पिछले दिनों इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा इंटरनेशनल इंडीजिनस डे के अवसर पर कर्नाटक के शहर मैसूर में स्थित देश के प्रख्यात प्रेक्षागृह एवं आर्ट गैलरी जगमोहन पैलेस में 10 व 11 अगस्त को आयोजित इंटरनेशनल इंडीजिनस फेस्टिवल में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक जनजातीय नृत्यों की श्रृंखला जब बस्तर बैंड के रूप में भव्य नागरी मंच में प्रस्तुत हुआ तो संपूर्ण विश्व से आये कला प्रेमी उस प्रदर्शन को देखकर भावविभोर हो उठे। मैसूर के जगमोहन पैलेस के प्रेक्षागृह में बस्तर बैंड के कलाकारों ने लगातार दो दिनों तक ऐसा समां बांधा कि रंगायन एवं निरंतर फाउंडेशन जैसे प्रसिद्ध कला केंद्र ने उन्हें 13 अगस्त को पुन: प्रस्तुति के लिए बुलाया। इनकी प्रस्तुति की शिखर सम्मान प्राप्त बेलगूर मंडावी ने भी जमकर सराहना की और इस आयोजन के समाचार अंग्रेजी समाचार पत्रों के पन्नो पर भी छाए रहे।। तीन साल पहले सिक्किम के जोरथांग माघी मेले में पहली बार किसी बड़े मंच पर बस्तर बैंड को मौका मिला था। तब किसी ने नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी इसके कलाकार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर धाक जमाएंगे।
इस प्रस्तुति में बस्तर के लगभग सभी समुदाय के प्रतिनिधि कलाकार हैं. कलाकारों के इस दल में माया लक्ष्मी सोरी, इडमें ताती, बुधराम सोरी, विनोद सोरी, कोसादेवा, रूपसाय सलाम, कज्जु राम, चंदेर सलाम, दसरू कोर्राम, संताय दुग्गा, जुगो सलाम, नीलूराम बघेल, श्रीनाथ नाग, कमल सिंग बघेल, समारू राम नाग, रामलाल कश्यप, विक्रम यादव, सुकीबाई बघेल, रंगबती बघेल, बाबूलाल बघेल, लच्छू राम, लखेश्वर खुदराम, बाबूलाल राजा मुरिया, सहादुर नाग, फागुराम, पुरषोत्तम चन्द्राकर, अनूप रंजन आदि शामिल हैं. परिकल्पना, संयोजन एवं निर्देशन अनूप रंजन पाण्डेय का है
बस्तर बैंड मूलत: बस्तर के आदिम जनजातियों की सांगीतिक प्रस्तुति है जिसमें आदिम जनजातियों के संगीत व गीतों के ऐसे नाद की प्रधानता है जो वेद की ध्वनि 'चैंन्टिग' का आभास कराता है। इस नाद में गाथा, आलाप, गान और नृत्य भी है, जिसमें बस्तर आदिवासियों के आदि देव लिंगों के 18 वाद्य सहित लगभग 40 से ज्यादा परंपरागत वाद्य शामिल है। बैंड समूह के प्रत्येक कलाकार तीन से चार वाद्य एक साथ बजाने में पारंगत है। तार से बने वाद्य, फूंक कर मुह से बजाने वाले वाद्य और हाथ व लकड़ी के थाप से बजने वाले ढोल वाद्यों और मौखिक ध्वनियों से कलाकार मिला-जुला जादुई प्रभाव पैदा करते हैं। इसकी प्रस्तुति में ऐसा आभास होता है कि हम हजारो वर्ष पीछे आदिम युग में आ गए हों। बस्तर के आदिम जनजाति घोटूल मूरिया और दंडामी माड़िया दोनों की परंपराओं में विभिन्नतायें हैं एवं उनके वाद्य यंत्र भी भिन्न हैं। बस्तर बैंड ने इन दोनों के आदिम जीवन के सारे रंगों को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की है। इन जनजातियों के अतिरिक्त बस्तर के कई अन्य जनजातियों के लोगों को इसमें शामिल करके परिधान, संस्कार, अनुष्ठान, आदिवासी देवताओं की गाथा आदि की मिली-जुली संगीतमय अभिव्यक्ति दी गई है। यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि अनूप का यह बैंड, बस्तर के लोक एवं पारंपरिक जीवन का सांगीतिक स्वर है. इसमें सदियों से चली आ रही आदिम संस्कृति एवं संगीत की अनुगूंज है। बस्तर बैण्ड में समूचे बस्तरिया समुदाय के विलुप्त होते पारंपरिक, प्रतिनिधि लोक एवं आदिम वाद्यों की सामूहिक सांगीतिक अभिव्यक्ति है।
