आरंभ Aarambha सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

खलक उजरना या उजड़ना और खँडरी नीछना या ओदारना

छत्‍तीसगढ़ी मुहावरा 'खलक उजरना' व 'खलक उजड़ना' का भावार्थ किसी स्‍थान पर भीड़ लगना एवं विलोम अर्थ के अनुसार दूसरे स्‍थान से सभी का तत्‍काल भाग जाना होता है। आईये इस मुहावरे में प्रयुक्‍त 'खलक' शब्‍द पर अपना ध्‍यान केन्द्रित करते हैं। संस्‍कृत शब्‍द 'खल्‍ल' से छत्‍तीसगढ़ी व हिन्‍दी में 'खल' का निर्माण हुआ है। 'खल' किसी वस्‍तु को कूटने के लिए धातु या पत्‍थर के एक पात्र को कहा जाता है। मूर्खता के लिए हिन्‍दी में प्रयुक्‍त 'खल' का छत्‍तीसगढ़ी में भी समान अर्थों में प्रयोग होता है, इससे संबंधित मुहावरा 'खल बउराना : पागल होना' है। हिन्‍दी में प्रचलित 'खलना' के लिए छत्‍तीसगढ़ी में 'खलई' का प्रयोग होता है जिसका आशय ठगने या लूटने की क्रिया या भाव है। छत्‍तीसगढ़ी में पानी के बहाव की आवाज एवं बिना बाधा के उत्‍श्रृंखलता पूर्वक खर्च करने को 'खलखल' कहा जाता है। हिन्‍दी में उन्‍मुक्‍त हसी के लिए प्रयुक्‍त 'खिलखिलाना' के अपभ्रंश रूप में छत्‍तीसगढ़ी में 'खलखलाना' का प्रयोग होता है। घवराहट, व्‍य

गरहन तीरना और गर से संबंधित मुहावरे

छत्तीसगढ़ी मुहावरा गरहन तीरना का भावार्थ अपंग होना से है. शब्द विच्छेद करते हुए छत्तीसगढ़ी शब्द 'गरहन' को देखें तो इसमें 'गर' और 'हन' का प्रयोग हुआ है. सामान्य बोलचाल में छत्तीसगढ़ी शब्द 'गर' का प्रयोग गलने के भाव या क्रिया के लिए एवं गरदन के लिए प्रयोग में आता है. गरदन के अभिप्राय से प्रयुक्त 'गर' से बने शब्दों में गरदन काटने वाला यानी भारी अनिष्ट करने वाले, हानि पहुचाने वाले को 'गरकट्टा' कहा जाता है. इसी भाव के कारण पौधों की बाली या कली व फूल को काटने वाले एक कीट को भी 'गरकट्टा' कहा जाता है. गरदन के लिए प्रयुक्त 'गर' से बने मुहावरों में 'गर नवाना : अधीनता स्वीकार करना, शर्मिंदा होना', 'गर अंइठना : गला दबाकर मार डालना', 'गर फंसना : बंध जाना या संकट में फसना' आदि हैं. गरदन के अर्थ से परे 'गर' के साथ प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों में तेज बहाव, तीव्र ढाल वाली भूमि या पानी को शीघ्र सोंख लेने वाली भूमि को 'गरगरा' कहा जाता है. पौधों के जड़ मूल या वह भाग जो मिट्टी को जकड़ ले उसे 'गरगंसा&

गोहार परना एवं गुहरी गदबद होना

छत्तीसगढ़ी मुहावरा गोहार परना का भावार्थ खूब विलाप करना है. चलिए आज इस मुहावरे में प्रयुक्त शब्द 'गोहार' का आशय देखते हैं. शब्दशास्त्री इसे संस्कृत शब्द गो एवं हरण वाले हार से निर्मित बताते हैं जिसका अर्थ सहायता के लिए किये जाने वाली पुकार है. 'गोहार' से बने शब्द 'गोहरईया' का आशय याचना या निवेदन करने वाला है एवं याचना या निवेदन करने के भाव को 'गोहराना' कहा जाता है. 'गोहार पारना' का आशय बात को फैलाना व सहायता के लिए पुकारना भी है. गोड़ी में भी 'गोहार' का आशय हल्ला है, नजदीकी शब्द 'गोहेनी' का आशय छलकपट है. इससे नजदीक के शब्दों में गायों के रहने के स्थान को 'गोहड़ी' कहते हैं, पशुओं के समूह को 'गोहड़ी' ग्वाला, अहीर, ढ़ोर चराने वाले को 'गहिरा', गहरा को 'गहिर' आदि कहते हैं. छत्तीसगढ़ी मुहावरा गुहरी गदबद होना का भावार्थ सत्यानाश होना या सबकुछ नष्ट होना है. इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों को समझने का प्रयत्न करते हैं. संस्कृत शब्द 'गुहय' अर्थात मल, विष्ठा से बना हुआ छत्तीसगढ़ी शब्द

