पुरूरवा का पूर्वानुमान एवं सीता जी की आखिरी रात सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

पुरूरवा का पूर्वानुमान एवं सीता जी की आखिरी रात

पारम्‍परिक साहित्‍य में प्रेम एवं विरह, गद्य एवं पद्य की मूल विषय वस्‍तु रही है. विभिन्‍न महान कवि एवं लेखकों नें इसे केन्‍द्र में रखकर साहित्‍य की रचना की है. रचनाकारों के इसी सृजन से भारतीय साहित्‍य में भी विभिन्‍न नायक-नायिकाओं की कहानियॉं उपलब्‍ध है. इसी क्रम में उर्वशी एवं पुरूरवा की प्रेम कथायें भारतीय संस्‍कृत साहित्‍य एवं तदनन्‍तर हिन्‍दी साहित्‍य में भी मिलती हैं. पाठकों की रूचि के कारण रचनाकार इन प्रेम कहानियों को बार-बार नित-नव अर्थान्‍वयन करता हुआ नये रूप में प्रस्‍तुत करता है. ऐसा ही स्‍वागतेय प्रयास उडिया एवं अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्‍यकार डॉ.पंचानन मिश्र नें ‘पुरूरवा का पूर्वानुमान’ के रूप में किया है. उडिया में लिखी गई इस कविता का हिन्‍दी अनुवाद यशस्‍वी अनुवादक कृष्‍ण कुमार ‘अजनबी’ नें किया है.

उडिया में लिखी गई इस लम्‍बी कविता में कवि नें प्रेम एवं विरह के भावों का अद्भुत चित्रण है. इस मिथक कथा से परिचित सुधीजन जानते हैं कि पुरूरवा को मिलन से कहीं अधिक विरह को झेलना पड़ा है. कवि नें काव्‍य नायक असफल प्रेमी पुरूरवा का मार्मिक अंत:स्‍वर को इसमें शब्‍द दिया है. एक ऐसे अपूर्व सौंदर्यशाली, बलशाली पुरूष पुरूरवा जिससे उर्वशी जैसी अप्‍सरा मोहित हो जाती है उसके विरह की स्थिति का जीवंत चित्रण करता हुआ कवि लिखता है ‘हे ब्रम्‍हाण्‍ड सुन्‍दरी/उतर आओ धरती पर फिर से एक बार/ जीर्ण-शीर्ण अस्थि पंजर वाले../ इस शरीर में फूंक दो जीवनांश का मंत्र/ देकर एक ऐसा चुम्‍बन.’ ऐसा आर्तनाद करते पुरूरवा की नायिका ब्रम्‍हाण्‍ड सुन्‍दरी उर्वशी का परिचय कवि कुछ इस तरह से कराते हैं ‘.. और विस्‍तृत नितम्‍बों के घूर्णन पर/ गतिशील होते हैं पृथ्‍वी के/ उत्‍तर व दक्षिण गोलार्ध दोनों. कम्पित वक्षोजों के उत्‍थान एवं पतन पर/ लिपिबद्ध हो जाता/ मानवीय संस्‍कृति का लम्‍बा इतिहास/ हिरणी से नैनों वाली की/ तिरछी नजरों से/ मोहासक्‍त है स्‍वर्ग, मर्त्‍य व पाताल.’

कवि इस लम्‍बी कविता में इसी तरह से अपनी अभिव्‍यक्ति को बहुत सुन्‍दर ढंग से मुखरित किया है. मिलन की आस में सूखते पुरूरवा स्‍वयं कविता के रूप में अपनी कहानी कहता है जिसे कवि आगे बढ़ाता है. कविता में कवि की दार्शनिकता घटनाओं का प्रतीकात्‍मक विश्‍लेषण करते हुए बार बार सोचने के लिए विवश करती है. देवराज इन्‍द्र, लुब्‍धक दैत्‍य, चित्ररेखा व अन्‍य अप्‍सराओं के साथ उमड़ते घुमड़ते यादों के बवंडर कविता को रोचक बनाते हैं.

डॉ.पंचानन मिश्र जी की कृति ‘सीता जी की आखिरी रात’ रामचरित के सीता वनवास की कथा है. यह लम्‍बी कविता पूरी तरह से दर्शन पर आधारित कविता है. कवि इसे काव्‍य रूप में रचने के पहले अपनी मनोदशा एवं चिंतन को पाठकों के सामने रखने के लिए नौ पृष्‍टों में भूमिका लिखा है. बार बार अग्निपरीक्षा देती नारी के मनोभावों का मार्मिक चित्रण इस कविता में नजर आती है. राज्‍याभिषेक के उपरांत सीता पर लांछन लगने के कारण राम द्वारा उसे त्‍याग दिया जाता है. गर्भवती असहाय नारी को जंगल में इस तरह छोड़ जाने से थोथे राम राज्‍य की परिकल्‍पना पर भी जगह-जगह इसमें तीक्ष्‍ण व्‍यंग्‍य उपस्थित हैं. शब्‍दों का संयोजन एवं भाव प्रवाह अद्भुत है, कविता को पढ़ते हुए सीता के प्रति करूणा के साथ ही मानवीय सम्राट के निर्णय पर बार बार खीझ उभर आता है. कविता प्रत्‍येक पूर्णविरामों के साथ गंभीरता से सोंचने को मजबूर करती है. ‘सीता जी की आखिरी रात’ के कई हिस्‍से अत्‍यंत प्रभावशाली एवं उल्‍लेखनीय है जिन्‍हें मैं यहां लिखना चाहूं तो पूरे किताब की नकल यहां उतारना पड़ेगा. यह लम्‍बी कविता काव्‍य के सभी तत्‍वों से परिपूर्ण है, प्रादेशिक भाषा उडिया में लिखे इस उत्‍कृष्‍ट साहित्‍य को तो राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पुरस्‍कार मिलना चाहिए.

