विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
आज सुबह अरूण कुमार निगम जी का फोन आया कि, आपके छत्तीसगढ़ ब्लॉगर्स चौपाल में कुछ गड़बड है. तो मैं इस बात को बहुत ही सामान्य लेते हुए कहा कि देख लेता हूं. किन्तु अरूण भईया नें कहा कि समस्या गंभीर किस्म की है, कोशिस करें कि जल्दी उसका हल करें.. तो मैं चकराया, कारण पूछा तो उन्होंनें बताया कि, मेरे ब्लॉग एग्रीगेटर छत्तीसगढ़ ब्लॉगर्स चौपाल ब्लॉग में हिंदी की सबसे प्रतिष्ठित 'हंस' पत्रिका का जो लिंक लगा है उसे क्लिक करने पर पोर्न साईट खुल रहा है.
बात सचमुच गंभीर थी, हमारे कई पाठक जिन्हें आनलाईन साहित्यिक पत्रिका पढ़ना होता है वे मेरे इस ब्लॉग से इन लिंकों के सहारे वे, उन आनलाईन पत्रिकाओं में पहुचते थे. किन्तु हमारे सहित हजारों लोगों नें हंस पत्रिका की यही लिंक अपने ब्लॉग या वेबसाईटों में लगा रखी है इस कारण विश्वास नहीं हो रहा था. जब उस लिंक को क्लिक किया तो सचमुच में थाई भाषा की कोई पोर्न वेबसाईट इस लिंक से खुल रही थी. लिंक बिना रिडायरेक्ट हुए उसी डोमेन नाम से खुल रहा था. यह स्पष्ट है कि 'हंस' के इस पुराने वेब साईट के डोमेन की अवधि समाप्त हो गई होगी. इसके साथ ही इसकी लोकप्रियता एवं हजारों साहित्य प्रेमियों के ब्लॉग एवं वेब में लगे लिंकों, सर्च इंजन में तगड़े धमक के कारण किसी सिरफिरे नें इसे खरीद लिया एवं इसे मलेशियाई संतरागाच्छी बना दिया.
हिंदी की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिका इसी 'हंस' में जब रामशरण जोशी का, छत्तीसगढ़ बालाओं का जुगुप्ता उपजाने वाला अमर्यादित लंबा वृतांत, दो किश्तों में छपा था, तब से हमें तो, यह लगने ही लगा था कि इस पत्रिका के डोमेन पर भरोसा करना, ज्यादा भरोसे के लायक नहीं है. उसके बाद के कुमार-कुमारियों के किस्सों की जानकारी आप सब को है. इन सबके वावजूद पत्रिका का स्तर राजेन्द्र यादव जी के रहते तक कायम भी रहा है. पिछले दिनों फेसबुक में एक वरष्ठि साहित्यकार नें ताजा अंक के संबंध में टिप्पणियां की थी जिसके यह ज्ञात होता था कि हंस का स्तर राजेन्द्र जी के जाने के बाद कुछ कम हुआ है.
स्तर के आकलन की न तो हमारी योग्यता है ना ही हमारी कोई बौद्धिक जिम्मेदारी किन्तु वेब साईट में हंस के नाम पर फैले पोर्न वेब साईट को हटाने की अपील करने की जिम्मेदारी अवश्य है. तो मित्रों उन सभी ब्लॉगों एवं वेब साईटों में जहॉं 'हंस' पत्रिका के लिंक लगे हैं उन्हें बदल ले एवं पत्रिका का नया वेब साईट का लिंक लगा लें. हंस का वर्तमान वेबसाईट यह http://hansmagazine.in है. आगे इस डोमेन में भी साहित्य के बजाए कुछ और दिखाने लगे तो तत्काल सूचना दें.
संजीव तिवारी
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