संस्‍कृति एवं पुरातत्‍व संचालनालय का आयोजन : राय बहादुर डॉ. हीरालाल 150 वीं जयन्‍ती समारोह सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

संस्‍कृति एवं पुरातत्‍व संचालनालय का आयोजन : राय बहादुर डॉ. हीरालाल 150 वीं जयन्‍ती समारोह


इतिहास, पुरातत्‍व, जनसंख्‍या, भाषा एवं नृतत्वशास्त्र के अद्वितीय विद्धान
रायबहादुर डॉ. हीरालाल


संस्कृति एवं पुरातत्व संचालनालय, छत्तीसगढ़ शासन द्वारा रायबहादुर डॉ. हीरालाल के कार्य एवं योगदान का पुनर्स्‍मरण करने के उद्देश्‍य से उनकी 150वीं जयंती समारोह का आयोजन आज 1 अक्‍टूबर, 2016 को किया गया। महंत घासीदास संग्रहालय, रायपुर में आयोजित इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में जबलपुर से आमंत्रित डॉ.हीरालाल के वंशज डॉ. छाया राय ने आधार वक्‍तव्‍य दिया। डॉ. छाया राय डॉ. हीरालाल की प्रपौत्री है। वे दर्शनशास्त्र की अंतर्राष्ट्रीय विदुषी हैं, उन्होंने हिंदी एवं अंग्रेजी में दर्शनशास्‍त्र के अनेक शोध लिखे हैं जो विभिन्‍न प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए है। जबलपुर विश्‍वविद्यालय की भूतपूर्व प्राध्‍यापिका डॉ. छाया राय नें अखिल भारतीय महिला दार्शनिक संघ की स्‍थापना की है। उन्‍होंनें अपने उद्बोधन में डॉ. हीरालाल के कार्यों पर विस्‍तृत प्रकाश डाला एवं वंशज होने के नाते उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथों को पुन: प्रकाशित कराने में सहयोग करने की बात कही। उन्‍होंनें इस आयोजन के लिए संस्‍कृति एवं पुरातत्‍व संचालनालय, छत्तीसगढ़ के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा कि, अन्‍य प्रदेश ऐसे आयोजन के लिए योजना बनाते ही रहे और छत्‍तीसगढ़ नें यह कर दिखाया।

कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करते हुए डॉ. इंदिरा मिश्र आई.ए.एस. ने डॉ. हीरालाल के जीवन के विभिन्न रोमांचक व अविस्मरणीय पहलुओं का उल्लेख रोचक रूप से किया। उन्‍होंनें बताया कि सन् 1920 और 1911 के जनगणना कार्य को संपन्न कराने में उनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका रही। सन् 1910 में जिला गजेटियरों के निर्माण में उनके असाधारण योगदान को दृष्टिगत रखते हुए तत्कालीन सरकार ने उन्हें राय बहादुर की उपाधि प्रदान की। इसके साथ ही अकादमिक एवं शोध कार्यों में भी उनकी विशेष रूचि रही, उन्होंने इतिहास, भूगोल, पुरातत्व, जनजातियों और भाषाओं के अध्ययन और प्रकाशन हेतु भी उल्लेखनीय कार्य किए। कार्यक्रम के आरंभ में अशोक तिवारी नें कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्‍तुत की एवं संचालक राकेश चतुर्वेदी नें स्‍वागत भाषण दिया।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए डॉ.सुशील त्रिवेदी आई.ए.एस. नें प्रसिद्ध साहित्‍यकार व छंद मर्मज्ञ जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' और राय साहब डॉ. हीरालाल के कार्यों का उल्‍लेख करते हुए दोनों के जीवन में उल्‍लेखनीय कार्यों के कई स्तरों पर समानता का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने तत्कालीन कठिन परिस्थितियों के बावजूद भारतीय भाषाओ एवं जनजीवन पर प्रामाणिक कार्य करने के लिए डॉ. हीरालाल जी का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हीरालाल जी के द्वारा लिखे गए ग्रंथ अंतिम निष्कर्ष के ग्रंथ माने जाते हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. हीरालाल भारत के ऐसे गौरव थे जिन्होंने एथनोग्राफी को जनगणना के साथ जोड़ा, हिंदी गजेटियर को उन्‍होंनें भारतीय परिवेश में भारतीयों के लिए लिखा और अंग्रेजी गजेटियरों को अंग्रेजों के लिए लिखा। कलचुरियों के संबंध में उनके शोध एवं जानकारियों के आधार पर हमारे छत्तीसगढ़ का पूरा इतिहास का तंत्र रचा गया।

