परिकल्‍पना समूह का सारस्‍वत सम्‍मान और दिलवालों की दिल्‍ली में दो दिन : भाग एक

परिकल्‍पना से रविन्‍द्र प्रभात जी के मेल आने के बाद से ही मन उत्‍साहित था कि 30 अप्रैल को उन सभी ब्‍लॉगर मित्रों से जिनसे सालों से आभासी संबंध हैं उनसे प्रत्‍यक्ष मुलाकात हो सकेगी। सम्‍मान तो एक बहाना था मित्रों से मिलने-मिलाने का। 29 अप्रैल को ललित भाई के पोस्‍ट के पब्लिश होते ही हम निकल पड़े दिल्‍ली की ओर ... 
यात्रा के दौरान नागपुर में सूर्यकांत गुप्‍ता जी नास्‍ते के पैकेटों और शीतल पेय के साथ स्‍वागत में खड़े मिले। मोबाईल कवरेज के संग पाबला जी हमारी यात्रा का अपने थ्री जी मोबाईल से वेबकास्‍ट करते रहे और हम लाईव दर्शकों की संख्‍या देखकर आनंदित होते रहे कि हमारी यात्रा का सीधा प्रसारण मित्र लोग देख भी रहे हैं। बीना के आसपास सुनीता शानू जी का फोन आया, उन्‍होंनें अधिकार स्‍वरूप आदेशित किया कि छत्‍तीसगढि़या ब्‍लॉगरों की सवारी उनके घर ही उतरेगी। हमारे यात्रा के प्रधान मूछों वाले शर्मा जी नें किंचित सकुचाते हुए हामी भरी, और कुछ अतिरिक्‍त शव्‍द जोड़े कि हम रामकृष्‍ण मेट्रो स्‍टेशन के सामने किसी होटल में रूकेंगें, प्रेश होने के बाद सुनीता जी के घर जायेंगें। पाबला जी के पोस्‍ट के साथ ही साथ गोंडवाना एक्‍सप्रेस छत्‍तीसगढ़ के पांच ब्‍लॉगरों मैं, बी.एस.पाबला जी, ललित शर्मा जी, जी.के.अवधिया जी एवं अल्‍पना देशपांडे जी को दिल्‍ली के निजामुद्दीन में लिफ्ट करा गई।
दिल वालों की दिल्‍ली में उतरते ही सभी के मोबाईल फोन लगातार घनघनाते रहे और हम तुरत-फुरत तैयार होकर बैठे ही थे कि सुनीता जी का फोन आ गया कि वे होटल के रिशेप्‍शन में आ गई हैं, दोपहर के भोजन के लिए हमें अपने घर ले जाने के लिए। तब तक ललित भाई से हुई चर्चा के अनुसार सतीश सक्‍सेना जी, दिनेशराय द्विवेदी जी, खुशदीप सहगल जी और शाहनवाज़ जी भी होटल पहुच गए। सुनीता जी के आदरपूर्वक आग्रह से वे सभी उनके घर आ गए। सुनीता जी के घर में भारी नास्‍ते के साथ मिले स्‍नेह को ललित भाई चित्रों और शव्‍दों में पिरोते गए और एक ठो पोस्‍ट ठेल गए। हम आश्‍चर्य से मेट्रो की व्‍यस्‍त दिनचर्या में दिल्‍ली वाले व्‍यवसायी दम्‍पत्ति को अपने कार्यालयीन समय को छोड़कर हमारी निस्‍वार्थ भाव से सेवा करते पाकर अभिभूत हो रहे थे, उनके संस्‍कारी बच्‍चों व माता-पिता का हमारे प्रति आदर व स्‍नेह इस कहावत को चरितार्थ कर रही थी कि दिल्‍ली दिलवालों की है। सचमुच सुनीता-पवन जी का हृदय विशाल है।
कुछ घंटे के ब्‍लॉगर मिलन के बाद सतीश सक्‍सेना जी, दिनेशराय द्विवेदी जी, खुशदीप सहगल जी और शाहनवाज़ जी हिन्‍दी भवन के लिए निकल गए और हम भी सुनीता शानू जी को सारथी बनाकर हिन्‍दी भवन की ओर निकल पड़े। कार्यक्रम स्‍थल पहुचने में मोबाईल कवरेज नहीं मिलने के कारण जीपीआरएस ने कुछ भटकाया और इसी बहाने हमने दिल्‍ली के हृदय से रक्‍त संचारित होती सी चौड़ी सड़कों सी धमनियों से परिचित होते रहे। पाबला जी के अगली सीट पर बैठे होने के कारण यान के एसी ने हम लोगों के साथ कट्टी कर ली थी किन्‍तु ललित जी के मूछों के बालों को उड़ते देखकर हम सब संतुष्‍ट थे कि एसी की हवा हम तक पहुच ही रही है। ... और उड़ते मूंछों को संवारते ललित भाई नें हिन्‍दी भवन को देख गाड़ी रूकवाई, हिन्‍दी भवन के बाहर दो-तीन नौजवान भरी गरमी में चहल-कदमी कर रहे थे, देखने से लग रहा था कि वे नवोदित ब्‍लॉगर हैं।
द्वितीय तल में पहुचने पर बाहर पुस्‍तकों का स्‍टाल लगा चुका था और अनजान चेहरे वहॉं मौजूद थे, जाहिर था कि वे हिन्‍दी साहित्‍य समिति बिजनौर के कार्यकर्ता थे। अंदर हाल में गहमा-गहमी का आरंभ हो चुका था और स्‍टेज में डॉ.गिरिराज अग्रवाल की पुत्री गीतिका गोयल कार्यक्रम संचालित कर रही थी। हमने परिचित-अपरिचित ब्‍लॉगर मित्रों की ओर मुस्‍कान बिखेरते हुए हाल के बीच रिक्‍त सीट में ललित जी और पाबला जी के अतिरिक्‍त हम सब जम गए, ललित जी और पाबला जी मित्रों से गले मिलते-हाथ मिलाते सामने की कुर्सियों की ओर बढ़ गए जहां स्‍नेहिल आंखें उनका इंतजार कर रही थी। हमारी आंखें परिचितों को ढ़ूंढ़ती रही, मंच के पास कुर्सियों की बायीं पंक्तियों में अविनाश वाचस्‍पति जी किसी से कानाफूसी करते नजर आये फिर रविन्‍द्र प्रभात जी कत्‍थई शेरवानी में मंच में चहलकदमी करते नजर आये। हमने लम्‍बी सांसें भरी कि चलो दो तो परिचित दिखे। फिर सामने कुर्सियों पर श्रीश शर्मा जी (ई पंडित) भी नजर आ गए, हमें अकचकाये इधर-उधर झांकते देखकर हमारी कुर्सी की अगली पंक्तियों में बैठे अजय झा ने हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो स्‍मार्ट चुलबुल पाण्‍डे को सामने पाकर अच्‍छा लगा।
