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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

समीक्षाः


बाजारवाद के इस दौर में आज हर देश अपने अपने पर्यटन को उद्योग का दर्जा दे रहा है। ऐसे कई देश जिनकी माली हालत पतली थी उनमें चेतना जागी और वे अपने नैसर्गिक संसाधनों को सुन्दर पर्यटन स्थलों का रुप देने में लग गए और आज अच्छा धन कमा रहे हैं। इनमें हमारे देश में राजस्थान एक बड़ा उदाहरण है जो अपने अभावों को पर्यटन व्यवसाय के जरिये दूर करने में सफल हो रहा है। देश के अतिरिक्त विदेश से भी सैलानी अब वहां खूब आने लगे हैं।

इस मायने में छत्तीसगढ़ में पर्यटन का विस्तार अभी राष्ट्रीय क्षितिज पर नहीं हो पाया है। छत्तीसगढ़ के जन मानस घूमने-फिरने में तो बहुत आगे हैं और वे देश के किसी भी क्षेत्र के पर्यटन स्थलों में भारी संख्या में देखे जाते हैं पर उनके राज्य छत्तीसगढ़ में बाहर से लोग रहने-बसने तो खूब आते हैं पर वे सैलानी बनकर नहीं आते। छत्तीसगढ़ राज्य शासन का पर्यटन विभाग बाहर के सैलानियों को अपनी ओर खींचने का कोई उपक्रम करे इसकी अभी अपेक्षा ही है। इसे मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य में भी देखा जा सकता है, पर्यटन पर केंद्रित ‘कला परम्परा’ के अंक का विमोचन करते हुए ग्रंथ को देखकर उसके संपादक डी.पी.देशमुख को मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘यह काम तो हमारे पर्यटन मंत्रालय को करना चाहिए था।’

बहरहाल हमारे सामने यह सद्कार्य भिलाई रिफ्रेक्टरीज प्लांट के जन सम्पर्क अधिकारी डी.पी.देशमुख ने यह अपने निजी प्रयासों और संपर्क सूत्रों से संपन्न कर लिया है। श्री देशमुख की कर्मठता का एक बड़ा प्रमाण है यह छत्तीसगढ़ गाइड जिसे उन्होंने ‘कला परम्परा’ का नाम दिया है और इनमें पर्यटन एवं तीरथधाम सम्बंधी सचित्र जानकारियों को उपलब्ध करवाया है। यह निश्चय ही एक दुश्कर और दुर्लभ कार्य है। कभी रंगकर्म से जुड़े देशमुख एक अंतरमुखी व्यक्तित्व हैं। उनके चेहरे पर एक ऐसी चुप्पी दिखलाई देती है जिसके भीतर रचनात्मकता का कोई लावा बह रहा हो। जब यह लावा फूटता है तब उनके परिश्रम और पुरुषार्थ का सुपरिणाम सबके सामने होता है। अपने इन प्रयासों के विषय में वे कहते हैं कि ‘जिन लोगों ने छत्तीसगढ़ को परिभाषित, विश्लेषित करने का काम विविध रुपों और अनेक आयामों में गंभीरता से किया है, उनकी पहचान झूठे विकास तंत्र के नारे के बीच कहीं खो न जाये, यह एक बड़ा संकट है। इस आशंका और चुनौती को ध्यान में रखकर कला परम्परा एक ऐसा अभिनव प्रकाशन है जो छत्तीसगढ़ की खांटी लोक परम्परा व मौलिक संस्कृति को न केवल पोषित करता है, वरन् उन्हें प्रमाणित, चिन्हांकित व महिमा मण्डित भी करता है।’ इसके पूर्व कला परम्परा के जो तीन भाग निकले हैं उनमें साहित्यकारों, रंगमंच व लोक कलाकारों का जीवन परिचय है। इनमें चित्र व सम्पर्क सूत्र भी दिए गए हैं जिनसे इनकी उपयोगिता बढ़ गई है।

यह कला परम्परा का चौथा अंक है जो छत्तीसगढ़ के पर्यटन पर केंद्रित है, जिसमें राज्य के प्राकृतिक छटाओं व ऐतिहासिक पौराणिक स्थलों का विस्तार है। इनमें छत्तीसगढ में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, कबीर, fसंध, गुजरात आदि से जुड़े सभी धर्म स्थलों की इतिहास गाथा है। इनमें कितनी ही पुरा कथाएं हैं। छत्तीसगढ़ के वनों, पहाड़ियों, झरनों और गुफाओं का चित्रण है। सैलानियों के वहां तक जाने के लिए पहुंच मार्ग बताए गए हैं, रेल मोटर के साधनों के साथ ठहरने रुकने के आवासीय साधन दर्शाए गए हैं। इन सबके साथ इस ज्ञानवर्द्धक निर्देश ग्रंथ की सबसे बड़ी विशेषता उनके मनोहारी रंगीन चित्र हैं जिनकी छटा बरबस ही पाठकों को मोह लेती हैं और उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य के सुन्दर भ्रमण स्थलों को घूम आने का आमंत्रण देती सी प्रतीत होती हैं।

