tag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post3966231209603418275..comments2024-02-29T08:28:48.349+05:30Comments on आरंभ Aarambha: अब के कवि खद्योत सम जंह -तंह करत प्रकाश36solutionshttp://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-48016854075673413612014-09-12T14:20:25.756+05:302014-09-12T14:20:25.756+05:30बढिया। बेबाक और बिन्दास लहजे में अपनी बात रखनी है...बढिया। बेबाक और बिन्दास लहजे में अपनी बात रखनी है आपने।जीवन और जगत https://www.blogger.com/profile/05033157360221509496noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-45500730443174846032014-09-07T14:20:14.112+05:302014-09-07T14:20:14.112+05:30 साहित्य का संसार बहुत व्यापक और विविध - आयामों मे... साहित्य का संसार बहुत व्यापक और विविध - आयामों में जन्म लेता है और क्रीडायें करता रहता है , इस विशाल - संसार में सब का सब से परिचय नहीं हो पाता , चाह कर भी हम सभी साहित्य से परिचित भी नहीं हो पाते फिर भी इस बात का संतोष है कि आज भी ,साहित्यकारों और पाठकों में अच्छी रचनाओं की परख है , यही हमारे लिए परितोष का विषय है । शकुन्तला शर्माhttps://www.blogger.com/profile/12432773005239217068noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-25342521236938162462014-08-31T15:55:01.070+05:302014-08-31T15:55:01.070+05:30बहुत ई सुन्दर प्रस्तुति !बहुत ई सुन्दर प्रस्तुति !देवदत्त प्रसूनhttps://www.blogger.com/profile/06275143755319297820noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-52213452939225744892014-08-31T14:11:14.539+05:302014-08-31T14:11:14.539+05:30और हाँ, इस पोस्ट का शीर्षक ज्यादा ठीक यह होता -
अ...और हाँ, इस पोस्ट का शीर्षक ज्यादा ठीक यह होता -<br /><br />अब के कवि इन्फ्रारेड लाइट सम, कोउ न जाने कहं करे प्रकास!रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-87621016582851406702014-08-31T13:54:32.623+05:302014-08-31T13:54:32.623+05:30सही बात पूछ रहे हैं तथाकथित साहित्यकार गण. आखिर आप...सही बात पूछ रहे हैं तथाकथित साहित्यकार गण. आखिर आपने अपने ही खर्चे से दो-चार कविता संग्रह छपवा कर धांसू टाइप विमोचन तो करवाया ही नहीं है अब तक तो फिर आपका अवदान शून्य ही तो होगा ना? :)रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.com