tag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post2194045498054774437..comments2024-02-29T08:28:48.349+05:30Comments on आरंभ Aarambha: कबीर हँसणाँ दूरि करि, करि रोवण सौ चित्त । बिन रोयां क्यूं पाइये, प्रेम पियारा मित्व ॥36solutionshttp://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-34247503996275082732010-02-15T00:31:00.745+05:302010-02-15T00:31:00.745+05:30वाह भाई संजीव । कबीर तो मेरे प्रिय कवि है । कबीर क...वाह भाई संजीव । कबीर तो मेरे प्रिय कवि है । कबीर के भंडार से यह मोती चुन कर लाने के लिये बहुत बहुत धन्यवादशरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-38165870683261579352010-02-14T21:24:38.163+05:302010-02-14T21:24:38.163+05:30अद्भुत संयोजन संजीव,अली भाई के कमेण्ट को मेरा भी म...अद्भुत संयोजन संजीव,अली भाई के कमेण्ट को मेरा भी माना जाये।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-19872594322852875382010-02-14T19:44:04.666+05:302010-02-14T19:44:04.666+05:30अति सुंदर!
जलु पच सरिस बिकाई देखहु प्रीत कि रीति भ...अति सुंदर!<br />जलु पच सरिस बिकाई देखहु प्रीत कि रीति भलि । <br />बिलग होई रसु जाई कपट खटाई परत पुनि । ।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-7349377314440263202010-02-14T19:37:53.073+05:302010-02-14T19:37:53.073+05:30संजीव, आपको नमस्कार भी
और आयुष्मान भी
बहुत दिनों क...संजीव, आपको नमस्कार भी<br />और आयुष्मान भी<br />बहुत दिनों के बाद अपने डेश बोर्ड पर<br />आरंभ दिखा वह भी आज प्रेम दिवस पर<br />चित्रण और दोहों का संकलन तो आज इस<br />पर्व के लिए समर्पित है<br />पर एक बात पुनः जोर देकर कहना चाहूँगा<br />इस प्रेम पर्व को एक दिन के प्रेम के लिए नहीं<br />वरन अटूट व सच्चे प्रेम के लिए मनाएंसूर्यकान्त गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/05578755806551691839noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-26383193875731658522010-02-14T17:58:12.546+05:302010-02-14T17:58:12.546+05:30गज़ब की जुगलबंदी की है संजीव भाई आपने ! ईर्ष्या ...गज़ब की जुगलबंदी की है संजीव भाई आपने ! ईर्ष्या हो गई आपसे...भला हमने इस नुक्तये नज़र से कभी क्यों नहीं सोचा ! कबीर...मधुबाला और वेलेंटाइन ! कालखंड...स्थान ...व्यक्तित्व और कर्म से भिन्न इंसानों के दरम्यान अभिन्नता प्रेम की ही तो है !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4449669799777792210.post-85032173273489727112010-02-14T17:56:51.251+05:302010-02-14T17:56:51.251+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.com