घला जाना व घुरवा गॉंगर होना

छत्तीसगढ़ी मुहावरा 'घला जाना' का भावार्थ है बाधित होना. इस मुहावरे में प्रयुक्त 'घला' शब्द 'घलई' का समानार्थी है. फेकने की क्रिया या भाव, बिगाड़ने की क्रिया या भाव, मिश्रण करने की क्रिया या भाव, ईट खप्पर के लिए मिट्टी तैयार करने की क्रिया के लिए 'घलई' का प्रयोग होता है. इसी से बने शब्द 'घलईया' का आशय उपरोक्त क्रिया करने वाला से है. इसके अतिरिक्त 'घलई' स्वयं के या दूसरे के व्यर्थ कार्य करने, रोक देने के कारण समय नष्ट होने के भाव के लिए भी प्रयुक्त होता है, यही 'घलाना' है.  इस 'घला' के अतिरिक्त निश्चितता बोधक शब्द 'भी' के लिए भी 'घला', 'घलव' एवं 'घलोक' का प्रयोग होता है, यथा 'मोहन घला जाही : मोहन भी जायेगा'.  छत्तीसगढ़ी मुहावरा घुरवा गॉंगर होना का भावार्थ बेकार होना है. इस मुहावरे में प्रयुक्त 'घुरवा' एवं 'गॉंगर' को समझने का प्रयत्न करते हैं. इस छत्तीसगढ़ी मुहावरे में प्रयुक्त शब्द 'घुरवा' एवं 'घुरूवा' का प्रयोग समान रूप से समानार्थी रूप में होता है.

चुलुक लगाना, चिहुर परना व चिभिक लगा के

छत्तीसगढ़ी मुहावरा चुलुक लगाना का भावार्थ है तलब लगना। आईये इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द ‘चुलुक’ को समझने का प्रयत्न कर हैं। छत्तीसगढ़ी शब्द ‘चुलुकई’ उकसाने या उत्तेजित करने की क्रिया या भाव के लिए प्रयोग होता है। इसी से बने शब्द ‘चुलकहा’ का आशय चिढ़ाने वाला होता है, इस तरह से ‘चुलकाना’ का अभिप्राय इच्छा जगाना, उकसाना, चिढ़ाना एवं उत्तेजित करना होता है। इस ‘चुलक’ से बने ‘चुलुक’ शब्द की उत्पत्ति के संबंध में मान्यता है कि यह संस्कृत शब्द ‘चूष्’ का अपभ्रंश है जिसका आशय इच्छा या तलब है। इस शब्द के नजदीक के शब्दों में ‘चूल’ व ‘चुलहा’ का प्रयोग भी आम है, ‘चूल’ विवाह आदि उत्सवों में सामूहिक भोजन बनाने के लिए मिट्टी को खोदकर बनाया गया बड़ा चूल्हा है। ‘चुलहा’ दैनिक भोजन बनाने के लिए घरों में उपयोग आने वाला मिट्टी का चूल्हा है। इस ‘चूल’ से बने शब्दों में ‘चुलमुंदरिहा’ व ‘चुलमुंदरी’ का उल्लेख पालेश्वर शर्मा जी करते हैं। उनके अनुसार दूल्हे की ओर से वह व्यक्ति जो विवाह के एक दिन पूर्व वधु के घर जाकर व्यवस्था देखता है उसे ‘चुलमुंदरिहा’ व विवाह की अंगूठी को ‘चुलमुंदरी’ कहा जाता है

चारी म बुड़ना, चपका बॉंधना व चँगोर फोरना

बुराई करने में समय गवांने या बुराई करने में रत रहने पर छत्तीसगढ़ी में ‘ चारी म बुड़ना ’ कहा जाता है। छत्तीसगढ़ी में 'चार' चार अंक को तथा एक फल जिससे चिरौंजी का दाना निकलता है को कहते हैं. गोंडी में 'चार' सीताफल को भी कहा जाता है. इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द ‘चारी’ का विकास संस्कृत के ‘चाटु’ व ब्रज के ‘चाड़ी’ से हुआ है। इन दोनों भाषाओं में इसका आशय निंदा, बुराई, चुगली, अपयश से है। ‘चारी’ शब्द का विच्छेद करने इसमें चार लोगों में बात को फैलाने का भाव स्पष्ट नजर आता है, कालांतर में बात फैलाने का यह भाव चुगली करने के लिए प्रयुक्त होने लगा होगा। मुह बंद करना या चुप करा देने के लिए छत्तीसगढ़ी में ‘ चपका बॉंधना ’ मुहावरे का प्रयोग होता है। आईये अब इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द ‘चपका’ को समझने का प्रयास करते हैं। नीरवता की स्थिति, शांति या स्थिर रहने की स्थिति के लिए संस्कृत में एक शब्द ‘चुप्’ है। इसी से ‘चप’ का प्रयोग आरंभ हुआ होगा और छत्तीसगढ़ी शब्द ‘चपक’ जैसे शब्द विकसित हुए होंगें। दबाने की क्रिया या भाव के लिए छत्तीसगढ़ी में ‘चपक’ व ‘चपकई’, ‘चप

घोरन मताना

इस छत्तीसगढ़ी मुहावरे का भावार्थ जिद्द करना है। इसमें प्रयुक्त ‘घोरन’ व ‘मताना’ का आशय पर हम अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं। भयानक, भयंकर, विकराल, बहुत अधिक, कठिन, दुर्गम के समानार्थी के रूप में संस्कृत शब्द ‘घोर’ का प्रयोग होता है। यही हिन्दी में जोरदार शब्द उच्चारण या ध्वनि के लिए ‘घोर’, घोलने की क्रिया के लिए ‘घोल’ व पशु घोड़े के लिए कहीं कहीं ‘घोर’ का प्रयोग होता है, इसी से बने छत्तीसगढ़ी शब्द ‘घोरन’ का एक अर्थों में बार बार बताने की क्रिया के रूप में और दूसरे अर्थों में घोलने की क्रिया के रूप में प्रयोग होता है। इन सब के मिले जुले रूप में छत्तीसगढ़ी में घोलने वाला एवं किसी बात को बार बार बताने वाले को ‘घोरईया’ कहा जाता है। जिद व हठ के लिए ‘घोरन’, किसी बात को बार बार कहने वाला या किसी बात के लिए बार बार जिद करने वाला को ‘घोरनहा’ व ‘घोरियाना’ का प्रयोग प्रचलित है। जिद करने के भाव से बना एक मुहावरा ‘घोर मताना’ भी है। किसी बात को बार बार बताने के भाव से ‘घोर घोर के बताना’ मुहावरा भी प्रयोग में है। अपनी बात पे अड़ने के भाव के लिए भी ‘घोरियाना’ का प्रयोग होता है। इसी से ‘घोर्री’