कार्यक्रम आरंभ हुआ और श्रीश शर्मा जी (ई पंडित) एवं दिनेशराय द्विवेदी जी को मंच पर देखना-सुनना हमारी शुरूवाती ब्‍लॉगिंग के दिनों को याद दिलाती रही। मंच के नीचे सक्रिय रश्मि प्रभा जी पहचान में आ गई और दिल को सुकुन मिला कि उन्‍हें याद है कि हमने ही हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में उनका परिचय पोस्‍ट लिखा था, उनके स्‍नेह को मेरा प्रणाम। अविनाश वाचस्‍पति व जाकिर अली रज़नीश जी नें आगे बढ़कर हमसे हाथ मिलाया और अपनी-अपनी कुर्सियों की ओर बढ़ गए। डॉ.टी.एस.दराल जी और राजीव तनेजा जी रतन सिंह शेखावत जी के साथ ललित भाई नें फोटो खिंचवाया, परिचय करवाया। रतन जी से उबंटू के संबंध में बातें करनी थी किन्‍तु समय नहीं मिल पाया। जाने-अनजाने ब्‍लॉगर्स मित्र कुर्सी पंक्तियों के रिक्‍त स्‍थानों पर मिलते-मिलाते और मुस्‍कुराते रहे। हम चाहकर भी अपनी सीट में धंसे रहे क्‍योंकि आज पता चल रहा था ब्‍लॉग पोस्‍टों से अधिक अहमियत टिप्‍पणियों का टीपिया संबंधों का। जिनके पोस्‍टों को हम गूगल फीड रीडर से बरसों पढ़ते रहे वो हमसे अनजान रहे, टिपिया वालों को खुली बांहें इंतजार करती रही। आह ... खैर ... हमें सम्‍मानित किया गया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र के मध्‍यांतर में श्रीश बेंजवाल शर्मा जी (ई पंडित), अमरेन्‍द्र त्रिपाठी जी ने हमें पहचाना और साथ में क्लिक भी चमकवाए। सुनीता जी ने सुदर्शन नौजवान महफूज़ को हमसे मिलाया तो हम एकबारगी पहचान नहीं पाये और महफूज़ भाई नें प्रेम से झिड़का कि क्‍या भईया आपसे पच्‍चीसों बार फोन पर चर्चा हुई है फिर भी नहीं पहचान पाये। गांव में पेंड़ के सबसे उंचे और पतले डंगाल पर पांव को साधते हुए चढ़कर आम तोड़ने जैसी जद्दोजहद कर के नास्‍ते के दो प्‍लेट सम्‍हाले बाहर आया तो सुनीता जी नें पवन चंदन जी से मिलवाया, व्‍यंग्‍यकार महोदय हास्‍य रस में बतियाते हुए हमसे मिले फिर भीड़ में खो गए। मेरे सहित अनेक सम्‍मानित ब्‍लॉगर प्राप्‍त सम्‍मान पत्र, मोमेंटो, पुस्‍तकों को हाथें में सम्‍हालते-समेटेते विचरते रहे, हमने झोले का जुगाड़ चाहा पर नहीं मिल पाया, जाकिर अली रजनीश जी दो व्‍यक्तियों के सम्‍मान को रस्सियों में बांधकर हाथ में पकड़ने लायक जुगाड़ बनाकर अपने विज्ञान विषयक ब्‍लाग का याद दिला दिया था। वापस पुस्‍तकों के काउंटर पर प्रतिभा जी से किसी नें परिचय कराया, संजू तनेजा जी को हाथ जोड़कर नमस्‍कार करने पर उन्‍होंनें हमें पहचाना, राजीव तनेजा जी से पहले ही मुलाकात हो चुकी थी और वे हमारी तस्‍वीर हंसते रहो के लिए अपने कैमरे में सहेज चुके थे। भीड़ का एक हिस्‍सा बने हम द्वितीय सत्र के लिए अंदर हाल में आ गए। पवन जी हिन्‍दी भवन के द्वार पर सुनीता जी का इंतजार कर रहे थे, सुनीता जी को आवश्‍यक कार्यों से अपने घर निकलना था सो वे अपने घर के लिए निकल पड़ी।
हाल में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों ने कालजयी साहित्यकार रविन्द्र नाथ टैगोर की बंगला नाटिका 'लावणी' का हिंदी रूपांतरण प्रस्तुत किया, कसावट एवं अपनी सभी नाट्य खूबियों से परिपूर्ण इस प्रस्‍तुति नें सभागार में उपस्थित दर्शकों को मन्त्र मुग्ध कर दिया। नाट्य प्रस्‍तुतियों को थियेटर के अंतिम छोर पर बैठकर देखना मुझे सदैव भाता है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों ने इस प्रस्‍तुति में अपनी प्रतिभा को सिद्व किया, मैं उनके उत्‍तरोत्‍तर सफलता की कामना करता हूँ. नाट्य प्रस्‍तुति के बाद मैं लगभग अलग-थलग बाहर निकला, ललित शर्मा जी एवं अल्‍पना देशपांडे जी के साथ आत्‍मीयता से चर्चारत संगीता पुरी जी को मैंनें इंटरप्‍ट करते हुए हाथ जोड़कर (ललित भाई से उनके पोस्‍टों के संबंध में अक्‍सर चर्चा होती रहती है इसलिये सम्‍मान स्‍वरूपअपना परिचय दिया पर संगीता पुरी जी नें उड़ती नजर हमपे डाली, कोई प्रतिउत्‍तर नहीं मिला तो हमने समझा कि विघ्‍न डालने के बजाए चलता किया जाय। उसके बाद से हम जिन्‍हें पहचान रहे थे उन्‍हें भी नमस्‍कार करने की हिम्‍मत ना जुटा पाये .... :) :)  संगीता जी अल्‍पना देशपांडे से चर्चा कर रही थीं, बीच-बीच में कई ब्‍लॉगर्स उनको नमस्‍कार भी कर रहे थे, जगह कुछ कम थी जहां सभी ब्‍लॉगर्स इकत्रित थे सो भीड़ भी था। हो सकता है कि संगीता पुरी जी इन्‍हीं कारणों से हमें ध्‍यान नहीं दे पाई, किन्‍तु हमने अपनी आस्‍था पूरी श्रद्धा से प्रस्‍तुत की। हमारे अधिकार का आर्शिवाद उनके पास जमा रहेगा फिर कभी मुलाकात होगी तो साधिकार लेंगें। 

