पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजन का ठीहा : गढ़कलेवा सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजन का ठीहा : गढ़कलेवा


खानपान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय भोज्यपदार्थों के प्रति बढ़ती जनता की रूचि एवं शहरीकरण के चलते हम अपने पारंपरिक खान-पान को विस्मृत करते जा रहे हैं। देश के कई क्षेत्रों में पारंपरिक खान-पान की परंपरा आज विलुप्ति के कगार पर है, जबकि माना जाता है कि खान-पान संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। हमारी खान-पान की परंपरा हमारी क्षेत्रीय अस्मिता का गौरव है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ के संस्कृति संचालनालय द्वारा 'गढ़कलेव' के नाम से पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का एक रेस्टॉरेंट रायपुर में खोला गया है।


'गढ़कलेवा' का परिसर एक ठेठ खूबसूरत छत्तीसगढ़ी गांव के रूप में तैयार किया गया है। इस स्थल की साजसज्जा और जनसुविधाएं छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जीवन का आनंद दिलाते हैं। जिसे गांव के ही पारंपरिक शिल्पियों ने ही मूर्त रूप देते हुए आकार दिया है। वर्तमान में यहाँ पारंपरिक परिवेश और बर्तनों में लगभग तीन दर्जन छत्तीसगढ़ी व्यंजन परोसा जा रहा है। आगे मध्यान्ह तथा रात्रि भोजन भी उपलब्ध कराया जायेगा।

इसका शुभारंभ प्रदेश के मुख्य मंत्री डॉ.रमन सिंह के द्वारा 26 जनवरी 2016 को किया गया। इस जलपानगृह में छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रचे-बसे ठेठरी, खुरमी, चीला, मुठिया, अंगाकर रोटी, बफौरी, चउसेला जैसे तीन दर्जन से भी अधिक पारंपरिक व्यंजनों को शामिल किया गया है। छत्तीसगढ़ी परिवेश उपलब्ध कराने के लिए परिसर में लकड़ियों की आकर्षक कलाकृतियां भी बनाई गई हैं और दीवारों की भित्तिचित्र के माध्यम से सजावट की गई है। गढ़ कलेवा में जलपान में शामिल चाउर पिसान के चीला, बेसन के चीला, फरा, मुठिया, धुसका रोटी, वेज मिक्स धुसका, अंगाकर रोटी, पातर रोटी, बफौरी सादा और मिक्स, चउंसेला आदि परोसा जा रहा है। इसके अलावा मिठाइयों में बबरा, देहरउरी, मालपुआ, दूधफरा, अईरसा, ठेठरी, खुरमी, बिडि़या, पिडि़या, पपची, पूरन लाडू, करी लाडू, बूंदी लाडू, पर्रा लाडू, खाजा, कोचई पपची आदि भी परोसा जा रहा है। गढ़ कलेवा का एक अति महत्वपूर्ण पक्ष इसका परिसर है, जिसे ठेठ छत्तीसगढ़ी ग्रामीण परिवेश के रूप में तैयार किया गया है। इसकी साज-सज्जा और जनसुविधाएं सभी कुछ छत्तीसगढ़ ग्रामीण जीवन का आनंद उपलब्ध कराने की क्षमता रखते हैं।

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