विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
1 सितम्बर 1923 को बैजनाथपारा, रायपुर, छत्तीसगढ में जन्में हबीब अहमद खान के पिता हाफिज मुहम्मद हयात खान माता नजीरून्निशा बेगम थीं । रायपुर से चलते हुए इस पथिक नें पूरी दुनियॉं नापी, दुनियां के लगभग सत्रह देशों में अपनी नाट्य प्रस्तुतियां दी और ढेरों सम्मान एवं पुरस्कार अर्जित किये। नाट्य के लिये संगीत नाटक अकादमी का पुरस्कार 1969, शिखर सम्मान 1975, मनोनीत राज्य सभा सदस्य, जवाहर लाल नेहरू फेलोशिप, पं. सुन्दर लाल शर्मा पीठ रविशंकर विवि में विजिटिंग प्रोफेसर, अंतर्राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव में फ्रिंज फस्ट एवार्ड एडिनबरा 1982, भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से विभूषित 1982, इंदिरा कला संगीत विवि से डी.लिट की मानद उपाधि 1983, दिल्ली साहित्य कला परिषद का पुरस्कार 1983, नांदीकार पुरस्कार कलकत्ता, महाराष्ट्र राज्य उर्दू अकादमी पुरस्कार, आदित्य बिडला पुरस्कार, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का भवभूति अलेकरण 1990, कालिदास सम्मान 1990, रविन्द्र भारती विवि कलकत्ता द्वारा मानद डी.लिट की उपाधि 1993, छत्तीसगढ शासन का दाउ मंदराजी सम्मान 2002, राष्ट्रीय अलंकरण पद्मभूषण