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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

तुलसी जयंती समारोह : हिन्‍दी साहित्‍य समिति का आयोजन

23 अगस्त को मानस भवन दुर्ग मेँ,हिंदी साहित्य समिति दुर्ग के द्वारा तुलसी जयंती समारोह का आयोजन किया गया। समारोह के पहले सत्र मेँ गोस्वामी तुलसीदास के व्यक्तित्व एवँ कृतित्व पर बोलते हुए मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार एवं श्रीमद् भागवत आचार्य स्वामी कृष्णा रंजन ने कहा कि तुलसी नेँ तत्कालीन परिस्थितियोँ मेँ जनता मेँ विद्रोह की ताकत पैदा करने के उद्देश्य से जनभाषा मेँ रामचरितमानस का सृजन किया। उंहोने विभिन्न भाषाओं के राम कथा एवँ रामचरितमानस पर समता मूलक व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि तुलसी ने समाज और साहित्य के लिए तब और अब दोनोँ ही काल और परिस्थितियोँ मेँ सार्थक भूमिका निभाई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष पं. दानेश्वर शर्मा ने कहा कि तुलसी जनकवि थे। उनकी रचनाएँ जन मन के लिए थी, तुलसी ने समाज के मंगल के लिए रामचरितमानस एवँ अन्य अमर रचनाओं का सृजन किया। तुलसी ने आदर्श समाज की परिकल्पना की, जिसे अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रकट किया। उन्होंने बताया कि रामचरितमानस के प्रत्येक शब्द सिद्ध सम्पुट मंत्र है, जिसका लोकहित मेँ चमत्कारिक रुप से प्रयोग किया जा सकता है। विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती विद्या गुप्ता ने तुलसी साहित्य एवँ उसके सामाजिक सरोकार पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने तुलसी साहित्य के विभिन्न आयामों को विधागत कसौटी मेँ तौलते हुए तुलसी की रचनाओं का विश्लेषण किया।

कार्यक्रम के आरंभ मेँ सचिवीय प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए समिति के सचिव संजीव तिवारी ने कहा कि इस वर्ष समिति ने आठ साहित्य कार्यक्रम किए और रचनाकारोँ मेँ साहित्यिक रुचि जगाने व नव सृजन को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया। किंतु 1929 से निरंतर कार्यरत समिति मेँ इस वर्ष पांच रचनाकारों की कृतियाँ ही पुस्तकाकार रुप मेँ आ सकी। इस न्यून साहित्य विकास से पूर्णतया असंतुष्टि जताते हुए उन्होंने कहा कि, समिति का उद्देश्य एवं मेरा कार्यकाल तभी सफल माना जाएगा जब, रचनाकारोँ का परिचय उनके वरिष्ठ-कनिष्ठ होने से नहीँ बल्कि उनकी रचनाओं से होगा। कार्यक्रम मेँ स्वागत भाषण रमाकांत बराडिया ने दिया एवँ आभार प्रदर्शन समिति के अध्यक्ष डॉ संजय दानी ने किया।

द्वितीय सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि प्रदीप वर्मा एवँ विशिष्ट अतिथि बाबा निजाम दुर्गवी थे। इस सत्र के कवि सम्मेलन का संचालन समिति के सह सचिव अजहर कुरैशी ने किया। सत्र का आगाज वरिष्ठ व्यंग्यकार विनोद साव ने लघु व्यंग्य पाठ से किया। सम्मलेन में नवाचार का प्रयोग करते हुए कविताओं के बीच मेँ डॉ. रौनक जमाल ने भी अपनी लघु कथा का पाठ किया। कवियोँ ने अपने सुरमई गीतो, गजलों और कविताओं से महफिल को रंगीन बना दिया। जिनमेँ किशोर तिवारी, शमशीर शिवानी, नरेश विश्वकर्मा, भारत भूषण परगनिया, डॉ. नरेंद्र देवांगन, डॉ शीला शर्मा, नवीन तिवारी अमर्यादित, राकेश गंधर्व, महेंद्र दिल्लीवार, रतनलाल सिन्हा, ठाकुर दास सिद्ध, अरुण कुमार निगम, गिरिराज भंडारी, अरुण कसार, प्रभा सरस, सूर्यकांत गुप्ता, आर.ऐन.श्रीवास्तव, अशोक ताम्रकार, उमाशंकर मिश्र, सिरिल साइमन, शकुंतला शर्मा, संध्या श्रीवास्तव, निजाम राही, रामबरन कोरी कशिश, नासिर खोखर, कलीराम यादव, नीता कंबोज, तारा चंद शर्मा, डा.नौशाद सिद्दीकी, इंद्रजीत दादर निशाचर, जेपी अग्रवाल, प्रशांत कानस्कर, बंटी सिंह, मीता दास, निर्मल शर्मा आदि कवियोँ ने काव्य पाठ किया। बालोद से पधारे थानेदार बुद्धि सेन शर्मा ने अपने सुमधुर स्वर मेँ गीत प्रस्तुत कर सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया।

तुलसी जयंती समारोह का यह कार्यक्रम पूरे उत्साह में नव सृजन की कामना के साथ समाप्त हुआ। कार्यक्रम मेँ भारी संख्या मेँ गणमान्य एवँ साहित्यकार उपस्थित थे जिनमेँ रायपुर से पधारी शशि दुबे एवँ नगर के वरिष्ठ साहित्यकार गुलबीर सिंह भाटिया रवि श्रीवास्तव, तुंगभद्र सिंह राठौर, डॉ. निर्माण तिवारी, डॉ.के.प्रकाश, सरला शर्मा, रघुवीर अग्रवाल पथिक, बुद्धि लाल पाल, शरद कोकाश,  रजनीश उमरे, राजाराम रसिक, रामधीन श्रमिक, सुदर्शन राय, रवि आनंदानी, आलोक शर्मा, लल्ला जी साहू, भुवन लाल कोसरिया आदि उपस्थित थे।

टिप्पणियाँ

  1. राम के चरित को मगन - मन गाया जिसने नहीं कोई और बडभागी तुलसीदास है
    जीवन हम कैसे जियें उसने बताया हमें आत्मज्ञान कैसे पायें विधि उसके पास है ।

    देश की आज़ादी में तुलसी की बडी भूमिका है पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं गाया है
    आज़ादी का दिया तो जला दिया था तुलसी ने देश अभिमान हमें उसने सिखाया है।

    दुनियॉ है कर्म - प्रधान कहा तुलसी ने जैसा जो करेगा वैसा फल वह पाएगा
    जिसने बबूल बोया कॉटे तो चुभेंगे उसे आम जिसने बोया वह मीठा फल खाएगा ।

    जवाब देंहटाएं

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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