इस ग्रंथ की एक और विशेषता यह है कि यह पुराणों और इतिहास परक जानकारियों के साथ ही आधुनिक छत्तीसगढ़ की पर्यटन सम्बंधी विशेषताओं का उल्लेख करती है, उनसे हमारा परिचय कराती हैं। इनमें गिरौदपुरी में निर्मित सतनाम पंथ के कुतुब मीनार जैसे उंचे जैत खम्भ के आधुनिक भवन का उल्लेख है। तिब्बती शरणार्थियों से बसा मैनपाट, बार नवापारा का अभयारण्य, गंगरेल बांध, नंदनवन, मदकू द्वीप, खैरागढ़ के इंदिरा संगीत विश्व-विद्यालय, कुनकुरी में स्थित एशिया के दूसरे बड़े कैथलिक चर्च, छत्तीसगढ़ के धरोहर को संजोता पुरखौती मुक्तांगन व झर झर झरते नयनाभिराम झरनों के कितने ही दृश्यों का रोचक सचित्र विस्तार है। इन सबके लिए आलेख स्थानीय संवाददाताओं ने तैयार किए हैं।

कहा जा सकता है कि डी.पी.देशमुख द्वारा संपादित यह संग्रह अपने आप में एक सम्पूर्ण गाइड है, यह न केवल छत्तीसगढ़ अंचल के प्रति संपादक के भावनात्मक लगाव को दर्शाता है बल्कि छत्तीसगढ़ आने वाले सैलानियों के लिए यह पर्यटन के नए द्वार भी खोलता है। कला परम्परा का यह भाग एक संग्रहणीय अंक है।

पुस्तक : कला परम्परा (पर्यटन एवं तीरथ धाम)
संपादक : डी.पी.देशमुख
मूल्य : रु. 500/-
प्रकाशकः नीता देशमुख, चर्च के सामने, कृष्णा टाकीज रोड, आशीष नगर (पूर्व),
रिसाली, भिलाई (छत्तीसगढ़) मो. 9425553536
लेखक संपर्कः 9407984014

20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. Many-many thanks for your valuable comments.

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    2. धन्यवाद नीता जी -- आपने प्रतिक्रिया व्यक्त की. आप यूनीकोड सीख लीजिये. इसमें हिंदी टाइपिंग आसान है.

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  2. विनोद साव कलम के सिपाही हैं । अपने घर में ही इतने पर्यटन-स्थल हैं कि जानकारी होते हुए भी लोग जा नहीं पाते हैं यह विचित्र बात है ठीक उसी तरह जैसे हम ऑख से सब-कुछ देखते हैं किन्तु ऑख को नहीं देख पाते हैं-" ज्यों ऑखिनु सब देखिए ऑखि न देखी जाइ ।"

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  3. देशमुख जी के उद्यम की दृष्टि और दिशा प्रशंसनीय है, परिणाम भी अच्‍छा होगा.

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  4. yeh dekh kar mujhe itni khusi ho rahi hai ki mein vyakt nahi kar satkta ,vastvikta to yahi hai ki..hume swayam ko itni jankari nahi mil pati hai ki hum,pehle chattisgarh ko hi poori tarah samje or dekhe ..maine desh ,videsh kai jagaho ko yatri ki hai ,lekin jab chattisgarh ki baat aati hai to hum isme peeche ho jate hai ..karan jankari ka abhav ..mein Vinod Sav ji evam Neeta Deshmukh ji ko dhanyawad aur badhaiyan deta hoon

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    उत्तर
    1. Aapke vicharon ke liye bahut-bahut DHANYAWAAD. Hum puri koshish karenge ki hum aapki ummeedon par kahre utar sake.
      Ek baar punah dhanyawaad.

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  5. ई मेल से सत्‍येन्‍द्र तिवारी, वाईल्‍ड लाईफ फोटोग्राफर एण्‍ड टूर आपरेटर, बांधवगढ. someone needed to remind chief minister that if he wants these kind of work should be done by Tourism deptt then he needs to bring in proffesional in that. all the people in cg are from M.P.Tourism and
    they dont have any vision. Someone needs to do a proper story on this.

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    उत्तर
    1. संजीव भाई इस बार टिपण्णी अच्छी आई है. आपकी मेहनत रंग लाई है. फेसबुक में भी आपने डिस्प्ले किया है.

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    2. Thank you for your valuable suggestions and comments

      हटाएं
  6. Its a good initiative taken by Mr. D.P. Deshmukh and his team and Goverment must do something like that so that people from other parts as well as within state may come to know how incredible is our chhattisgarh tourism is!

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  7. Its a good initiative taken by Mr. Deshmukh and his team and the government must do something like that so that the people within the states as well as from other parts of our country may come to know how incredible is our chhattisgarh tourism is!

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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