छकल बकल करना

इस छत्तीसगढ़ी मुहावरे का भावार्थ है खूब खर्च करना। आईये देखें इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द ‘छकल’ व ‘बकल’ का आशय। तृप्त होने, पस्त होने या हारने की क्रिया के लिए हिन्दी शब्द ‘छकना’ का प्रयोग होता है। इसी भाव से छत्तीसगढ़ी ‘छकल’ बना है। इस प्रकार से 'छकना', 'छकाना', 'छकासी' ‘छकई’ का आशय अघा जाने की क्रिया या भाव, तृप्त होने की क्रिया या भाव, परास्त करने या हरा देने की क्रिया या भाव से है। इन्हीं अर्थों में संस्कृत शब्द ‘चक्’ का प्रयोग होता है, हो सकता है कि चक् के स्थान पर छत्तीसगढ़ी में 'छक्' फिर 'छकल' प्रयोग में आ गया होगा। ‘छकना’, ‘छकाना’, ‘छकासी’ इसी के नजदीक के शब्द हैं। इसके समीप के शब्दों में 'छकनहा' शब्द का प्रयोग होता है जिसका आशय चंद्रकुमार चंद्राकर जी चकित होने वाला, भ्रमित होने वाला, चकमा देने वाला, धोखेबाज, झूठा आदि बतलाते है. मेरी जानकारी के अनुसार 'छकनहा' उन पात्रों को कहा जाता है जिन पात्रों में खुदाई करके विभिन्न प्रकार के बेलबूटे आदि बनाए गए हों. यथा, 'छकनहा थरकुलिया', 'छकनहा माली',

जी अरझना और जी कल्लाना

छत्तीसगढ़ी मुहावरे "जी अरझना" का भावार्थ इंतजार करना एवं "जी कल्लाना" का भावार्थ व्याकुल होना है। इन दोनों मुहावरे में ‘जी’ के साथ दो अलग अलग छत्तीसगढ़ी शब्द का प्रयोग हुआ है। पहले मुहावरे में प्रयुक्त ‘अरझना’ छत्तीसगढ़ी अकर्मक क्रिया शब्द है। यह संस्कृत शब्द अवरूंधन के अपभ्रंश से बना है जिसका आशय फंसना, लटकना, अटकना, उलझना से है। इसी से बने शब्द ‘अरझाना’ का आशय फंसाना, लटकाना, अटकाना, उलझाना से है। दूसरे मुहावरे मे प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द ‘कल्लाना’ अकर्मक क्रिया है यह संज्ञाहीन होने के लिए प्रयुक्त संस्कृत शब्द ‘कल्’ से बना है। छत्तीसगढी में इस शब्द का प्रयोग रगड़ने, रगड़ाने, बाल आदि पकड़कर खींचने से त्वचा में दर्द होने, जलन होने, दुखदाई होने पर होता है। शब्दशास्त्री इसे संस्कृत शब्द ‘कल’ यानी चैन, सुख और हिन्दी शब्द ‘हरना’ यानी हरण से मिलकर बना मानते हैं। इस प्रकार से बेचैन, सुख ना रहने, परेशान होने, विलाप करने के लिए ‘कल्लाना’ शब्‍द का प्रयोग होने लगा होगा। केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी भाषी क्षेत्र में ‘कल्लाना’ का सीधा अर्थ बाल को खीचने से होने वाले दर्द के रूप

ब्लॉगर बी.एस. पावला, जी.के. अवधिया तथा नवीन प्रकाश को संगवारी पोस्‍ट अवार्ड

ब्‍लॉगर बी.एस.पाबला, जी.के.अवधिया व नवीन प्रकाश छत्‍तीसगढ़ पत्रकारिता के भीष्म पितामह श्री बब्बन प्रसाद मिश्र जी के पचहत्तरवें जन्मदिवस एवं सोशल मिडिया फेसबुक के लोकप्रिय ग्रुप " संगवारी " के सालगिरह के शुभ अवसर पर 16 जनवरी को रायपुर में एक गरिमामय कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम के आयोजक छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य परिषद के अध्यक्ष के.पी. सक्सेना और संगवारी पोस्ट के संयोजक गिरीश मिश्र जी थे। इस कार्यक्रम में छत्‍तीसगढ़ के लोकप्रिय ब्लॉगर बी.एस. पावला , जी.के. अवधिया तथा नवीन प्रकाश को तथा फेसबुक सोशल मीडिया संगवारी में वाल पोस्‍ट लिखने वाले कल्पेश पटेल, अमरजीत सिंह तथा सुधीर तंबोली को 'संगवारी पोस्‍ट अवार्ड' से सम्मानित किया गया। सम्‍मानित ब्‍लॉगरों एवं फेसबुक वाल टीपण लेखकों को 7001/- रूपये की नगद राशि सम्‍मान स्‍वरूप प्रदान किया गया। यह कार्यक्रम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राधाकिसन स्मृति राष्ट्रीय वैचारिक अनुष्ठान की कड़ी थी जिसमें सुपरिचित लेखक, निर्देशक, अभिनेता तथा चाणक्य और उपनिषद गंगा के निर्माता डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी, अरविंद पथक, तथा स

