विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
प्रस्तुति - लखनलाल साहू “लहर”
छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति में नाचा का विशिष्ट स्थान है। छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत को दाऊ दुलार सिंह मदराजी ने नई ऊँचाई दी है तथा छत्तीसगढ़ी लोक संगीत व लोक गीतों को लोक कंठ तक पहुँचानें में स्व. खुमानलाल साव का विशिष्ट योगदान है। छत्तीसगढ़ी नाचा और छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के ये दोनों शिखर पुरूष सदैव याद किये जायेंगे। मदराजी दाऊ का जन्म 1 अप्रैल 1911 में जिला मुख्यालय राजनांदगाँव से 7 कि.मी. दूर ग्राम रवेली के मालगुजार परिवार में हुआ था। इनके पिताजी रामाधीन साव एवं माता जी श्रीमती रेवती बाई साव थे। मदराजी दाऊ की प्रारंभिक शिक्षा प्राथ्रमिक शाला कन्हारपुरी में संपन्न हुई। छत्तीसगढ़ी लोक कला के सांस्कृतिक दूत श्री खुमानलाल साव जी का जन्म 05 सितम्बर सन् 1929 को डोंगरगाँव के पास खुर्सीटिकुल गाँव में मालगुजार परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दाऊ श्री टीकम नाथ साव तथा माता श्रीमती कमला बाई साव थी। मदराजी दाऊ की माता जी रेवती और कमला बाई दोनों सगी बहनें थीं, जो ग्राम जंगलेशर निवासी जमींदार सिद्धनाथ साव की बेटियाँ थी। खुमान साव जी म्यूनिस्पल स्कूल में शिक्षकीय कार्य करते हुए छत्तीसगढ़ी लोक संगीत साधना में लगे रहे। बाद में वे ग्राम ठेकवा में आकर बस गए और 70 की दशक में लगातार चंदैनी गोंदा के माध्यम से छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति और गीतों को सँवारने में लगे रहे ।
छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत और लोक संस्कृति के प्रति अनुराग रखने के कारण दाऊजी समर्पित भाव से कला जगत से जुड़े रहे और छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत को जीवन भर साधते रहे। उन्होंने नाचा की खड़े साज को परिष्कृत और आधुनिक स्वरूप प्रदान किया। परिणाम स्वरूप छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत जन-जन तक पहुँचा। दाऊ मदराजी ने सन् 1927-28 में रवेली नाचा पार्टी का गठन किया और छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलों में बिखरे हुए कलाकारों को संगठित किया और नाचा के लिए काम करते रहे। छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत को दर्शकों ने खूब सराहा। गाँव हो या शहर सन् 40 के दशक में नाचा की खूब धूम मची। दाऊजी सिनेमाघरों को भी मात देने में सफल रहे। सही मायने में नाचा, छुआछूत, भ्रष्टाचार, पूँजीवाद, सामाजिक कुरीतियाँ और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक जन आन्दोलन था जिससे लोग प्रभावित होते रहे और जुड़ते रहे।
दाऊजी जी की नाचा पार्टी में फिदा बाई, मदन निषाद, भुलवाराम, गोंविन्द राम निर्मलकर, किस्मत बाई, माला बाई, झुमुक दास, नियायिक दास, खुमान लाल साव, ठाकुर राम, मानदास टण्डन, सुखीराम निषाद, अमर सिंह, खम्भन लाल अरकरे, लालूराम, पंचराम देवदास, जगन्नाथ धोबी, नोहरलाल, आत्माराम कोशा, बिसौहा राम साहू, बिसराम साहू जैसे अनेक गुमनाम कलाकारों ने समर्पित भाव से काम किया।
मदराजी दाऊ जी के पास जीवन के अंतिम समय में हारमोनियम के सिवाय कुछ भी नहीं बचा। उन्हें आर्थिक तंगी और कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 24 सितम्बर 1984 को अपने गृह ग्राम रवेली में अंतिम साँस ली। राज्य शासन ने नाचा के पितृपुरूष मदराजी दाऊ के निधन के पश्चात् उनकी स्मृति में कलाकारों को मंदराजी पुरूस्कार देने का निर्णय भी लिया है। जिसके अंतर्गत दो लाख रूपये सम्मानित होने वाले कलाकार को दाऊ दुलार सिंह मदराजी सम्मान के रूप में प्रदान किया जाता है। परंतु यह कैसी विडम्बना है, जीते जी मंदराजी दाऊ को और मृत्यु के पश्चात् उनकी स्मृति में आयोजित होनेवाले मंदराजी महोत्सव को भी आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ रहा है।
