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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

गरहन तीरना और गर से संबंधित मुहावरे

छत्तीसगढ़ी मुहावरा गरहन तीरना का भावार्थ अपंग होना से है. शब्द विच्छेद करते हुए छत्तीसगढ़ी शब्द 'गरहन' को देखें तो इसमें 'गर' और 'हन' का प्रयोग हुआ है. सामान्य बोलचाल में छत्तीसगढ़ी शब्द 'गर' का प्रयोग गलने के भाव या क्रिया के लिए एवं गरदन के लिए प्रयोग में आता है. गरदन के अभिप्राय से प्रयुक्त 'गर' से बने शब्दों में गरदन काटने वाला यानी भारी अनिष्ट करने वाले, हानि पहुचाने वाले को 'गरकट्टा' कहा जाता है. इसी भाव के कारण पौधों की बाली या कली व फूल को काटने वाले एक कीट को भी 'गरकट्टा' कहा जाता है. गरदन के लिए प्रयुक्त 'गर' से बने मुहावरों में 'गर नवाना : अधीनता स्वीकार करना, शर्मिंदा होना', 'गर अंइठना : गला दबाकर मार डालना', 'गर फंसना : बंध जाना या संकट में फसना' आदि हैं.

गरदन के अर्थ से परे 'गर' के साथ प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों में तेज बहाव, तीव्र ढाल वाली भूमि या पानी को शीघ्र सोंख लेने वाली भूमि को 'गरगरा' कहा जाता है. पौधों के जड़ मूल या वह भाग जो मिट्टी को जकड़ ले उसे 'गरगंसा' कहते हैं. संस्कृत शब्द गर्जन के अपभ्रंश से बने 'गरज' का अर्थ हिन्दी के ही समानार्थी बादल के गरजने या किसी गंभीर आवाज, दहाड़ आदि से है. वहीं अरबी शब्द 'ग़रज़' से बने छत्तीसगढ़ी 'गरज' का आशय मतलब, प्रयोजन, जरूरत, इच्छा, स्वार्थ, चाह है. वाक्य प्रयोग में 'मन गरजी : मन मुताबिक या मन के अनुरूप', 'मोला गरज नइ परे हे : मुझे जरूरत नहीं पड़ी है' आदि. 

आम की वह अवस्था जिसके गूदे को आसानी से चूसकर निगला जा सके उसे 'गरती' कहते हैं, यथा 'गरती आमा'. फारसी शब्द 'गर्द' से बने 'गरदा' का आशय धूल, खाक है, इसी से बने शब्द 'गरदा' का अभिप्राय समूल नष्ट कर देने से है यानी ठोस को चूर्ण बना देना, अस्तित्व मिटा देना. संस्कृत के शब्द 'गर्व' का समानार्थी 'गरब' भी यहां उसी अर्थों में प्रचलन में है. ताप व उष्णता के लिए हिन्दी में प्रयुक्त 'गरमी' का भी यहां इसी आशय से प्रयोग होता है. 

उपरोक्त मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द 'गरहन' संस्कृत के ग्रहणम व हिन्दी के ग्रहण शब्द से बना है. इसका अभिप्राय चंद्रमा और सूर्य को लगने वाले ग्रहण से है, सूर्य के सामने पृथ्वी और चंद्रमा के आ जाने के कारण प्रकाश में अवरोध की स्थिति ग्रहण है. इस संक्रमण की स्थिति को हिन्दी के 'ग्रसना' से जोड़ कर छत्तीसगढ़ी में 'गरसना' का प्रयोग होता है. संस्कृत शब्द 'ग्रह' के अपभ्रंश में 'गरह' और इसी से 'गरहा' व 'गिरहा' बना है. ग्रहण की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ग्रहों के कारण उत्पन्न संकट के लिए बाधा, विपत्ति, संकट को 'गिरहा' कहा गया. बोलचाल में 'गरहन धरे कस लागथे' का प्रयोग इसी भाव से किया जाता है. 

रूढ़ि मान्यता के अनुसार ग्रहण काल में कुछ विशेष कार्य वर्जित माने गए, इस मुहावरे को ध्यान में रखें तो वर्जित करने के बावजूद उसी काल में मैथुन, गर्भिणी स्त्री का घर से बाहर निकला 'गरहन तीरने' का कारण है. रूढ़ि को माने तो इसके कारण जब उस स्त्री का बच्चा पैदा होता है वह अपंग पैदा होता है, उसे पोलियो हो जाता है.

टिप्पणियाँ

  1. Ati utkrisht karya kar rahe hain Tiwari ji, bahut bahut shubhkamnain !

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  2. कभी-कभार पाणिग्रहण का तद्भव बना कर उसमें हास्‍य का पुट लाया जाता है, पानी-गरहन.

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  3. छत्तीसगढ़ी में गर का सीधा अर्थ गर्दन ही होता है . और हन को समझा जा सकता है हनना अर्थात मारने से जिससे कष्ट दाई पीड़ा हो किन्तु आवाज न हो। मुठिका एक महाकपि हनि , रुधिर बमत धरनी ढनमनी ..[ रामचरित मानस ]

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. सुघ्‍घर जानकारी मिलिस जी, आप मन ला साधूवाद

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  6. बहुत बेहतरीन ढंग से;

    'गर' 'गरह' 'गिरह' गरज समझाए।

    अपन बोली के मान बढ़ाये ।।

    तोर प्रयास के नइ ए सानी।

    रहै चलत अत्केच हम जानी।।

    बहुत बढ़िया ......



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  7. छत्तीसगडही के बाढय मान एही म हे हमरो कल्यान
    कब होही हमला एकर भान सद्बुध्दि दे-दे भगवान ।
    प्रशंसनीय पोस्ट ।

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