यात्राः गिरौदपुरी में कुतुब मीनार की तरह जैतखाम

- विनोद साव गिरौदपुरी स्थित जैतखाम्ब, चित्र गूगल से साभार कुतुबमीनार की तरह उंचा दिखने वाला टावर कोसों दूर से ही दिख जाता है। साथ में बैठे मार्ग दर्शक ने बताया था कि रात में ’इस मीनार की सुंदरता देखते बनती है भइया...इसकी रोशनी झिलमिल हो उठती है।’ पास आने से इसकी भव्यता बढ़ती चली जाती है। यह क्रीमी सफेद है और इसका परिसर बड़ा है। इसका भवन नीचे विशाल गोलाकार है और क्रमशः संकरा होता हुआ उपर की ओर जाता है।अमूमन इस तरह के भवन विन्यास वेध शालाओं के रुप में कहीं कहीं दिखते हैं जो तारों और नक्षत्रों को देखने के लिए बनाए जाते हैं। भवन का नक्षा दूरबीन की तरह का है, ऐसे लगता है जैसे कोई बड़ी दूरबीन जमीन पर रख दी गई हो। इनमें भवन के भीतर बाहर कई स्थानों पर सुन्दर कॉचों को करीने से मढ़ा गया है। भीतर काम करते एक तकनीशियन ने बताया था कि ’यह आठ मंजिला भवन है और इसकी उंचाई चौंहत्तर मीटर है। इसमें जाने के लिए लिफ्ट है पर अभी उद्घाटन नहीं हुआ है।’’ यह भवन सतनाम पंथ के प्रवर्तक  गुरु घासीदास को समर्पित है। उनके संदेशों के ध्वज वाहक जैतखाम के रुप में इसका निर्माण किया गया है, अब यह सबसे बड़ा जैतखाम हो

उछरत बोकरत ले भकोसना और सतौरी धराना

इन दो मुहावरों में पहले मुहावरे का भावार्थ अत्यिधक खाना है. मुफ्त में मिले माल को उड़ाने का भाव या किसी को नुकसान पहुचाने के उद्देश्य से माल उड़ाने का भाव इस मुहावरे से प्रतिध्वनित होता है.  आईये इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों का आशय समझने का प्रयास करते हैं. 'उछरत' बना है 'उछरना' से जो क्रिया है, इसका आशय खाई हुई चीज बाहर निकालना, वमन, उल्टी करना है.  'बोकरत' को समझने के लिए इसके करीब के शब्दों का आशय भी देखते चलें. छत्तीसगढ़ी शब्द 'बोकबकई' हक्का बक्का होने की क्रिया के लिए प्रयोग में आता है. इसी से बने शब्द 'बोकबोकहा - हक्का बक्का होने वाला', 'बोकबोकासी - हक्का बक्का होने की क्रिया या भाव', 'बोकबोकाना - वही' आदि है. कुछ और शब्दों में 'बोकरईन - बकरे की दुर्गंध', 'बोकरइया - वमन करने वाला', 'बोकरना - बो बो शब्द के साथ खाए हुए अनाज को मुह के रास्ते पेट बाहर से निकालना' आदि है. इस प्रकार से उपरोक्त मुहावरे में प्रयुक्त 'उछरत' और 'बोकरत' दोनो समानार्थी शब्द हैं.  छत्तीसगढ़ी शब्द

जॉंगर पेरना, जॉंगर खिराना व जँउहर होना

इन तीनों छत्तीसगढ़ी मुहावरों का भावार्थ इस प्रकार है, जॉंगर पेरना : मेहनत करना, जॉंगर खिराना : शक्तिहीन होना, सामर्थहीनता व जँउहर होना : विपत्ति आना। आईये इन मुहावरों में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों को समझने का प्रयास करते हैं। पहले मुहावरे में प्रयुक्त ‘जॉंगर’ मूलत: जॉंघ या जंघा की शक्ति के भाव से बना है। शारिरिक बल, ताकत, सामर्थ के लिए छत्तीसगढ़ी में ‘जॉंगर’ शब्द का प्रयोग होता है। इससे संबंधित अन्य मुहावरों में ‘जॉंगर के टूटत ले कमाना : खूब परिश्रम करना’, ‘जॉंगर चलना : शरीर में शक्ति रहना’, ‘जॉंगर टूटना : निकम्मा होना’, ‘जॉंगर चोट्टा : कामचोर, निकम्मा’ आदि है। ‘खिराना’ ‘खिरना’ से बना है जो संस्कृत शब्द ‘श्रय:’ या ‘कृश’ से बना है। इसी से बने सकर्मक क्रिया शब्द ‘खिराना’ का आशय समाप्त कर देना, घिस डालना, गुमा देना है। इससे मिलते जुलते शब्दों में ‘खियाना : क्षीण होना’, ‘खिरकी : झरोखा, खिड़की’, ‘खीरा : ककड़ी’ आदि हैं। चमक का समानार्थी अरबी शब्द ‘जौ’ एवं संस्कृत शब्द 'हरणम्'  से मिलकर छत्तीसगढ़ी ‘जँउहर’ बना है। वह कार्य या घटना जिससे यश, कीर्ति या मान सम्मान को क्षति