27 वर्षों से लगातार मदराजी महोत्सव का सिलसिला जारी है। महोत्सव की शुरूआत 1993 में हुई। दाऊजी की कला यात्रा और यादों को संजोने, ग्रामीणों ने मदराजी महोत्सव समिति बनाई। आयोजन के प्रथम वर्ष 1 अप्रैल 1993, दिन गुरूवार को सोनहा बिहान के संचालक दाऊ महासिंग चंद्राकर व कलाकारों की उपस्थिति में मदराजी दाऊ की प्रतिमा का अनावरण किया गया जिसे ग्राम थनौद से लाया गया था। महोत्सव की शुरूआत करने में संगीत के पुरोधा स्व. खुमानलाल साव एवं मदराजी के छोटे भाई बलेश्वर साव सहित मदराजी महोत्सव समिति व ग्रामीणों का विशेष योगदान रहा। बिना किसी सरकारी मदद के कई वर्षों तक बलेश्वर साव जी व खुमानलाल साव जी मदराजी महोत्सव आयोजित करते रहे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सरकार ने इस आयोजन के लिए आर्थिक सहायता घोषणा किया था परंतु इस राशि के को प्राप्त करने के लिए आयोजन समिति के पसीने छूट जाते हैं। संस्कृति विभाग और अन्य कार्यालयों के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। मदराजी महोत्सव को आज भी जनसहयोग से ही आयोजित किया जाता है। रवेली सहित आस-पास के ग्रामीण व कला प्रेमी इस आयोजन के लिए यथाशक्ति अपना आर्थिक योगदान देते आ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में होने वाले विभिन्न महोत्सवों की तरह मदराजी महोत्सव की भव्यता विशिष्ट है। मदराजी महोत्सव कलाकारों का कुंभ है जहाँ से छत्तीसगढ़ के छोटे-बड़े कलाकारों को पहचान मिलती रही है, परंतु 9 जून 2019 को संगीत के पुरोधा खुमानलाल साव जी के आकस्मिक निधन से छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की दुनिया में सन्नाटा छा गया, कला जगत स्तब्ध है। 10-12 वर्ष की उम्र में मदराजी दाऊ की नाचा पार्टी से हारमोंनियम की रीड में सुरों का जादू बिखेरने वाले और चंदैनी गोंदा के माध्यम से छत्तीसगढ़ी लोक संगीत को नये आयाम देने वाले विराट व्यक्तित्व खुमानलाल साव जी को भारत सरकार ने सन् 2015 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की और 4 अक्टूबर 2016 को तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी ने नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में खुमान सर जी को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया। खुमान सर जी मदराजी महोत्सव के सूत्रधार थे। अब बलेश्वर साव जी बिल्कुल अकेले पड़ गये हैं। प्रति वर्ष कार्यक्रम की रूपरेखा दोनों मिलकर बनाते थे। खुमान सर के निवेदन के कारण छत्तीसगढ़ की कोई भी संस्था या कलाकार सहजता से मदराजी महोत्सव में उपस्थित होकर अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। कलाकारों को बड़ी मुश्किल से मार्ग व्यय ही उपलब्ध हो पाता था।
दुर्भाग्य यह की कई बार मदराजी महोत्सव समिति के फरियाद के बावजूद शासन की आँखें नहीं खुली हैं और इस महोत्सव के लिए अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। अगर कभी मिला भी तो ऊँट के मुँह में जीरा। मदराजी महोत्सव समिति ने जनप्रतिनिधियों के समक्ष यहाँ तक भी बात रखी है कि छत्तीसगढ़ में जिस प्रकार अन्य महोत्सवों को प्रशासनिक स्तर पर कराया जाता है ठीक उसी प्रकार मदराजी महोत्सव आयोजन की जिम्मेदारी भी शासन-प्रशासन को ले लेनी चाहिए और अपने संरक्षण में मदराजी महोत्सव का आयोजन करना चाहिए। परन्तु ऐसा आज तक नहीं हुआ जबकि मदराजी महोत्सव में सभी दल के जन प्रतिनिधि बराबर आते हैं। आयोजन की भव्यता किसी से छिपी नही है। बस जो भी जनप्रतिनिधि यहाँ अतिथि बनकर आता है दो-चार चिकनी-चुपड़ी बातें बोलकर और झूठे आश्वासनों का मरहम लगाकर चला जाता है। पता नहीं यह सिलसिला कब तक चलेगा? क्या ऐसे में छत्तीसगढ़ी लोककला, संस्कृति और साहित्य को हम संरक्षित कर पायेंगे?
लखनलाल साहू “लहर”
अध्यक्ष, साकेत साहित्य परिषद् सुरगी
निवास - ग्राम मोखला, पो. भर्रेगाँव,
जिला - राजनांदगाँव (छ.ग.)
