीं है जिसमें युवा ब्राह्मणों की बड़ी संख्या में मृत्यु हुई हो और बड़ी संख्या में युवा ब्राह्मणियां विधवा हुई हों जिन्हें क्षत्रियों ने पत्नियों के रूप में स्वीकारा हो तथा नई जाति विकसित हुई हो। वैसे भी प्राचीन भारतीय समाज में प्रतिलोम विवाह वर्जित थे। इसके अलावा मान भी लें कि एकआध घटनाएं किसी कारणवश हुईं भी हों तो उससे कम से कम जाति विकसित नहीं हो सकती है।



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शब्दकोश में भट्ट के अन्य अर्थों में 1 प्रभु ,स्वामी (राजओं को संबोधित करने के लिए सम्मान सूचक उपाधि)2 विद्वान ब्राह्मणों के नामों के साथ प्रयुक्त होने वाली उपाधि 3 कोई भी विद्वान पुरुष या दार्शनिक 4 एक प्रकार की मिश्र जाति जिनका व्यवसाय भाट या चारणों का व्यवसाय अर्थात राजाओं का स्तुति गान है। 5 भाट, बंदीजन।
उपरोक्त अर्थ में देखते हैं कि एक ही शब्द के अर्थ में चार जातियों को एक साथ लपेट दिया गया है भट्ट, भाट, चारण और बंदीजन। भट्ट स्वयं को कुलीन ब्राह्मण घोषित करते हैं वे सम्पन्न हैं उनमें डाक्टर, इंजीनियर,वैज्ञानिक से लेकर मंत्रियों तक के पद पर लोग सुशोभित हैं, दूसरी तरफ चारण जाति मुख्यतः राजस्थान में रहती है। ये चारण जाति स्वयं को क्षत्रिय कुल से संबंधित बताती है, इसके अलावा वे स्वयं को विद्वान बताते हैं तथा उनका अपना इतिहास है। बंदीजन नामक जाति वर्तमान में दिखाई नहीं पड़ती है और रहा सवाल भाट का तो वह पिछड़ी जाति में शामिल पाई जाती है तथा कहीं-कहीं इसके याचक वर्ग से होने के तो कहीं पर उनके द्वारा खाप रिकार्ड रखने की जानकारी मिलती है। यह जाति छोटे-मोटे व्यवसाय धंधे करती है। इसके अलावा इसके पास बड़ी जमीनें भी नहीं हैं। भाट स्वयं के ब्राह्मण होने का कोई दावा तक प्रस्तुत नहीं करते हैं। अब सवाल उठता है कि जब भट्ट का मतलब विद्वान ब्राह्मणों की उपाधि है तो फिर उस नाम की जाति निम्नतर कैसे हो गई। वास्तव में भट्टों को षड़यंत्रपूर्वक भाट में शामिल बता कर अपमानित करने का प्रयास किया जाता है ताकि उन्हें बदनाम कर उनके समाज में वास्तविक स्थान से पद्-दलित किया जा सके।
भट्टों की जातीय अस्मिता को कैसे तोड़ा मरोड़ा गया है इसका प्रमाण स्वयं शब्द कोश में ही मिलता है। शब्दकोश में भट्टिन शब्द के अर्थ देखें 1 (अनभिषिक्त) रानी, राजकुमारी,(नाटकों में दासियों द्वारा रानी को संबोधन करने में बहुधा प्रयुक्त)2 ऊंचे पद की महिला 3 ब्राह्मण की पत्नी।
उसी प्रकार शब्दकोश का एक और शब्द को लें ब्राह्मणी अर्थ है-1 ब्राह्मण जाति की स्त्री 2 ब्राह्मण की पत्नी 3 प्रतिभा (नीलकंठ के मतानुसार बुद्धि).3 एक प्रकार की छिपकली 4 एक प्रकार की भिरड़ 6 एक प्रकार की घास।