झकझक ले दिखना और झख मारना

छत्तीसगढ़ी मुहावरा ‘झकझक ले दिखना’ का भावार्थ एकदम साफ दिखना है एवं ‘झख मारना’ का भावार्थ बेकार समय गंवाना है। इन दोनों मुहावरों में प्रयुक्‍त छत्तीसगढ़ी शब्‍द ‘झक’ व ‘झख’ को समझने से दोनों मुहावरे का भावार्थ हमें स्पष्ट हो जायेगा। पहले मुहावरे में प्रयुक्त ‘झक’ का दुहराव शब्‍द युग्म बनते हुए ‘झकझक’ बना है। छत्तीसगढ़ी शब्द ‘झक’ संस्कृत के ‘झषा’ से बना है जिसका आशय ताप, चमक, स्वच्छ है। ‘झक’ और ‘झक्क’ का प्रयोग हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी दोनों में समान रूप से साफ दिखने या चमकने के लिए होता है। क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त शब्द ‘झकझक’ का आशय चमकता हुआ, बहुत साफ या स्पष्ट है, पर्दारहित या खुले रूप में प्रस्तुति के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है। संभवत: शब्‍द विकास की प्रकृया में चमक को अप्रत्याशित रूप में स्वीकारते हुए ‘झकझक’ को चमकने या चमकाने की क्रिया या भाव, हड़बड़ी करने की क्रिया या भाव भी मान लिया गया। इस प्रकार से ‘झकझक’ करने वाले को ‘झकझकहा’, ‘झकझकइया’ या ‘झकझकहिन’ कहा गया। इसी भावार्थो में ‘झकझकाना व झकनई : चमकने या चमकाने की क्रिया या भाव, हड़बड़ी करने की क्रिया या भाव’

तरूआ ठनकना

इस मुहावरे का भावार्थ है शंका होना, किसी बुरे लक्षण को देखकर चित्त में घोर आशंका उत्पन्न होना, कुछ स्थितियों पर आश्‍चर्य होने पर भी इसका प्रयोग होता है. 'तरूआ' 'तेरवा' से बना है जो हिन्दी शब्द 'तेवान' अर्थात सोंच विचार का अपभ्रंश है. छत्तीसगढ़ी शब्द 'तरूआ' का आशय शरीर का वह अंग जो सोंचने विचारने का केन्द्र होता है यानी मस्तक या भाल है. छत्तीसगढ़ में तले हुए सब्जियों के लिए भी 'तरूआ' शब्द का प्रयोग होता है. हिन्‍दी में 'तरू' वृक्ष व रक्षक का समानार्थी है जबकि 'तरूआ' पैर के नीचे भाग तलवा को बोला जाता है. अकर्मक क्रिया शब्द 'ठनकना' ठन शब्द से बना है जिसका आशय ठन ठन शब्द करना, सनक जाना, रह रह कर दर्द करना या कसक होना है. 'ठनकई' इसी आशय के क्रिया या भाव को कहा जाता है. हिन्‍दी में ठन से आशय धातुखंड पर आघात पड़ने का शब्द या किसी धातु के बजने का शब्द से है इसका यौगिक शब्‍द ठन ठन है. 'ठनकना' का आशय रह रहकर आघात पड़ने की सी पीड़ा, टीस या चसक है. अन्‍य समीप के शब्‍दों में 'ठनका' रह रहकर आघात पड़ने की सी

मही मांगें जाना अउ ठेकवा लुकाना

छत्तीसगढ़ी के इस मुहावरे का भावार्थ है मांगना भी और शरमाना भी या कहें लजाते हुए उपकृत होने की इच्छा रखना. दो व्यक्तियों के सिर टकराने की क्रिया के लिए हिन्दी में 'ठेसना' शब्द का प्रयोग होता है. इसी से छत्तीसगढ़ी 'ठेकवा' व 'ठेकी' बना है. ठेकवा से संबंधित छत्तीसगढ़ी का एक और मुहावरा 'ठेकवा फोरना' है जिसका भावार्थ दो व्यक्तियों का सिर आपस में टकराना है. इसके नजदीक के शब्दों में पैसे संचित करने वाले मिट्टी के पात्र गुल्लक को 'ठेकवा', सर मुडाए हुए पुरूष को 'ठेकला' व स्त्री को 'ठेकली' कहा जाता है. कार्य की पद्धति ठेका से बने छत्तीसगढ़ी 'ठेकहा' का आशय ठेके से दिया हुआ से है. संस्कृत शब्द 'लुक्' व 'लोक' जिसका अर्थ चमकना, आग का छोटा टुकड़ा, चिनगारी, सिगरेट बीड़ी आदि से गिरने वाली जलती हुई राख है. इसके समानार्थी छत्तीसगढ़ी शब्द 'लूक' का भी इन्हीं अर्थों में प्रयोग होता है. इस 'लूक' या 'लुक' के अपभ्रंश से छत्तीसगढ़ी में कोई शब्द निर्माण का पता नहीं चलता. इसमें प्रयुक्त लुक के नजदीक के अन्य शब