मो - 9630312197
ई.मेल - lakhan.sahu12197@gmial.com
छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति में नाचा का विशिष्ट स्थान है। छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत को दाऊ दुलार सिंह मदराजी ने नई ऊँचाई दी है तथा छत्तीसगढ़ी लोक संगीत व लोक गीतों को लोक कंठ तक पहुँचानें में स्व. खुमानलाल साव का विशिष्ट योगदान है। छत्तीसगढ़ी नाचा और छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के ये दोनों शिखर पुरूष सदैव याद किये जायेंगे। मदराजी दाऊ का जन्म 1 अप्रैल 1911 में जिला मुख्यालय राजनांदगाँव से 7 कि.मी. दूर ग्राम रवेली के मालगुजार परिवार में हुआ था। इनके पिताजी रामाधीन साव एवं माता जी श्रीमती रेवती बाई साव थे। मदराजी दाऊ की प्रारंभिक शिक्षा प्राथ्रमिक शाला कन्हारपुरी में संपन्न हुई। छत्तीसगढ़ी लोक कला के सांस्कृतिक दूत श्री खुमानलाल साव जी का जन्म 05 सितम्बर सन् 1929 को डोंगरगाँव के पास खुर्सीटिकुल गाँव में मालगुजार परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दाऊ श्री टीकम नाथ साव तथा माता श्रीमती कमला बाई साव थी। मदराजी दाऊ की माता जी रेवती और कमला बाई दोनों सगी बहनें थीं, जो ग्राम जंगलेशर निवासी जमींदार सिद्धनाथ साव की बेटियाँ थी। खुमान साव जी म्यूनिस्पल स्कूल में शिक्षकीय कार्य करते हुए छत्तीसगढ़ी लोक संगीत साधना में लगे रहे। बाद में वे ग्राम ठेकवा में आकर बस गए और 70 की दशक में लगातार चंदैनी गोंदा के माध्यम से छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति और गीतों को सँवारने में लगे रहे ।
छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत और लोक संस्कृति के प्रति अनुराग रखने के कारण दाऊजी समर्पित भाव से कला जगत से जुड़े रहे और छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत को जीवन भर साधते रहे। उन्होंने नाचा की खड़े साज को परिष्कृत और आधुनिक स्वरूप प्रदान किया। परिणाम स्वरूप छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत जन-जन तक पहुँचा। दाऊ मदराजी ने सन् 1927-28 में रवेली नाचा पार्टी का गठन किया और छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलों में बिखरे हुए कलाकारों को संगठित किया और नाचा के लिए काम करते रहे। छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत को दर्शकों ने खूब सराहा। गाँव हो या शहर सन् 40 के दशक में नाचा की खूब धूम मची। दाऊजी सिनेमाघरों को भी मात देने में सफल रहे। सही मायने में नाचा, छुआछूत, भ्रष्टाचार, पूँजीवाद, सामाजिक कुरीतियाँ और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक जन आन्दोलन था जिससे लोग प्रभावित होते रहे और जुड़ते रहे।
दाऊजी जी की नाचा पार्टी में फिदा बाई, मदन निषाद, भुलवाराम, गोंविन्द राम निर्मलकर, किस्मत बाई, माला बाई, झुमुक दास, नियायिक दास, खुमान लाल साव, ठाकुर राम, मानदास टण्डन, सुखीराम निषाद, अमर सिंह, खम्भन लाल अरकरे, लालूराम, पंचराम देवदास, जगन्नाथ धोबी, नोहरलाल, आत्माराम कोशा, बिसौहा राम साहू, बिसराम साहू जैसे अनेक गुमनाम कलाकारों ने समर्पित भाव से काम किया।
मदराजी दाऊ जी के पास जीवन के अंतिम समय में हारमोनियम के सिवाय कुछ भी नहीं बचा। उन्हें आर्थिक तंगी और कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 24 सितम्बर 1984 को अपने गृह ग्राम रवेली में अंतिम साँस ली। राज्य शासन ने नाचा के पितृपुरूष मदराजी दाऊ के निधन के पश्चात् उनकी स्मृति में कलाकारों को मंदराजी पुरूस्कार देने का निर्णय भी लिया है। जिसके अंतर्गत दो लाख रूपये सम्मानित होने वाले कलाकार को दाऊ दुलार सिंह मदराजी सम्मान के रूप में प्रदान किया जाता है। परंतु यह कैसी विडम्बना है, जीते जी मंदराजी दाऊ को और मृत्यु के पश्चात् उनकी स्मृति में आयोजित होनेवाले मंदराजी महोत्सव को भी आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ रहा है।
