भारतीय शास्‍त्रीय संगीत में छत्‍तीसगढ़ी बंदिशें सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

भारतीय शास्‍त्रीय संगीत में छत्‍तीसगढ़ी बंदिशें

भारतीय शास्‍त्रीय संगीत के जानकारों का कहना है कि शास्‍त्रीय संगीत की बंदिशों में गाए जाने वाले अधिकतम गीत ब्रज के हैं, दूसरी भाषाओं की बंदिशें भारतीय शास्‍त्रीय रागों में बहुत कम देखी गई है। छत्‍तीसगढ़ी को भाषा के रूप में संवैधानिक दर्जा देनें के प्रयासों के बावजूद शास्‍त्रीय रागों में इस भाषा का अंशमात्र योगदान नहीं है। छत्‍तीसगढ़ी लोकगायन की परम्‍परा तो बहुत पुरानी है किन्‍तु शास्‍त्रीय गायन में छत्‍तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग अभी तक आरंभ नहीं हो पाया है। इस प्रयोग को सर्वप्रथम देश के बड़े संगीत मंचों में भिलाई के कृष्‍णा पाटिल नें आरंभ किया है। कृष्‍णा पाटिल भिलाई स्‍पात संयंत्र के कर्मचारी हैं एवं संगीत शिक्षक हैं। कृष्‍णा नें गुरू शिष्‍य परम्‍परा में शास्‍त्रीय गायन अपने गुरू से सीखा है(गुरू का नाम हम सुन नहीं पाये, ज्ञात होने पर अपडेट करेंगें) । वर्षों की लम्‍बी साधना, निरंतर रियाज, संगीत कार्यक्रमों में देश भर में प्रस्‍तुति, विभिन्‍न ख्‍यात संगीतज्ञों के साथ संगत देनें के बावजूद बेहद सहज व्‍यक्तित्‍व के धनी कृष्‍णा नें अपनी भाषा को शास्‍त्रीय रागों में बांधा है। उनका कहना है कि वे दुखी होते हैं जब लोग उन्‍हें कहते हें कि छत्‍तीसगढ़ी गीतों में फूहड़ता छा रही है और अब कर्णप्रिय गीतों का अभाव सा हो गया है। इसीलिए वे कहते हैं कि छत्‍तीसगढ़ में संगीतकारों और गीतकारों को अपनी भाषा के प्रति और संवेदशील होने की आवश्‍यकता है। छत्‍तीसगढ़ी गीतों के इस शास्‍त्रीय गायक कृष्‍णा पाटिल से हमारी मुलाकात सरला शर्मा जी के निवास पद्मनाभपुर, दुर्ग के आवास में हुई। विदित हो कि हिन्‍दी एवं छत्‍तीसगढ़ी में समान अधिकार से निरंतर साहित्‍य रचने वाली विदूषी लेखिका सरला शर्मा वरिष्‍ठ साहित्‍यकार स्‍व.पं.शेषनाथ शर्मा 'शील' जी की पुत्री हैं। सरला शर्मा के निवास में विगत 4 अगस्‍त को एक आत्‍मीय पारिवारिक गोष्‍ठी का आयोजन श्रीमती शशि दुबे की योरोप यात्रा का संस्‍मरण सुनने के लिए हुआ था।

शशि दुबे नें अपनी पंद्रह दिवसीय योरोप यात्रा का सजीव चित्रण किया। दर्शनीय स्‍थलों की विशेषताओं, यात्रा में रखी जाने वाली सावधानियों, यात्रा आयोजकों के द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं, स्‍थानीय निवासियों, प्राकृतिक वातावरण व परिस्थितियों का उन्‍होंनें सुन्‍दर चित्रण किया। उन्‍होंनें अपना संस्‍मरण लगभग पंद्रह-बीस पन्‍नों में लिख कर लाया था जिसे वे पढ़ कर सुना रहीं थी, बीच बीच में प्रश्‍नों का उत्‍तर भी दे रहीं थीं। उनके इस संस्‍मरण का प्रकाशन यदि किसी पत्र-पत्रिका में हो तो योरोप यात्रा में जाने वालों के लिए यह बहुत काम का होगा।

कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव में कवि गोष्‍ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें अर्चना पाण्‍डेय, डॉ.हंसा शुक्‍ला, डॉ.संजय दानी, प्रभा सरस, डॉ.नरेन्‍द्र देवांगन, विद्या गुप्‍ता, प्रदीप वर्मा, आशा झा, डॉ.निर्वाण तिवारी, दुर्गा पाठक, नरेश विश्‍वकर्मा, मुकुन्‍द कौशल और मैंनें भी अपनी कवितायें पढ़ी। कार्यक्रम में छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्‍यक्ष पं.दानेश्‍वर शर्मा, सचिव पद्मश्री डॉ.सुरेन्‍द्र दुबे व डॉ.निरूपमा शर्मा भी उपस्थित थे।