थोथना ओरमाना

इस छत्तीसगढ़ी मुहावरे का भावार्थ है दुख्री होना, नाराज होना. मुहावरे की प्रयोग की दृष्टि से इस पर मेरा अनुमान है कि इसका आशय स्वयं की गलती पर दुखी होना या नाराज होन है. आईये अब इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द 'थोथना' को समझने का प्रयास करें. 'थोथना' हिन्दी के 'थूथन' से बना है जिसका आशय लम्बा निकला हुआ मुह है. इसी मुहावरे के समानार्थी मुहावरा 'थोथना उतारना' भी छत्तीसगढ़ में प्रचलित है, जिसका भावार्थ उदास होना है. 'थोथना' के समीप के छत्तीसगढ़ी शब्दों में 'थोथनहा : गुस्से में मुह उतार कर बैठने वाला', 'थोथनहिन : गुस्से में मुह उतार कर बैठने वाली' आदि हैं. इस भाव से परे इसके नजदीक के शब्दों को भी देखें, चिचोड़-चिचोड़ कर खाने की क्रिया या भाव को छत्तीसगढ़ी में 'थोथलई' कहा जाता है. शेर या हिंसक पशु के द्वारा मृत पशु के मांस खाने को 'थोथलई' कहा जाता हैं. चिचोड़-चिचोड़ कर खाने वाले को 'थोथलईया' कहा जाता है. बोलते हुए या कोई कार्य करते हुए अटक जाने के भाव को 'थोथकना' कहा जाता है. जो कुछ काम कर

टोंटा मसकना

इस मुहावरे का भावार्थ है शोषण करना या धन हड़पना, शब्‍दार्थ रूप में भी इस मुहावरे का प्रयोग होता है जिसका अर्थ मार डालने से है (गले को दबाना). 'टोंटा' संस्‍कृत शब्‍द 'तुण्‍ड' से बना है जिसका आशय ग्रसिका, गला या गर्दन है. इसके करीब का एक शब्‍द है 'टोण्‍डा' जिसका आशय है बड़ा सा छेद. शायद गले की नली के कारण यह शब्‍द प्रचलन में आया होगा. हिन्‍दी में प्रचलित टोंटी से भी 'टोंटा' का बनना माना जा सकता है. अब देखें 'मसकना' को जो 'मस' और 'कना' से मिलकर बना है. 'मस' से बने अन्‍य शब्‍दों में 'मसक' का प्रयोग होता है यह अरबी 'मश्‍क' (चमड़े का पानी रखने वाला थैला) से बना है. छत्‍तीसगढ़ी 'मसक' शब्‍द दबाने की क्रिया या भाव के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इस अनुसार से शब्‍दशात्रियों का मानना है कि, परिश्रम के लिए अरबी का एक शब्‍द है 'मशक्‍कत' हो सकता है कि इसके अपभ्रंश के रूप में छत्‍तीसगढ़ी में 'मसकना' प्रयुक्‍त होने लगा हो. इस मसकने का दो अर्थों में प्रयोग होता है एक दबाना दूसरा किसी कार्य के

टोनही चुहकना

इस छत्‍तीसगढ़ी मुहावरे का भावार्थ 'बेहद कमजोर होना या दुर्बल होना' है. आईये इस मुहावरे में प्रयुक्‍त छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'टोनही' और 'चुहकना' को स्‍पष्‍ट करते हैं. छत्‍तीसगढ़ी स्‍त्रीवाचक विशेषण/संज्ञा शब्‍द 'टोनही' 'टोना' से बना है. 'टोना' संस्‍कृत शब्‍द 'तंत्र : जादू' का अपभ्रंश है, जिसका आशय मारन या अनिष्‍ट के लिए किसी व्‍यक्ति पर तंत्र का प्रयोग करने की क्रिया या भाव है. 'टोना' एवं 'टोटका' का प्रयोग लगभग एक साथ किया जाता है जिसमें 'टोटके' का आशय अनिष्‍ट निवारण के लिए किया जाने वाला तात्रिक कार्य से है. इस प्रकार से 'टोनही' का आशय जादू टोना करने वाली स्‍त्री, डायन है. इससे मिलते जुलते शब्‍दों में 'टोनहईया : जो जादू टोना करता हो', 'टोनहई : जादू टोना करने की क्रिया', 'टोनहावल : जादू टोने से प्रभावित व्‍यक्ति' आदि. 'चुहकना' चूने या टपकने की क्रिया 'चुह' से बना है. चुह से बने अन्‍य शब्‍दों में 'चुहउ' का आशय टपकने योग्‍य, 'चुहका : पानी का श्रोत

दहरा के भरोसा बाढ़ी खाना

इस छत्तीसगढ़ी मुहावरे का भावार्थ है संभावनाओं पर कार्य करना. आईये अब इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्द 'दहरा' एवं 'बाढ़ी' का विश्लेषण करें. पानी भरे हुए खाई को हिन्दी में 'दहर' कहा जाता है. यही दहर अपभ्रंश में 'दहरा' में बदल गया होगा. छत्तीसगढ़ी में गहरा जलकुण्ड या नदी के गहरे हिस्से को 'दहरा' कहा जाता है. दहरा से संबंधित एक और मुहावरा है 'दहरा के दहलना : डर या भय से कॉंपना'. इस मुहावरे में प्रयुक्त शब्दों का आशय बताते हुए शब्दशास्त्रियों का अभिमत है कि संस्कृत के अकर्मक क्रिया 'दर' जिसका आशय 'डर' है से 'दहरा' बना है. 'दहरा के दहलना' में प्रयुक्त भावार्थ के अनुसार 'दहरा' का आशय डर का प्रयोग छत्तीसगढ़ी में बहुत कम होता है. सामान्य सोंच के अनुसार देखें तो गहरा से दहरा बना होगा यह प्रतीत होता है. 'बाढी' शब्द हिन्दी के बढ़ से बना है. इसके नजदीकी शब्दों में 'बाढ़' का आशय बढ़ने की क्रिया या भाव, वृद्धि है. अधिक वर्षा आदि के कारण नदी का बढ़ा हुआ जल स्तर को भी हिन्दी एवं छत्तीस