बस्तर में आदिवासी लिंगो देव को अपना संगीत गुरू मानते हैं. मान्यता यह भी है कि लिंगो देव ने ही इन वाद्यों की रचना की थी. 'लिंगो पाटा' या लिंगो पेन यानी लिंगो देव के गीत या गाथा में उनके द्वारा बजाए जाने वाले विभिन्न वाद्यों का वर्णन मिलता है। यद्यपि वर्णन में प्रयुक्त कुछेक वाद्य लगभग विलुप्त हो चुके हैं, बावजूद इसके बस्तर बैण्ड के परिकल्पना को साकार करने वाले अनूप के प्रयासों से विलुप्तप्राय: इन वाद्यों को सहेजकर उन्हें पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है। नाट्य व कला समीक्षक राजेश गनोदवाले जी बस्तर बैंड पर लिखते हुए बड़ी संजीदगी से कहते हैं कि 'अनूप नें प्रकृति के उस आवाज को सम्हालने की कमान उठा ली है जो आतंक मचाते आधुनिक संगीत और विकास के परिणाम स्वरूप बिगड़ने वाले सामाजिक असंतुलन की भेट चढ़ गया।' उनका कहना सर्वथा उचित प्रतीत होता है क्योंकि वर्तमान परिस्थिति में बिखर रहे सामाजिक ताने बाने को भाषा, बोली सहित असली जातीय सुगंध की रक्षा करने वाली कम्यूनिटी फीलिंग जागृत करने में ऐसे सांगीतिक प्रस्तुति की अहम भूमिका है।
बस्तर बैण्ड में कोइतोर या कोया समाज जिनमें मुरिया, दण्डामी माडिया, धुरवा, दोरला, मुण्डा्, माहरा, गदबा, भतरा, लोहरा, परजा, मिरगिन, हलबा आदि तथा अन्य कोया समाज के पारंपरिक एवं संस्का्रों में प्रयुक्त, वाद्य संगीत, सामूहिक आलाप-गान को प्रस्तुत किया जा रहा है. बस्तर बैण्ड के वाद्यों में माडिया ढोल, तिरडुडी़, अकुम, तोडी़, तोरम, मोहिर, देव मोहिर, नंगूरा, तुड़बुडी़, कुण्डीडड़, धुरवा ढोल, डण्डार ढोल, गोती बाजा, मुण्डा बाजा, नरपराय, गुटापराय, मांदरी, मिरगीन ढोल, हुलकी मांदरी, कच टेहण्डोर, पक टेहण्डोर, उजीर, सुलुड, बांस, चरहे, पेन ढोल, ढुसीर, कीकीड, चरहे, टुडरा, कोन्डोंडका, हिरनांग, झींटी, चिटकुल, किरकीचा, डन्डार, धनकुल बाजा, तुपकी, सियाडी बाजा, वेद्दुर, गोगा ढोल आदि प्रमुख हैं.
बस्तर बैंड के संयोजन, निर्देशन और परिकल्पना रंगकर्मी एवं लोककलाकार अनूपरंजन पांडेय कहते हैं कि हमारा प्रयास इस बैंड के रूप में बस्तर की अलग-अलग बोलियों और प्रथाओं को एक मंच पर लाने का है। आगे वे सहजता से स्वीकार करते हुए कहते हैं कि वे स्वयं इन कलाकारों से निरंतर सीख रहे हैं, विलुप्त होते आदिवासी वाद्य यंत्रों के संग्रहण के जुनून ने कब बस्तर बैंड की शक्ल अख्तियार कर ली पता ही नहीं चला। इस खर्चीले, श्रम समय साध्य उपक्रम की शुरुआत करीब 10 साल पहले हुई थी, लेकिन 2004 के आसपास बैंड ने आकार लिया। किसी बड़े मंच पर तीन साल पहले उसकी पहली प्रस्तुति हुई। अनूप रंजन पाण्डेय से चर्चा करने पर ज्ञात हुआ कि देशभर में छा जाने वाला वाला जनजातीय संगीत (जिसमें गीत वाद्य, नृत्य शामिल है) से परिपूर्ण, आदिवासी संस्कृति की संपूर्ण झलक दिखाने वाला यह बैंड, अक्टूबर में होने वाले दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में अपनी छटा बिखेरेगा। इसे दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन अवसर की चुनिंदा प्रस्तुतियों के लिए रखा गया है। जहां बस्तर के लोक संगीत और विलुप्त वाद्यों के साथ 40 से ज्यादा कलाकार गजब का प्रभाव छोड़ने वाली एक से डेढ़ घंटे की प्रस्तुति देंगे।
यह प्रदर्शन दर्शकों को बस्तर के कोने-कोने की संगीतमय यात्रा कराएगी एवं प्रकृति के सबसे करीब होने का अहसास भी कराएगी। बस्तर बैंड के इसी ख्याति के आधार पर ही कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति ने आयोजन अवसर पर 3 से 6 अक्टूबर के बीच इन्हें प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया है। इसके पूर्व 17 सितम्बर को दिल्ली सेलीब्रेट (दिल्ली सरकार) के द्वारा संध्या 6 से 9 बजे दिल्ली हॉट में बस्तर बैंड का प्रदर्शन होने जा रहा है, दिल्ली और उसके आस-पास के पाठकों से मेरा निवेदन है कि इस प्रदर्शन को अवश्य देखें।
