विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
हमारा संविधान सचमुच में भीम है, इसलिए नहीं कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर उसके निर्माता हैं। बल्कि अपनी सम्पूर्णता में वह भीम है। हमारा संविधान विश्व का सर्वश्रेष्ठ भारतीय नागरिक संहिता है। भीम शब्द को इसके साथ युग्म करना सार्थक है क्योंकि संविधान को अम्बेडकर से और अम्बेडकर को संविधान से पृथक नहीं किया जा सकता। हमारे देश के चौक-चौराहों में लगी प्रतिमाओं में भी संविधान भीम के साथ उपस्तिथ है जिसे अम्बेडकर ने पोटार कर रखा है, बच्चे की तरह। दुनिया में संभवत: भारत ही ऐसा देश है जहां चौराहों में संविधान मूर्ति के रूप में उपस्थित है। स्थूल मूर्तियां प्रतीक रूप में जीवन को सक्रिय करती हैं शायद इसलिए मूर्तियों को चौक चौराहों में लगाने की भारतीय परंपरा रही है। यह अलग बात है कि इन मूर्तियों में पक्षी बीट करते हैं और उसकी रखरखाव तरीके से नहीं हो पाती है। किन्तु भारत में अन्य लोगों के बरस्क अंबेडकर की प्रतिमा का देखरेख बहुत अच्छे ढंग से होता है जो यह सिद्ध करता है कि भारत में उनकी जबरदस्त साख है। होना ही चाहिए, उन्होंने दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान जो हमें रच के दिया है जिस पर हमें गर्व है। इसीलिए इ