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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

आदिवासियों पर आधारित एनिमेशन फिल्‍म


मघ्‍य भारत के आदिवासियों की कहानियों पर आधारित पांच एनिमेशन फिल्‍मों का निर्माण ब्रिटेन निवासी तारा डगलस नें किया है जिसका प्रदर्शन पूरे विश्‍व में रोड शो के द्वारा किया जा चुका है एवं सराहा जा चुका है । इस फिल्‍म को नेशनल जियोग्राफिक फिल्‍म फेस्टिवल, नेहरू सेंटर, स्‍कूल आफ ओरियंटल एंड अफ्रिकन स्‍टडीज, द रैडिकल बुक फेयर एडिनबरा और स्‍कार्टलैण्‍ड में दिखाया जा चुका है ।

हिन्दी, अंग्रेजी और हल्‍बी समेत आठ भाषाओं में उपलब्‍ध इन फिल्‍मों को भारत के विभिन्‍न आदिवासी क्षेत्रों में ब्रायन गिनीज चैरिटेबल ट्रस्‍ट द्वारा अपने आदिवासियों के लिए सर्मपित कार्यक्रम द टालेस्‍ट स्‍टोरी काम्‍पीटिशन के तहत उपलब्‍ध कराया गया है । छत्‍तीसगढ में यह आयोजन छत्‍तीसगढ पर्यटन एवं आर्ट होम संस्‍था के सहयोग से 27 सितम्‍बर को राजधानी रायपुर के राजभवन के पीछे स्थित ऐतिहासिक ‘मेसानिक लाज’ में किया गया । पूरे समाचार की जानकारी हमें मिल नहीं पाई है, आज नया रायपुर से भिलाई वाप आते समय हमारे एक मित्र नें इसकी जानकारी दी । घर आकर हमने इस सीमित जानकारी को नेट में खगालना आरंभ किया एवं जितनी जानकारी उपलब्‍ध हो सकी आप लोगों को प्रस्‍तुत कर रहे हैं फिल्‍म की कहानी व अन्‍य जानकारी आवारा बंजारा वाले संजीत त्रिपाठी जी यदि उक्‍त कार्यक्रम में उपस्थित हो पाये हों तो, अपनी टिप्‍पणी के द्वारा देवें तो यह पोस्‍ट पूर्ण हो जायेगा।

पांच फिल्‍मों में से एक ‘हाउ द एलिफेंट लोस्‍ट हिज विंग्‍स’ में छत्‍तीसगढ के बस्‍तर के पारंपरिक व 250 वर्षो से प्रसिद्ध आदिवासी शिल्‍पकला ‘ढोकरा शिल्‍प’ को थ्री डी एनिमेशन से जीवंत रूप में प्रस्‍तुत किया गया है एवं अंचल के पारंपरिक कहानी जिसमें पूर्व में हांथी के पंख हुआ करते थे किन्‍तु हाथी अपने आताताई स्‍वभाव के कारण अपना पंख खो दिया, को मोहक रूप से प्रस्‍तुत किया गया है ।

पांचो फिल्‍म में से ‘हाउ द एलिफेंट लोस्‍ट हिज विंग्‍स’ को पूरे विश्‍व में सराहा गया है जिसकी जानकारी अनेको वेब साईटों में उपलब्‍ध है किन्‍तु यह फिल्‍म मुफ्त में प्रदर्शन के लिए उपलब्‍ध नहीं होने के कारण हम इसे यहां प्रस्‍तुत नहीं कर पा रहे हैं किन्‍तु बस्‍तर के इस पारंपरिक एवं विश्‍व प्रसिद्ध कला के संबंध में नेट में उपलब्‍ध एक फीचर हम यहां जानकारी के लिए प्रस्‍तुत कर रहे हैं देखें बस्‍तर की पारंपरिक कला को जीवंत :

टिप्पणियाँ

  1. कुछ दिनों पहले डिस्कवरी चैनल में छतीसगढ और बस्तर पर डाक्युमेंटरी देखी थी ।आदिवासी कहानियों को नये स्वरुप में देखना और दिखाना एक नई पहल है । एक सराहनीय प्रयास ।

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  2. Thanks, Sanjeeva

    Yah film Bastar ki janjivan ki kahani hai.

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  3. अब तो ये देखनी पडेगी।

    जवाब देंहटाएं
  4. जाना तो नही हो पाया पर खबर के लिए कोशिश करता हूं!
    शुक्रिया इस जानकारी के लिए!

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  5. सार्थक प्रयास. आभार, इस जानकारी के लिये.

    जवाब देंहटाएं

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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