डॉ. लक्ष्मीशंकर निगम ने रायबहादुर डॉ. हीरालाल के विभिन्‍न कार्यों का विशेष उल्लेख करते हुए बताया कि वह साइंस ग्रेजुएट थे। वे जिला गजेटीयर निर्माण करने एवं 1920 और 1911 के जनगणना कार्य के लिए सरकार द्वारा नियुक्त किए गए थे। वे विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हुए न केवल सफल हुए बल्कि आधिकारिक विद्वान के रूप में स्थापित भी हुए। डॉ. निगम ने उनके बचपन में संस्कृत पढ़ने के वाकये का उल्‍लेख करते हुए कहा कि उनके संस्कृत अध्ययन का जुनून ही था, कि वे आगे जाकर उन्हें ताम्रपत्रों एवं शिलालेखों को पढ़ने में सहयोग किया। उन्होंने भाषा सर्वेक्षण जैसे कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया वो भी ऐसे समय में इतना विशद शोधपरक लेखन किया जब सुविधाएं नाम मात्र की थी। उन्हें नागपुर विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्त करने के लिए आमंत्रित किया गया किंतु वे नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बनने से मना कर दिया। किन्‍तु उन्‍होंनें नागपुर विश्वविद्यालय में बीए एवं एमए में हिंदी का अध्ययन आरंभ करवाया। सहा संचालक राहुल सिंह नें आभार प्रदर्शन करते हुए राय बहादुर हीरालाल के शोधपत्रों के तथ्‍यों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके एक-एक शोध पत्र पर एक-एक शोध ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। उनके शोध करने की प्रक्रिया और तथ्यों में अंतरनिहित इतिहास को विस्तार से समझने की आवश्यकता है।

विदित हो कि, स्‍मृतिशेष डॉ. हीरालाल का जन्म 1 अक्टूबर 2016 को जबलपुर जिले के कटनी मुड़वारा तहसील में हुआ था। वे सीपी एण्‍ड बरार राज्‍य में विभिन्‍न पदों पर कार्य करते हुए छत्‍तीसगढ़ में कई वर्षों तक सेवारत रहे एवं छत्‍तीसगढ़ के इतिहास, पुरातत्‍व, भाषा एवं जनजातियों पर विभिन्‍न शोध कार्य किया। वे नागरी प्रचारणी सभा के सदस्य रहे फिर उप सभापति चुने गए और सभापति भी रहे। उन्हें नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर की मानद उपाधि भी प्रदान की गई। अभी तक के प्रशासनिक इतिहास में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जहां किसी स्कूल उप निरीक्षक को प्रशासन के क्षेत्र में ऐसा उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपा जाए जैसा कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन के ने हीरालाल जी को सौंपा। वे स्कूल इंस्पेक्टर से कमिश्नर तक बनाए गए। उनकी महत्वपूर्ण किताबों में मध्य प्रांत और बरार के शिलालेख, एथनोग्राफिक नोट्स, ट्राईब्‍स एण्‍ड कास्‍ट आफ दि सेन्‍ट्रल प्राविजेंस आफ इंडिया, एपिग्राफिया इंडिका, इन्सक्रिप्शन इन द सेन्ट्रल प्राविसेंस, मध्‍य प्रदेश का इतिहास, भौगोलिक नामार्थ परिचय सहित छत्‍तीसगढ़ के विभिन्‍न जिलों के हिन्‍दी में लिखे गए गजेटियर व शोध ग्रंथों में प्रकाशित लेख शामिल हैं। सर जॉर्ज ग्रियर्सन के कहने पर उन्होंने मध्य प्रांत की आदिम जनजातियों एवं लोक भाषाओं का ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग करते हुए वहां का भाषाई सर्वेक्षण किया था। यह रिकार्ड अब भोपाल के सप्रे संग्रहालय में उपलब्‍ध है।

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