आरंभ Aarambha सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

हिन्दी मेरी भाषा

मेरे मन की भाषा हिन्दी मेरे बोल की भाषा हिन्दी। सबसे सहज, सबसे सरल सबसे मीठी, हमारी हिन्दी।। झरने के कल—कल सी हिन्दी कोयल के मीठे कूक सी हिन्दी। मिट्टी की सौंधी महक सी हिन्दी हवा के शीतल बयार सी हिन्दी।। सूर—रहीम के दोहे में हिन्दी कबीर—मीरा के साखों में हिन्दी। निराला, प्रसाद और पंत की हिन्दी गीत, गज़ल और कविता की हिन्दी।। मॉं की लोरी—थपकी में हिन्दी बाबा की झिड़की में हिन्दी। नानी की कहानियों में हिन्दी दादा के हर सीख में हिन्दी।। राष्ट्र गौरव की भाषा हिन्दी हम सब की अभिलाषा हिन्दी। मैथिली, उर्दू, अवधी और ब्रज सबको अपने में मिलाती हिन्दी।। भारत के माथे की बिन्दी भारत की पहचान है हिन्दी। दुनिया की सभी भाषा अच्छी पर सबसे निराली हमारी हिन्दी।। डॉ. हंसा शुक्ला प्राचार्य, स्वामी स्वरूपानंद महाविद्यालय, हुडको भिलाई.

भूमि अधिग्रहण : असंतोष जारी है

भूमि अधिग्रहण कानून पर संसद से सड़क तक हो रहे राष्‍ट्रव्‍यापी हो-हल्‍ले पर पिछले दिनों विराम लग गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में स्‍पष्‍ट कर दिया कि सरकार इस मामले में चौथा ऑर्डिनैंस नहीं लाएगी। विद्यमान भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधनों के साथ वर्तमान सरकार द्वारा प्रस्‍तुत भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पारित होने के बाद राज्‍यसभा में पारित होने की राह जोह रहा है। इस बिल को प्रभावी बनाने के वैकल्पिक तरीकों के रूप में सरकार लगातार तीन बार ऑर्डिनैंस ला चुकी थी, इस तीसरे आर्डिनेंस की अंतिम तिथि 31 अगस्‍त थी। सरकार द्वारा चौथी बार आर्डिनेंस नहीं लाने के फैसले से विद्यमान अधिग्रहण कानून अपने पूर्ण प्रभाव के साथ देश में पुन: लागू हो गया है। हालॉंकि अरूण जेटली नें सरकार के इस कदम को ही वैकल्पिक रास्‍ता कहा जो राजनीतिक विवाद के लिए अख्तियार किया गया है। उन्‍होंनें यह भी कहा कि इससे हमें कम राजनीतिक कीमत चुकानी होगी और राज्‍य सरकारों को भू-अधिग्रहण के मामलों में अधिक स्‍वतंत्रता मिल जायेगी। पिछले सप्‍ताह हुये इस उठापठक का फायदा यह भी हुआ कि भूमि अधिग्रहण से जुड़े अ

लिफ्ट का गिफ्ट

हमारे देश में नगर रक्षक प्रहरियों का जलवा सदियों से बरकरार रहा है। नगर में शासन व्यवस्था एवं अनुशासन कायम रखने का प्रभार इन्हीं के हाथों रहा है, जिसमें रत्न जड़ित सोने का दण्ड हुआ करता था। मुगलों का जमाना आते आते दण्ड से रत्न ऐसे गायब हुए जैसे रेलवे के टायलेट से आईना और दण्ड का सोना पीतल में बदल गया। अंग्रेजों नें कुछ भारतीय और कुछ अंग्रेजी मुलम्मा चढ़ाते हुए इसे छड़ी बनानें में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं अंग्रेजों नें शासन और अनुशासन के बीच भी भारत पाकिस्तान जैसे बटवारा कर दिया और पुलिस सर्विसेस व सिविल सर्विसेस को स्थापित कर दिया। अधिकार बंट गए कर्तव्य संयुक्त रहा और यही असंतुष्टि का कारण रहा। अधिकारों के इस बंटवारे में इन दोनों शाहों के बीच असंतुष्टि का बीज बचा रहा जो राजनीति की आद्रता में यदा कदा पनपता रहा, मेछराता रहा। सुराज के बाद योग्य सरकारों नें इन दोनों के बीच उल्होते पीका को प्रभावपूर्ण रूप से नष्ट करने का, समय समय पर यत्न भी किया, पर इनके बीच का महीन दरार समय-समय पर बार-बार दरकते रहा। हमारे प्रदेश में अभी हाल ही में समाचार पत्रों से, पढ़ने-सुनने में आया कि इन