हुदरे कोंचके कस गोठियाना

छत्तीसगढ़ी के इस मुहावरे का भावार्थ है बेरूखी से बोलना या अप्रिय ढंग से बोलना. इससे संबंधित अन्य प्रचलित मुहावरे हैं 'हुदरे कस गोठियाना : डाटते या दबाते हुए बोलना', 'हुरिया देना : ललकारना', 'हूंत कराना : आवाज लगाना', 'हूदेन के : जबरन', 'हुद्दा मार के : जबरन', 'गोठ उसरना : अधिक बातें करना' आदि हैं. अब आईये इस मुहावरे में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ी शब्दों का विश्लेषण करते हैं. शब्द 'हुदरे' को समझने के लिए इसके क्रिया रूप को समझते हैं. इसका सकर्मक क्रिया रूप है 'हुदरना' जो फारसी के शब्द 'हुद' से बना है जिसका अर्थ है ठीक. प्रचलन एवं अपभ्रंश रूप में छत्तीसगढ़ी के 'हुदरना' का आशय किसी दोष या गलती को ठीक करने या उस ओर ध्यान बटाने के लिए दूसरे को किसी चीज से कोंचना या धक्का देने से है. इसका प्रयोग धक्के से अवरोध तोड़कर अपना मार्ग प्रशस्त करने के लिए भी होता है. इस कार्य को करने वाले को 'हुदरईया' कहा जाता है. किसी कार्य के लिए बार बार बोलने वाले को भी 'हुदरईया' कहा जाता है. इसी क्रिया या भाव को 'हुदरई&

जउन तपही तउन खपही

संस्कृत शब्द तपस् से हिन्दी शब्द तपस्या या साधना बना. इसके समानअर्थी शब्‍द 'तपसी' (Ascetic) का छत्तीसगढ़ी में भी प्रयोग होता है. प्रस्तुत मुहावरे के भावार्थ से यह अर्थ सीधे तौर पर प्रतिध्वनित होता नहीं जान पड़ता. इसी शब्द से मिलते जुलते अन्य शब्दों पर ध्यान केन्द्रित करने पर संस्कृत शब्द तप्त से बने छत्तीसगढ़ी शब्द 'तिपोना' को देखें. 'तिपोना' गर्म होने या करने की क्रिया या भाव को कहा जाता है, इसी भाव से एक और मुहावरा प्रचलन में है 'तिपे लोहा ला पानी पिलाना' चंद्रकुमार चंद्राकर जी इसका भावार्थ गुस्साये व्यक्ति को और गुस्सा दिलाना बताते हैं जबकि मुझे लगता है कि पानी डालने का भाव गुस्से को शांत करने के लिए है. छत्तीसगढ़ी में 'तपई' का अर्थ है तंग करने, जुल्म करने, उपद्रव करने, दुख देने, संकट में डालने, धूप या आग में किसी वस्तु को गरम करने, का क्रिया या भाव. अकर्मक क्रिया 'तपना' का अर्थ है गरम होना, दुख या विपत्ति सहना एवं यही सकर्मक क्रिया में खूब तंग करना, कष्ट देना, जुल्म करना, उपद्रव करना, संकट में डालना के लिए प्रयुक्त होता है. इससे

'खटिया लहुटय', 'खटिया उसलय' : खाट से संबंधित छत्तीसगढ़ी मुहावरे

चित्र दैनिक पत्रिका से साभार आज के दैनिक समाचार पत्र 'पत्रिका' के पन्ने पलटते हुए जशपुर क्षेत्र के एक समाचार पर नजर गई. समाचार में लगे चित्र को देखते ही छत्तीसगढ़ी में प्रचलित खाट से संबंधित कुछ मुहावरे याद आ गए. समाचार एक हत्या से संबंधित था, चित्र में जिसकी हत्या हुई थी उसका शव उल्टे खाट में कपड़े से ढका दिख रहा था. छत्तीसगढ़ के गांवों में परम्परा के अनुसार किसी व्यक्ति के अत्यधिक बीमार होने एवं उसके बचने की उम्मीद कम होने पर खाट से उसे जमीन में उतार दिया जाता है. इसे 'भुंइया उतारना' कहा जाता है. गांवों में संसाधनों की कमी रही है एवं वहॉं स्वास्थ्य सेवा तो दूर सड़क परिवहन जैसी सुविधा भी नहीं के बराबर रहे हैं. इसके कारण छत्तीसगढ़ के गांवों में बीमार व्यक्ति के इलाज के लिए उसे बैद्य, गुनिया, बैगा या शहर में डॉक्टर के पास ले जाने के लिए, बीमार को खाट में लिटाकर उसे चार आदमी उठाकर ले जाते है. परिस्थितियों के अनुसार यदि ऐसी स्थिति निर्मित हो कि बीमार व्यक्ति की मृत्यु रास्ते में या इलाज के दौरान हो जाए तो लाश वापस घर लाने के लिए खाट को पलट दिया जाता है और उसमें लाश