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ऊपर के दोनों शब्दों से ज्ञात होता है कि भट्टिन ऐसी रानी है जो वर्तमान में राजकाज से बाहर है या राजकुमारी है और वो ब्राह्मण की पत्नी है। जबकि ब्राह्मणी का सीधा अर्थ ब्राह्मण की पत्नी से है। अब आप भट्टिन का कितना भी अर्थ निकालने की कोशिश करिए भट्टिन भट्ट की पत्नी नहीं है अगर वह भट्ट की पत्नी है तो पदच्युत रानी नहीं है न राजकुमारी है और न आपके भट्ट की उत्पत्ति सूत्र के अनुसार ब्राह्मण की पत्नी है। जबकि आप किसी भी ब्राह्मण की पत्नी को आज भी भट्टिन नाम से नहीं पुकार सकते हैं।
इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि भट्ट ब्राह्मणों के पारंपरिक वाचिक इतिहास में जो भट्टों की उत्पत्ति की बात कही जाती है वह सतप्रतिशत सत्य है और शब्दकोश में जो भट्टिन शब्द के अर्थ आए हैं वास्तव में वो प्राचीन काल के ब्राह्मण की दूसरी-पत्नी के संबंध में है। इस प्रकार राजवंशी भट्टिन से उत्पन्न जातक ही भट्ट कहलाए। चूंकि भट्टों का मातृपक्षा राजवंशी रहा है इसलिए यह जाति स्वयं के नाम के साथ राज सूचक शब्द राव लगाना अपनी शान समझती है। इस तरह कहा जा सकता है कि भट्ट अपनी उत्पत्ति से ही कुलीन, सम्पन्न व राजवंशी ब्राह्मण जाति है जिनका भाटों से दूर-दूर का संबंध नहीं है। केवल दो ब्राह्मण समुदायों के बीच चले सत्ता संघर्ष के कारण इस तरह का भ्रम फैलाया गया है।
आइए देखते हैं भट्टों के विरुद्ध वो ऐतिहासिक कारण क्या हैं जिनके कारण उन्हें अपमानित करने के लिए भ्रम फैलाया गया। वास्तव में प्राचीन काल में विधवा राजकन्याओं और ब्राह्मण पिता से उत्पन्न राजवंशी ब्राह्मण जाति ने बाद में पिता की वृत्ति में अपना उत्तराधिकार मांग लिया। तब समाजिक बंटवारे में उन्हें पुरोहिती कर्म से पृथक करते हुए वेदों का अध्ययन, ज्योतिष, धर्मशास्त्रों का प्रचार और केवल शिव तथा शिव-परिवार के मंदिरों में पुजारी बनने का अधिकार दिया गया। इसके वर्तमान उदाहरण में नेपाल के पशुपतिनाथ के प्रमुख पुजारी परिवार विजेन्द्र भट्ट तथा इंदौर के खजरानें गणेश मंदिर भट्ट पुजारियों का नाम लिए जा सकते है। महाराष्ट्रीय देशस्थ भट्ट ब्राह्मणों का गणेश उपासना के प्रति आकर्षण भी इसी ऐतिहासिक सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है। इस परंपरा के अन्य अवशेष देखें तो उज्जैन महाकाल मंदिर में भी भट्ट ब्राह्मणों की पुरोहितों की भीड़ में तख्तियां भी देखीं जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त इस बात की जानकारी पुरानी पीढ़ी से या फिर कई पुराने रिकार्ड से भी मिल सकती है।
भट्ट ब्राह्मणों का समाज में योगदान
राजवंशी भट्ट ब्राह्मणों ने वेदों के अध्ययन के अलावा आगे चलकर वेदों की मीमांसा (वैदिक वाक्यों में प्रतीयमान विरोध का परिहार करने के लिये ऋषि-महर्षियों द्वारा की गई छानबीन ) में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जिन प्रमुख आचार्यो ने टीकाओं या भाष्यों की रचना की उनमें हैं-
1. सूत्रकार जैमिनि, 2. भाष्यकार शबर स्वामी 3. कुमारिल भट्ट 4. प्रभाकर मिश्र 5. मंडन मिश्र,6. शालिकनाथ मिश्र 7. वाचस्पति मिश्र 8. सुचरित मिश्र 9. पार्थसारथि मिश्र, 10. भवदेव भट्ट,11 भवनाथ मिश्र, 12. नंदीश्वर, 13. माधवाचार्य, 14. भट्ट सोमेश्वर, 15. आप देव,16. अप्पय दीक्षित, 17. सोमनाथ 18. शंकर भट्ट, 19. गंगा भट्ट, 20. खंडदेव, 21. शंभु भट्ट और 22. वासुदेव दीक्षित शामिल हैं।