पारंपरिक वाद्य यंत्रों और प्रकृति-उन्मुखी कलाकारों को बैंड की शक्ल में सहेजने की कोशिश काबिल-ए-तारीफ़ है ! कामन वेल्थ गेम्स के अवसर पर इस प्रस्तुति को जरुर देखेंगे ! एक अच्छी प्रस्तुति के लिये आप को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसमर्पण की अनूठी मिसाल.
जवाब देंहटाएं... jay jay chhattisgarh ... bahut sundar ... prabhaavashaalee post !!!
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंमैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
janakari parak
जवाब देंहटाएंVahh! Bison Maria dance & music !
जवाब देंहटाएंPrayash Karate hai dekhane ka.
Ye aakhari ka Photo 'Dhankul' Ka hai na, Sir.
जवाब देंहटाएंक्षेत्रीय संस्कृति की बेजोड़ प्रस्तुति, आभार.
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनांए.
मुझे लगता है इसे प्रत्यक्षत: अनुभूत करना वाकई एक अलग ही एहसास देता होगा.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
behad saarthak lekh
जवाब देंहटाएं@ अली भईया, राहुल भईया, श्याम भाई, राजभाषा हिन्दी जी, कौशल भाई, सुनहरे स्वप्न जी, प्रे.वि. त्रिपाठी जी, संजीत भाई धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमाणिक जी आपका विशेष आभार आपने मेरे ब्लॉग का जिक्र अपने वेब पोर्टल पर किया.
शुभकामनाएँ और बधाई, बस्तर और छत्तीसगढ़ के इस समूह को
जवाब देंहटाएंअक्तूबर में होने वाले दिल्ली कमान वेल्थ गेम्स में इस बैंड के प्रदर्शन का इन्तजार रहेगा ......
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इस जानकारी के लिए .....!!
बहुत सुन्दर पोस्ट। ज्ञानवर्धक और अंचलों में घुमाकर लाती।
जवाब देंहटाएंsudar post ke liye badhai
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया और विस्तृत जानकारी...
जवाब देंहटाएंतस्वीरें शानदार है...शुक्रिया
बस्तर बैण्ड के सभी कलाकार साथियों को बधाई
जवाब देंहटाएंअनूप भईया को नमन,शुभकामनाएं
सहधन्यवाद आपका
अच्छी जानकारी है ........
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
कृपया विजेट पोल में अपनी राय अवश्य दे ...
अच्छी जानकारी , शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी भईया और फोटो मोहक हैं. छत्तीसगढ़ की खुशबू सर्वत्र फैले. बधाई.
जवाब देंहटाएंI appreciate your lovely post, happy blogging!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रयास।
जवाब देंहटाएं---------
ब्लॉगर्स की इज्जत का सवाल है।
कम उम्र में माँ बनती लड़कियों का एक सच।
आपका यह प्रयास सार्थक है, जानकारी के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंइस अद्भुत जानकारी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर शानदार पोस्ट के लिये धन्यवाद गुरू। अच्छा लगा तस्वीरे देख कर शानदार...जानदार पोस्ट।
जवाब देंहटाएंयह बहुत बढ़िया जानकारी है । लोगों को पता चले कि बस्तर में सिर्फ गोलियों की आवाज़ नही गून्जती संगीत के स्वर भी सुनाई देते हैं ।
जवाब देंहटाएंchhattisgarhi kala ko vishwaistriya
जवाब देंहटाएंpahchan dilane ke liye hardik bhadhai.
Dr. Ashish sharma
E-mail;- dr.sharma.ashish@gmail.com
बस्तर बेंड का जवाब नहीं!
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