कार्यक्रम में कृष्‍णा पटेल की संगीत प्रस्‍तुति के बाद डॉ.निर्वाण तिवारी नें रहस्‍योत्‍घाटन किया कि गोष्‍ठी में बैठे युगान्‍तर स्‍कूल के संगीत शिक्षक सुयोग पाठक भी अपनी संगीतमय प्रस्‍तुति थियेटर के माध्‍यम से जबलपुर के थियेटर ग्रुप के साथ देते रहते हैं, जिसमें वे गीतों व कविताओं को नाट्य रूप में संगी व दृश्‍य माध्‍यमों से प्रस्‍तुत करते हैं। उपस्थित लोगों नें सुयोग से अनुरोध किया तो सुयोग पाठक नें बीते दिनों कलकत्‍ता में हुए नाट्य महोत्‍सव का वाकया सुनाया जिसमें उनके ग्रुप को गुलज़ार के किसी एक गीत की नाट्य प्रस्‍तुति देनें को कहा गया। कार्यक्रम में गुलज़ार बतौर अतिथि उपस्थित रहने वाले थे, आयोजकों नें गुलज़ार के गीतों की एक संग्रह टीम को पकड़ाया जिसमें से लगभग प्रत्‍येक गाने फिल्‍माए जा चुके थे ऐसे में उनकी गीतों को मौलिकता के साथ पुन: संगीतबद्ध करना एक चुनौती थी किन्‍तु सुयोग और टीम नें प्रयास किया। चल छैंया छैया गीत को प्रस्‍तुत करने के बाद स्‍वयं गुलज़ार नें सुयोग की पीठ थपथपाई और आर्शिवाद दिया। सुयोग नें बिना किसी वाद्य संगीत के इस गीत को नये सुर में हमें सुनाया।

बात जिससे आरंभ किया था उसके संबंध में कुछ और बातें आपसे साझा करना चाहूंगा। कृष्‍णा पाटिल से परिचय कराते हुए कवि मुकुन्‍द कौशल नें बतलाया कि कृष्‍णा हारमोनियम के सर्वश्रेष्‍ठ वादक हैं। कृष्‍णा के द्वारा हारमोनियम में बजाए जाने वाले लहर की कोई सानी नहीं है। हारमोनियम का उल्‍लेख करते हुए कृष्‍णा नें कहा कि संगीत के शास्‍त्रीय गुरूओं का कहना है कि हारमोनियम शास्‍त्रीय गायन के लिए योग्‍य वाद्य नहीं है, यह हमारा पारंपरिक वाद्य नहीं है, यह फ्रांस से भारत में आया है। शास्‍त्रीय संगीत का असल आनंद तारों से बने हुए यंत्र से ही मिलता हैं। छत्‍तीसगढ़ी भाषा के शास्‍त्रीय संगीत पर संगत के संबंध में मुकुन्‍द कौशल नें बतलाया कि कुछ बरस पहले पं.गुणवंत व्‍यास के द्वारा इस पर प्रयास किये गए थे। उस समय छत्‍तीसगढ़ी के कुछ स्‍थापित कवियों के गीतों को शास्‍त्रीय रागों में सुरबद्ध करके 'गुरतुर गा ले गीत' नाम से एक एलबम निकाला गया था। इस एलबम नें यह सिद्ध कर दिया था कि छत्‍तीसगढ़ी बंदिशें शास्‍त्रीय संगीत में भी गायी जा सकती हैं।

कार्यक्रम के गायन को मैं अपने मोबाईल में रिकार्ड किया, जो सहीं ढंग से रिकार्ड नहीं हो पाया है, फिर भी पाठकों के लिए इसे मैं प्रस्‍तुत कर रहा हूँ :-

कृष्‍णा पाटिल : राग गुजरी तोड़ी - सरसती दाई तोर पॉंव परत हौँ



कृष्‍णा पाटिल : राग यमन - जय जय छत्‍तीसगढ़ दाई


कृष्‍णा पाटिल : राग.... - मन माते सहीँ लागत हे फागुन आगे रे


कृष्‍णा पाटिल : राग.... - मोर छत्‍तीसगढ़ महतारी के पँइयॉं लागँव


सुयोग पाठक : चल छंइयॉं छंइयॉं


मुकुन्‍द कौशल : गीत>


कार्यक्रम का चित्र प्रदीप वर्मा जी के कैमरे से लिया गया जिसका इंतजार है.

संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. कृष्णा पाटिल आज किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं । वे बहुत अच्छा गाते हैं और छत्तीसगढी की गरिमा को उत्तरोत्तर शिखर पर पहुँचाने के संकल्प के साथ गाते हैं । उन्होंने मुझसे ठुमरी लिखने का आग्रह किया था और मैंने उन्हें ठुमरी लिखकर दिया भी है । इस कार्यक्रम में मुझे भी बुलाया गया था पर मैं नहीं पहुँच नही पाई , इसका अफसोस हो रहा था । संजीव भाई के माध्यम से कार्यक्रम का पूरा ब्योरा मिल गया अब कुछ ठीक लग रहा है ।

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  2. लाजबाब प्रस्तुति ,,,पढ़कर सुनकर मजा आज्ञा ,,,

    RECENT POST : तस्वीर नही बदली

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  3. शुभ प्रभात संग प्रणाम इस बहुत खुबसूरत संग्रहनीय गीतमय पोस्ट के लिए भागीदारों को बधाई

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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