विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन के लिए भारत के सवोच्च न्यायालय द्वारा ई- न्यायालय परियोजना 2005 के तहत् न्याय निर्णयों को सुलभ बनाने के लिए ई-कोर्ट वेबसाईट बनाया गया है जिसमें जिला एवं ताल्लुका न्यायालयों के न्याय निर्णय भी अब पीडीएफ फारमेट में तत्काल प्राप्त हो जा रहे हैं। इसके पूर्व सिर्फ सवोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्याय निर्णय ही इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त हो पाते थे, अब ई-कोर्ट के कारण भारत के प्रत्येक जिला एवं ताल्लुका न्यायालयों के न्याय निर्णय कुछ क्लिक में उपलब्ध हो पा रहे हैं।
हमने ई-कोर्ट में उपलब्ध, छत्तीसगढ़ के जिला एवं ताल्लुका न्यायालयों के कुछ विशेष न्याय निर्णयों को एक ब्लॉग बनाकर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। जिसका लिंक यहॉं है, अभी कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ के गैंगेस्टरों के बीच हुए महादेव हत्याकाण्ड का फैसला दुर्ग न्यायालय के द्वारा दिया गया उसे भी इस ब्लॉग में शामिल किया गया है। हम प्रयास करेंगें कि नियमित रूप से महत्वपूर्ण एवं आवश्यक स्थानीय न्याय निर्णयों को उक्त ब्लॉग में प्रस्तुत करें।
सूचनार्थ ..
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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)