नीचे रात्रि का भोजन लग चुका था और वक्‍़त थी कि भागे जा रही थी... तो हमने अमरेन्‍द्र त्रिपाठी जी को ढ़ूढा और हम भोजन लेने क्‍यू से जुड़ गए, भोजन करते हुए और शेष समय पर हम दोनों छत्‍तीसगढ़ी और अवधि पर ही बातें करते रहे, यह मेरी पूर्वनियोजित और आवश्‍यक चर्चा थी। जेएनयू में पीएचडी कर रहे अमरेन्‍द्र भाई की भाषा एवं ज्ञान का मैं कायल हूँ, अपने अध्‍ययन की अतिव्‍यस्‍तता के बावजूद स्‍थानीय भाषा के प्रति उनका जुनून मुझे गुरतुर गोठ में रमने को प्रेरित करता है। भोजन के समय ही यह तय हो चुका था कि गिरीश बिल्‍लोरे जी भी हम लोगों के साथ होटल चलेंगें सो हम उनका बाहर इंतजार करते रहे, हमें छोड़ने पद्मसिंह जी अपनी गाड़ी से पहले गांधी शांति प्रतिष्‍ठान फिर हमारे होटल की ओर आगे बढ़े। छत्‍तीसगढ़ की टीम नें शायद 'भूलन खूँद' लिया था इस कारण पद्मसिंह जी को घुमावदार रास्‍तों से हमें होटल पहुचना पड़ा।   क्रमश: ....