27 वर्षों से लगातार मदराजी महोत्सव का सिलसिला जारी है। महोत्सव की शुरूआत 1993 में हुई। दाऊजी की कला यात्रा और यादों को संजोने, ग्रामीणों ने मदराजी महोत्सव समिति बनाई। आयोजन के प्रथम वर्ष 1 अप्रैल 1993, दिन गुरूवार को सोनहा बिहान के संचालक दाऊ महासिंग चंद्राकर व कलाकारों की उपस्थिति में मदराजी दाऊ की प्रतिमा का अनावरण किया गया जिसे ग्राम थनौद से लाया गया था। महोत्सव की शुरूआत करने में संगीत के पुरोधा स्व. खुमानलाल साव एवं मदराजी के छोटे भाई बलेश्वर साव सहित मदराजी महोत्सव समिति व ग्रामीणों का विशेष योगदान रहा। बिना किसी सरकारी मदद के कई वर्षों तक बलेश्वर साव जी व खुमानलाल साव जी मदराजी महोत्सव आयोजित करते रहे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सरकार ने इस आयोजन के लिए आर्थिक सहायता घोषणा किया था परंतु इस राशि के को प्राप्त करने के लिए आयोजन समिति के पसीने छूट जाते हैं। संस्कृति विभाग और अन्य कार्यालयों के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। मदराजी महोत्सव को आज भी जनसहयोग से ही आयोजित किया जाता है। रवेली सहित आस-पास के ग्रामीण व कला प्रेमी इस आयोजन के लिए यथाशक्ति अपना आर्थिक योगदान देते आ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में होने वाले विभिन्न महोत्सवों की तरह मदराजी महोत्सव की भव्यता विशिष्ट है। मदराजी महोत्सव कलाकारों का कुंभ है जहाँ से छत्तीसगढ़ के छोटे-बड़े कलाकारों को पहचान मिलती रही है, परंतु 9 जून 2019 को संगीत के पुरोधा खुमानलाल साव जी के आकस्मिक निधन से छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की दुनिया में सन्नाटा छा गया, कला जगत स्तब्ध है। 10-12 वर्ष की उम्र में मदराजी दाऊ की नाचा पार्टी से हारमोंनियम की रीड में सुरों का जादू बिखेरने वाले और चंदैनी गोंदा के माध्यम से छत्तीसगढ़ी लोक संगीत को नये आयाम देने वाले विराट व्यक्तित्व खुमानलाल साव जी को भारत सरकार ने सन् 2015 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की और 4 अक्टूबर 2016 को तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी ने नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में खुमान सर जी को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया। खुमान सर जी मदराजी महोत्सव के सूत्रधार थे। अब बलेश्वर साव जी बिल्कुल अकेले पड़ गये हैं। प्रति वर्ष कार्यक्रम की रूपरेखा दोनों मिलकर बनाते थे। खुमान सर के निवेदन के कारण छत्तीसगढ़ की कोई भी संस्था या कलाकार सहजता से मदराजी महोत्सव में उपस्थित होकर अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। कलाकारों को बड़ी मुश्किल से मार्ग व्यय ही उपलब्ध हो पाता था।
दुर्भाग्य यह की कई बार मदराजी महोत्सव समिति के फरियाद के बावजूद शासन की आँखें नहीं खुली हैं और इस महोत्सव के लिए अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। अगर कभी मिला भी तो ऊँट के मुँह में जीरा। मदराजी महोत्सव समिति ने जनप्रतिनिधियों के समक्ष यहाँ तक भी बात रखी है कि छत्तीसगढ़ में जिस प्रकार अन्य महोत्सवों को प्रशासनिक स्तर पर कराया जाता है ठीक उसी प्रकार मदराजी महोत्सव आयोजन की जिम्मेदारी भी शासन-प्रशासन को ले लेनी चाहिए और अपने संरक्षण में मदराजी महोत्सव का आयोजन करना चाहिए। परन्तु ऐसा आज तक नहीं हुआ जबकि मदराजी महोत्सव में सभी दल के जन प्रतिनिधि बराबर आते हैं। आयोजन की भव्यता किसी से छिपी नही है। बस जो भी जनप्रतिनिधि यहाँ अतिथि बनकर आता है दो-चार चिकनी-चुपड़ी बातें बोलकर और झूठे आश्वासनों का मरहम लगाकर चला जाता है। पता नहीं यह सिलसिला कब तक चलेगा? क्या ऐसे में छत्तीसगढ़ी लोककला, संस्कृति और साहित्य को हम संरक्षित कर पायेंगे?
लखनलाल साहू “लहर”
अध्यक्ष, साकेत साहित्य परिषद् सुरगी
निवास - ग्राम मोखला, पो. भर्रेगाँव,
जिला - राजनांदगाँव (छ.ग.)
मो - 9630312197
ई.मेल - lakhan.sahu12197@gmial.com
सुंदर, उपयोगी, सामयिक और जानकारी युक्त आलेख के लिए लेखक और आरंभ को बधाई।
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