इस तरह हम देखते हैं कि 22 में से 6 भट्ट आचार्यों ने वेदों की मीमांसा की है।
भट्ट ब्राह्मणों के महापुरुषों की उपस्थिति ईसा पूर्व 5 वीं शताब्दी से मिलनी शुरू हो जाती है जिसमें सर्वप्रथम आते हैं- आर्यभट्ट( 476-550 सीई)-नक्षत्र वैज्ञानिक जिनके नाम से भारत का प्रथम उपग्रह छोड़ा गया। वाग्भट्ट(6वीं शताब्दी)-आयुर्वेद के प्रमुख स्तंभ दिनचर्या, ऋतुचर्या, भोजनचर्या, त्रिदोष आदि के सिद्धान्त उनके गढ़ हुए हैं। बाण भट्ट (606 ई. से 646 ई.)-संस्कृत महाकवि इनके द्वारा लिखित कादंबरी संस्कृत साहित्य की प्रथम गद्य रचना मानी जाती है। कुमारिल भट्ट( 700 ईसापूर्व )-सनातन धर्म की रक्षा के लिए जिन्होंने आत्मोत्सर्ग किया। भवभूति (8वीं शताब्दी)- संस्कृत के महान कवि एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककार। आचार्य महिम भट्ट(11 वीं शताब्दि)-भरतमुनी के नाट्यशास्त्र के प्रमुख टीकाकार आचार्य। चंद बरदाई (1149 – 1200)-पृथ्वीराज चौहान के मित्र तथा राजकवि जिन्होंने चौहान के साथ आत्मोत्सर्ग किया। जगनिक (1165-1203ई.)-विश्व की अद्वतीय रचना आल्हा के रचयिता जिन्होंने ऐतिहासिक पात्रों को देवतातुल्य बना दिया। , भास्कराचार्य या भाष्कर द्वितीय (1114 – 1185)- जिन्होंने अंक गणित की रचना की। वल्लभाचार्य(1479-1531)- पुष्टिमार्ग के संस्थापक तथा अवतारी पुरुष। सूरदास( 14 वीं शताब्दी)- साहित्य के सूर्य, साहित्य में वात्सल्य रस जोड़ने का गौरव। राजा बीरबल(1528-1586)-असली नाम महेश दास भट्ट मुगल बादशाह अकबर के नौ रत्नों में प्रमुख। गागा भट्ट(16 वीं शताब्दी)- छत्रपति शिवाजी महराज के राजतिलक कर्ता। पद्माकर भट्ट(17 वीं शताब्दी)-रीति काल के ब्रजभाषा के महत्वपूर्ण कवि। तात्या टोपे (1814 - 1859)-1857 क्रांति के प्रमुख सेनानायक। बाल गंगाधर तिलक ( 1856-1920)-प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी। पं. बालकृष्ण भट्ट(1885-1916)-भारतेंदु युगीन निबंधकारों में विशिष्ट स्थान। श्री राम शर्मा आचार्य( 1911-1990)- गायत्री शक्तिपीठ के संस्थापक। पं.राधेश्याम शर्मा ( दद्दा जी, 20 वीं शताब्दी)-पथरिया मध्यप्रदेश निवासी पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. विद्याचरण शुक्ल के गुरु जिनके नाम से उनके फार्म हाउस का नाम है।

आज पूरे भारत में भट्ट ब्राह्मणों की उपस्थिति कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से लेकर बंगाल तक है। ब्राह्मणों में भट्टों जाति सबसे बड़ी है। रही बात राजनैतिक स्थिति की तो कई राज्यों में भट्ट ब्राह्मणों को बिना मंत्रिमंडल में शामिल किए मंत्रिमंडल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है उसमें उत्तराखंड, गुजरात, पं.बंगाल शामिल हैं जबकि महाराष्ट्र में स्थिति इसके ठीक उलट है वहां भट्ट ब्राह्मणों का मंत्रिमंडल में वर्चस्व होता है और बाकी की जातियां विरोध में ऩजर आती हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि भट्ट जन्म से ही कुलीन एवं सम्पन्न ब्राह्मण थे और हैं। हमे गर्व है कि हम भट्ट हैं जिनका इतना चमकदार इतिहास है।

-प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट

रायपुर

प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, वर्तमान में रायपुर के प्रतिष्ठित दैनिक अखबार 'जनता से रिश्‍ता' से जुड़े हैं।

टिप्पणियाँ

  1. वाह! बहुत अच्छी ऐतिहासिक जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार!

