विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
मुहब्बत का इज़हार, मुहब्बत के पैग़ाम और मुहब्बत की वो हसीन तकरारें वक्त के साथ अपना तरीका बदल लिया करती हैं !! आज सोशल मीडिया के दौर में वाट्स एप पर मुहब्बतें परवान चढ़ रही हैं ! तकनीकी दौर की इस मुहब्बत को बड़ी खूबसूरत कहानियों में गूंथकर समीर ने वाट्स एपिया रोमांस की शक्ल में इस किताब में पेश किया है ! समीर प्रेम कहानियां लिखते हुए सबसे सहज होते हैं ! हमारी जिंदगियों में रोमांस के जो छोटे छोटे लम्हे बिखरे रहते हैं , उन्हें समीर बेहद संवेदनाओं के साथ अपनी कहानियों में उकेरते हैं ! उनकी अपनी एक ख़ास शैली है जिससे आज के आधुनिक युवा अपने आप को एकदम से कनेक्ट कर पाते हैं ! समीर की कहानियां दरअसल पारम्परिक कहानियां नहीं बल्कि दृश्यों का एक बड़ा खूबसूरत कोलाज होती हैं ! समीर के वाट्स एपिया रोमांस में प्रतीक्षा हैं , तड़प है , चहकते इमोजीज़ हैं , इकरार है, इज़हार है , रूठना मनाना है और मुहब्बत के नीले हरे रंग हैं गोया मोबाइल की स्क्रीन एक चमकीला आसमान हो और उसमे मुहब्बत के परिंदे उड़ान भरते हों ! समीर की कहानियों की जो सबसे लाजवाब बात मुझे नज़र आती है वो रिश्तों के जटिल धागों की बुनावट को इस कदर सरलता से प्रस्तुत करते हैं कि हर पाठक कहीं न कहीं उन रिश्तों को जीने लगता है ! कथा का घटना क्रम हमें हमारी जिंदगी से रूबरू कराता हुआ दिखाई देता है ! सर्वथा मौलिकता के साथ कही गयी ये छोटी छोटी कहानियां हम सभी की कहानियां हैं ! इन कहानियों के चरित्र हमारे आसपास ही जी रहे हैं ! ये कहानियां हमारे ठीक बगल में उन स्क्रीनों पर घट रही हैं जिनके साथ हमारी स्क्रीन सेम सिग्नल शेयर कर रही हैं !
- पल्लवी त्रिवेदी
कुछ अलग प्रकार की पुस्तकों को शिवना प्रकाशन से प्रकाशित करने की योजना के तहत यह पुस्तक आई है। प्रेम के नये रूप का प्रस्तुत करती हुई इन कहानियों के लेखक हैं समीर यादव । इन कहानियों में नये युग का प्रेम है। नाम 'व्हाट्स-एपिया रोमांस' व्हाट्स अप पर जन्म लेनी वाली प्रेम कहानियाँ। लेकिन इन कहानियों में भी वही बेकरारी है, वही इंतज़ार है जो प्रेम में हमेशा से रहता है। पुस्तक में शामिल कहानियाँ
1) समझे बस वो... 2) एबाउट टू डाय 3) बट लीव इट 4) व्हाट्स-एपिया परवाने 5) पुरजा-पुरजा प्रेम पर्चियाँ 6) क्या यही प्यार है 7) WiFi Zone में लौट आओ 8) ग्रैंड सेल्यूट.. 9) इंद्रधनुषी और इंस्टेंट 10) आर यू देअर ? 11) दो काली टिक 12) मुहब्बत वाली जगह 13) आज मिल न.. 14) आख़िरी कश 15) नो स्टेटस 16) न सूखने देती हो, न भीगने 17) पिछली सदी का मैसेज 18) दोनों टिक नीली 19) गोल्डन रिट्रीवर 20) तारीख़ 21) उसे भी मालूम है .. 22) चपटी तिकोने वाली प्लेट 23) तुम बेवजह याद रहती भी कहाँ हो 24) इसमें मैं कहाँ ... 25) जा कुलच्छनी...... सब बरी हो गए।
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