विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
विश्रामपुर में दशकों रहकर 1967 में अमेरिका लौटे थे विलियम विटकम, यहीं दफन करने की अंतिम इच्छा, बेटी तथा परिजन लाए अंतिम अवशेष दैनिक भास्कर के लिए रिपोर्टिंग : परिष्ठ पत्रकार जॉन राजेश पॉल रायपुर, विलियम कैथ विटकम (विली बाबा) ...जन्म 1924 (अमेरिका)... बचपन में ही परिवार के साथ रायपुर से 65 किमी दूर विश्रामपुर आ गए। विटकम चार दशक यहां रहने के बाद 1968 में वापस यूएस लौटे, लेकिन भारत जेहन में ही रहा। बीमार हुए तो अंतिम इच्छा जाहिर की कि विश्रामपुर में ही दफ्न किया जाए। परिजनों ने ऐसा ही किया। विली बाबा की अस्थियां और भस्म अब भारत माता की गोद में हैं। छत्तीसगढ़ के विश्रामपुर में विटकम और उनका परिवार लंबे अरसे तक रहा। इस कस्बे के पुराने लोग अब भी विली बाबा को भूल नहीं पाए हैं। यही वजह थी कि विटकम की अंतिम यात्रा भी यहां ऐतिहासिक हो गई। अमेरिका में जब उन्होंने अंतिम सांस ली, तो परिजनों ने इच्छा के अनुरूप छत्तीसगढ़ में दफ्न करने की सरकारी प्रक्रिया शुरू कर दी। छत्तीसगढ़ डायसिस ने यहां का जिम्मा संभाला। विटकम की बेटी कैथ, दामाद और डेढ़ दर्जन रिश्तेदार खूबसूरत काफिन में उनकी अस्थियां व भ