विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
मेरे मन की भाषा हिन्दी मेरे बोल की भाषा हिन्दी। सबसे सहज, सबसे सरल सबसे मीठी, हमारी हिन्दी।। झरने के कल—कल सी हिन्दी कोयल के मीठे कूक सी हिन्दी। मिट्टी की सौंधी महक सी हिन्दी हवा के शीतल बयार सी हिन्दी।। सूर—रहीम के दोहे में हिन्दी कबीर—मीरा के साखों में हिन्दी। निराला, प्रसाद और पंत की हिन्दी गीत, गज़ल और कविता की हिन्दी।। मॉं की लोरी—थपकी में हिन्दी बाबा की झिड़की में हिन्दी। नानी की कहानियों में हिन्दी दादा के हर सीख में हिन्दी।। राष्ट्र गौरव की भाषा हिन्दी हम सब की अभिलाषा हिन्दी। मैथिली, उर्दू, अवधी और ब्रज सबको अपने में मिलाती हिन्दी।। भारत के माथे की बिन्दी भारत की पहचान है हिन्दी। दुनिया की सभी भाषा अच्छी पर सबसे निराली हमारी हिन्दी।। डॉ. हंसा शुक्ला प्राचार्य, स्वामी स्वरूपानंद महाविद्यालय, हुडको भिलाई.