प्रतीकों एवं शब्‍द संयोजन में कवि की सिद्धस्‍तता दोनों पुस्‍तकों में स्‍पष्‍ट झलक रही है. अनुवादक के हिन्‍दी शब्‍द सामर्थ्‍य से यह रचना हिन्‍दी पाठकों के लिए भी सुगम व बोधगम्‍य हो गई है. इन्‍ही गुणों के कारण दोनों पुस्‍तकों को पढ़ते हुए, आरंभ से अंत तक, घटनाओं का प्रवाह अविरल रूप से मानस में समाता चला जाता है. छंदमुक्‍त नई कविता के स्‍वरूप में लिखी गई इन दोनों लम्‍बी कविताओं के रचनाकार डॉ.पंचानन मिश्र एवं अनुवादक कृष्‍ण कुमार ‘अजनबी’ को मेरी शुभकामनायें.
संजीव तिवारी


पुरूरवा का पूर्वानुमान
रचनाकार : डॉ.पंचानन मिश्र
भाषान्‍तर : कृष्‍ण कुमार ‘अजनबी’
प्रकाशक : पहले पहल प्रकाशन, भोपाल
प्रथम संस्‍करण 2015
पृष्‍ट संख्‍या : 112
मूल्‍य : 150/- हार्ड बाउन्‍ड


 सीता जी की आखिरी रात
रचनाकार : डॉ.पंचानन मिश्र
भाषान्‍तर : कृष्‍ण कुमार ‘अजनबी’
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नई दिल्‍ली
प्रथम संस्‍करण 2015
पृष्‍ट संख्‍या : 136
मूल्‍य : 260/- हार्ड बाउन्‍ड

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भट्ट ब्राह्मण कैसे

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है। पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजव

दे दे बुलउवा राधे को : छत्तीसगढ में फाग 1

दे दे बुलउवा राधे को : छत्‍तीसगढ में फाग संजीव तिवारी छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के लोकगीतों में फाग का विशेष महत्व है । भोजली, गौरा व जस गीत जैसे त्यौहारों पर गाये जाने लोक गीतों का अपना अपना महत्व है । समयानुसार यहां की वार्षिक दिनचर्या की झलक इन लोकगीतों में मुखरित होती है जिससे यहां की सामाजिक जीवन को परखा व समझा जा सकता है । वाचिक परंपरा के रूप में सदियों से यहां के किसान-मजदूर फागुन में फाग गीतों को गाते आ रहे हैं जिसमें प्यार है, चुहलबाजी है, शिक्षा है और समसामयिक जीवन का प्रतिबिम्ब भी । उत्साह और उमंग का प्रतीक नगाडा फाग का मुख्य वाद्य है इसके साथ मांदर, टिमकी व मंजीरे का ताल फाग को मादक बनाता है । ऋतुराज बसंत के आते ही छत्‍तीसगढ के गली गली में नगाडे की थाप के साथ राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुह से बरबस फूटने लगते हैं । बसंत पंचमी को गांव के बईगा द्वारा होलवार में कुकरी के अंडें को पूज कर कुंआरी बंबूल की लकडी में झंडा बांधकर गडाने से शुरू फाग गीत प्रथम पूज्य गणेश के आवाहन से साथ स्फुटित होता है - गनपति को म

क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है? बैगनी फूलो वाले कंटकारी या भटकटैया को हम सभी अपने घरो के आस-पास या बेकार जमीन मे उगते देखते है पर सफेद फूलो वाले भटकटैया को हम सबने कभी ही देखा हो। मै अपने छात्र जीवन से इस दुर्लभ वनस्पति के विषय मे तरह-तरह की बात सुनता आ रहा हूँ। बाद मे वनस्पतियो पर शोध आरम्भ करने पर मैने पहले इसके अस्तित्व की पुष्टि के लिये पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की। यह पता चला कि ऐसी वनस्पति है पर बहुत मुश्किल से मिलती है। तंत्र क्रियाओ से सम्बन्धित साहित्यो मे भी इसके विषय मे पढा। सभी जगह इसे बहुत महत्व का बताया गया है। सबसे रोचक बात यह लगी कि बहुत से लोग इसके नीचे खजाना गडे होने की बात पर यकीन करते है। आमतौर पर भटकटैया को खरपतवार का दर्जा दिया जाता है पर प्राचीन ग्रंथो मे इसके सभी भागो मे औषधीय गुणो का विस्तार से वर्णन मिलता है। आधुनिक विज्ञ