संजीव तिवारी 

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढ़िया और विस्तृत रूप से लिखी है आपने अपनी रिपोर्ट... बहुत ही मज़ा आया था आप सभी से मिलकर....

    जवाब देंहटाएं
  2. वाकई सुनीता पवन जी ने दिल जीत लिया ! आज के समय में आतिथ्य सत्कार की यह मिसाल नहीं मिलती ! आप भी अपनी छाप छोड़ने में समर्थ हैं ! शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  3. विस्तृत और अच्छी रिपोर्ट।

    जवाब देंहटाएं
  4. जब सम्मानित जन अपने मोमेंटो /प्रशस्ति पत्र बाँधने के लिए हलाकान थे तो बांटने वालों की मेहनत / मशक्कत / हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है :)

    टीपिया संबंधों पर आपके अवलोकन से यह प्रतीत होता है कि ब्लागरों के आपसी रिश्ते संविदात्मक है :)

    सूर्यकांत गुप्ता जी और सुनीता शानू पवन दंपत्ति के आतिथ्य ने निश्चित रूप से सम्बन्धों की संविदात्मक अनुभूति और उसकी तिक्तता को कम किया होगा :)

    ललित जी को अपनी मूंछ द्वय के वज़न साम्य को ध्यान में रख कर ही आजू बाजू के दो बन्दों के साथ फोटो खिंचवानी चाहिए ,अलग अलग वज़न के मित्र मूंछों की शोभा बिगाड़ते हैं यह बात याद रखनी होगी :)

    पाबला जी और दिनेश राय द्विवेदी जी की सोहबत में सतीश भाई और आप सभी को आनंदित पाकर हम भी मगन हैं !

    रिपोर्ट अच्छी है ! आयोजन अच्छा तो सब अच्छा ! सर्व सम्मानितों को शुभकामनायें :)


    और हां सारस्वत और वाचस्पत में कोई जोड़ बैठता है क्या ? ये ज़रूर बताइयेगा :)

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छा विस्तार दिया है आपने...मजा आ रहा है पढ़कर.