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  2. अब RS 50,000/महीना कमायें
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  3. देश का इतिहास तो बड़ा गौरवशाली है,वर्तमान भ्रष्ट है. गौरव करने के लिए बस इतिहास ही तो रह गया है.

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  4. bahut achha likhte hain kripya kuch tips dijiye ki blog kofamous kaise karte hain hamara blog hai bhannaat.com

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  5. मेरा नाम कुलदीप भट्ट है मेरे पिता के कहै अनुसार मेरे पूर्वज आज से लगभग 500 साल पहले गुजरात के वड़ोदा से राजस्थान के उदयपुर के राजा की पत्नी के साथ रसोई के कार्य के लिये आये थे और अब यही बस गये क्या मै बाजीराव भट्ट के कुल का हु वसै तो परिवार मे दो पीढ़ी पहले तक सभी को सस्त्र ज्ञान भी था अब वो विलुप्त हो गया है
    कृपया मुजे बताये की मे किस कुल का हु

    जवाब देंहटाएं
  6. Hello Sir aap ki information Sahi hai,I am Pankaj Rao from Rajasthan but my entire family stays in Surat, Guajrat My grandfather is of 90 years he is oldest person alive in our Rajasthan Rao community and He says we have khashtriya blood.

    I want to ask Bhrambhatt and bhat not Bhatt are different from each other.

    And why our Bhrambhatt community is backward in Rajasthan area.

    And if we are considered in khashtriya blood then why we are in OBC not in general class

    जवाब देंहटाएं
  7. सामवेद व यजुर्वेद मे कवि ऋषि सारे ब्राह्मण के गुरु है । ईन्ही कवि ऋषि के पुत्र भट्ट ब्राह्मण है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. जो भी कहा गया हो या कुछ भी धारणा हो पर इतिहास कुछ और बताता है और बाते कुछ और पता नही क्या सत्य और क्या असत्य लेकिन जो समाज राजस्थान में भ्रह्मभट राव के नाम से जाने जाते हैं उनका इतिहास भी कुछ ऐसा ही बताया गया है कि शाश्त्र ओर शस्त्र में निपुण राव राजपूत जो शाश्त्र में ब्राह्मण ओर शस्त्र में राजपूत की उपाधि से नवाजे जाते है पुराने समय के अनुसार जनेऊ धारी जो ब्राह्मणों के समान ज्ञान ओर राजपूतो के समान शाश्त्र में माहिर तथा निपुण कहे गए हैं वह जाती राव राजपूत के नाम से जानी जाती है जिसके प्रमाण आज भी मिलते हैं कि सती प्रथा जिस प्रकार राजपूतो ब्राह्मणों में थी उसी प्रकार राव राजपूतो के गांवों में भी इसके प्रमाण मिलते हैं कहा जाता है कि ब्रह्मभट राव गुजरात से आई हुई वही जाती हैं जो राव राजपूत के नाम से जानी जाती हैं जो शाशनिक राव राजस्थान में राजाओ के साथ रहा करते थे एंव जिस किसी भी सेना में 9 राव ओर 64 या 32 उमराव होते थे वह सेना विशाल कहि जाती थी जो सेना नायक मंत्री मंडल में या प्रधान सचिव हुआ करतें थे ओर हमारे पूर्वज गुजरात के बूटड़ी से राजस्थान आए थे

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  9. Erroneous assumptions. Granted that Deshastha never ruled by being kings while Konkanasthas and Karhade like Peshwe and Zashichi Laxmibai did, we were still pretty dominant caste as landlords. Gagabhatt just immigrated for the vidhis that's all. Many other Brahmans native to Maharashtra ruled various parts of India. We aren't descendants of the UPites like Gagabhatt

    जवाब देंहटाएं
  10. http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache:9SIRU0evsSMJ:shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/47803/3/03_chapter%25201.pdf+&cd=7&hl=en&ct=clnk&gl=in

    GOOGLE KARE

    जवाब देंहटाएं
  11. BAHUT GALAT JANKARI HAI ISKE LIYE AAP YE GOOGLE KARE AUR SAHI JANKRI LE
    http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache:9SIRU0evsSMJ:shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/47803/3/03_chapter%25201.pdf+&cd=7&hl=en&ct=clnk&gl=in

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