    जवाब देंहटाएं
  6. बढि़या प्रस्‍तुति के लिए धन्‍यवाद और सम्‍मान की बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  7. दामा खेडा वाले साहेब ला साहेब बंदगी.

    जवाब देंहटाएं
  8. संजीव जी, बहुत सुन्दर पोस्ट लिखी है आपने अच्छा लगा। दर असल यह तो ब्लॉगरों के मिलने का एक ज़रिया था जिसका हम सभी ने पालन भी किया और सच कहें तो सब से मिल कर मज़ा आ गया।

    जवाब देंहटाएं
  9. संजीव भाई ! बेरा पहागे ,तुंहर कलम के लिखे कुछू तो,पढ़े बर मिलिस.दिल्ली यात्रा के बिवरण बिस्तार से आपमन लिखे तो हौ फेर अपन पीरा ला नई लुका पाये हौ.घायल है के गति ,घायल जाने अऊ न जाने कोय.एक शेर के सुरता आवथे -हँसती हुई आँखों में भी ग़म पलते हैं,कौन मगर झाँके इतनी गहराई में (अज्ञात)....अइसन गोठ के न तो मौका हे ,न दस्तूर.तुंहर कलम माँ पीरा देखेवं,अनझटहा कहि पारेवं .दिल्ली मा ईनाम-सम्मान पाये सबो छत्तीसगढ़िया भाई-बहिनी ला बधाई .(सरलग ....)

    जवाब देंहटाएं
  10. आप मन गुरतुर गोठ के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी भासा ला सरी दुनिया मा पहुंचावत हौ. का हमर छत्तीसगढ़ मा अइसन आयोजन नई करे जा सकै ? छत्तीसगढ़ी के परचार-परसार बर हम समे -समे मा बड़े-बड़े बिद्वान मन के बड़े-बड़े बिचार ला पढ़े अऊ सुने हन.अब अइसन कुछू होना च चहिए जेमा छत्तीसगढ़ी बर समरपित तुंहर असन ब्लागर्स भाई मन के सम्मान हो सके.छत्तीसगढ़ मा कुछु-कुछु "पावर-फुल" मनखे मन घला ब्लाग लिखे के सऊँक रखथें ,उन मन अगर चाह लें तो कोनो मुस्किल कम नई हे .बिचार करौ.

    जवाब देंहटाएं
  11. bahut sunder reporting bina kisi laaag lapate ke ....

    kabhi na kabhi to mulakaat hogee...

    jai baba banaras....

    जवाब देंहटाएं
  12. संजीव जी, बहुत अच्छी पोस्ट .... ऐसा लग रहा है जैसे मैं भी वहाँ हूँ...

    सम्मान के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ व बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  13. दिल्ली यात्रा कैसी रही,यह जानने की बहुत उत्सुकता थी.आपने यात्रा का विस्तारपूर्वक वर्णन लिखा है.पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.अनुभूतियों की सहज प्रस्तुति के लिए बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही बढ़िया रिपोर्ट...
    प्रस्तुति के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  15. Bhaaii Sanjeev Tiwari jii,

    Sammaan ke liye anekaanek badhaaiyaan! Yaatraa avam kaaryakram kaa vivran padhate-padhate saaraa kuchh sajeev ho uthaa; lagaa padh nahin rahaa hun balki film dekh rahaa hun.

    जवाब देंहटाएं
  16. किसी कारणवश ब्लॉगजगत से दूर रहे...लेकिन नाता तो रहता ही है...पहले तो सम्मान के लिए बधाई ... दूसरा आपकी विस्तृत रिपोर्ट पढ़कर सोच रहे हैं कि काश हम भी वहाँ होते...

    जवाब देंहटाएं
  17. संक्षिप्त लेकिन विवरण भरी रिपोर्ट।

    जवाब देंहटाएं
  18. बढ़िया एवं विस्तृत रिपोर्ट...अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा...आप सबसे मिल कर अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  19. शुक्रिया इस बढ़िया रिपोर्ट की प्रस्तुति के लिए आपको भाई साहब, यह बढ़िया रहा कि इतने ब्लागर से एक साथ मुलाकात हो गई.
    अब दूसरी किश्त का इन्तेजार रहेगा

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...