तइहा के बात बइहा लेगे

इस छत्‍तीसगढ़ी मुहावरे का भावार्थ 'प्रचलन समाप्त होना' है. इस मुहावरे में 'तइहा' एवं 'बइहा' दो शब्‍द प्रयुक्‍त हुए हैं जिसे जानने का प्रयास करते हैं. छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'तइहा' क्रिया विशेषण है इसका अर्थ बहुत पहले का, पुरानी बातें है. 'तइहा' का प्रयोग लिखने में 'तैहा' के रूप में भी होता है, 'तैहा' के संबंध में कहा जाता है कि यह अरबी शब्द 'तै : बीता हुआ' एवं 'हा' जोड़कर तैहा बना है जो बीत चुका के लिए छत्‍तीसगढ़ी में प्रयुक्‍त होता है. वाक्‍य प्रयोगों में 'तैहा के गोठ : पुरानी बातें' जैसे शब्‍दों का प्रयोग होता है. छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'बइहा' हिन्दी शब्द बावला से बना है जिसका अर्थ है पागल, मूर्ख. छत्‍तीसगढ़ी में 'बइहा' का प्रयोग क्रोधित होने के भाव के लिए भी किया जाता है, 'बइहा गे रे : पागल हो गया क्‍या रे / गुस्‍सा गया क्‍या रे. इसी तरह अन्‍य प्रयोगों में 'बइहा दुकाल : पागल कर देने वाला अकाल', 'बइहा पूरा : अचानक आने वाली बाढ़' आदि. इसी के करीब का छत्‍तीसगढ़ी शब्‍

कोया (बस्तर के अनावृत सौंदर्य के कामपिपासु ख्यातिलब्धों की कहानी)

'विधुर हूँ, उम्रदराज भी हूँ किन्तु इंद्रियों में प्यास अब तक बाकी है, देख लेना.' चित्रकोट जल प्रपात की प्रकृतिक छटाओं का आनंद लेकर जगदलपुर के विलासितापूर्ण होटल के कमरे में उसने अपनी धोती की सिलवटें ठीक करते हुए कहा. देश विदेश के यायावरों और रसिक कलमकारों की किताबों में जीवंत बस्तर बालाओं के चित्र उसकी स्मृतियों से गुजरते हुए उसके इंद्रियों को झंकृत करने लगी.  छत्तीसगढ़ प्रवास पर आये हिन्दी साहित्य के उस दैदीप्यमान नक्षत्र की सेवा में लगे एक वरिष्ठ रचनाकार नें बिना कुछ बोले, स्वीकृति में सिर हिलाया. रचनाकार की उंगलियाँ मोबाईल के कीपैड में किसी नम्बर की तलाश में जुट गई. रात भर कमरा बस्तर बाला की देह की महक और प्यासे इंद्रियों वाले मेहमान की पसीने की दुर्गंध से भभकती रही, एयरकंडीशनर की सांसे फूलती रही. दूसरे कमरे में सेवा के लगे रचनाकार लार टपकाते हुए, अपनी नई कविता संग्रह के लिए कविताओं को क्रम देता रहा और इस संग्रह में मिलने वाले संभावित सम्मान व पुरस्कारों की सूची बनाता रहा.  दूर जंगल में एक वरिष्ठ दादा की सांसे भी धौकनी की तरह चतली रही क्योंकि उसकी सेवा में तैनात बस्त

बूड़ मरे नहकउनी दै

इस छत्‍तीसगढ़ी लोकोकित का भावार्थ है दुहरी नुकसानी. इस लोकोक्ति में प्रयुक्‍त छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'बूड़' और 'नहकउनी' का अर्थ जानने का प्रयास करते हैं. छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'बूड़' से 'बुड़ना' बना है जिसका अर्थ है डूबना, अस्‍त होना. चांद, तारे, सूर्य आदि के अस्‍त होने को भी 'बुड़ना' कहा जाता है. सूर्य के अस्‍त होने संबंधी एक और शब्‍द छत्‍तीसगढ़ में प्रचलित है 'बुड़ती'. सूर्य के उदय की दिशा (पूर्व) को 'उत्‍ती' एवं सूर्य के अस्‍त होने की दिशा (पश्चिम) को 'बुड़ती' कहा जाता है. पानी या किसी दव्‍य में पदार्थ का अंदर चले जाने के भाव को भी 'बूड़ना' कहा जाता है. निर्धारित तिथि के उपरांत गिरवी रखी गई सम्‍पत्ति का स्‍वामित्‍व खो जाने को भी 'बुड़ना' कहते है. किसी को दिए हुये या किसी कार्य में लगाए गए धन के नष्‍ट होने या बर्बाद होने पर भी उस सम्‍पत्ति को 'बुड़ना' या 'बुड़ गे' कहा जाता है. इस प्रकार उपरोक्‍त लोकोक्ति में प्रयुक्‍त 'बूड़' का अर्थ डूबने से ही है. 'नहकउनी' छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द '

अइसन बहुरिया चटपट, खटिया ले उठे लटपट

इस छत्‍तीसगढ़ी लोकोक्ति का भावार्थ है आलसी व्‍यक्ति से तत्‍परता की उम्‍मीद नहीं की जा सकती. इसको राहुल सिंह जी स्‍पष्‍ट करते हैं 'ऐसी फुर्तीली बहू जिसका खाट से उतरना मुश्किल'. आइये अब इस लोकोक्ति में प्रयुक्‍त छत्‍तीसगढ़ी शब्‍दों का विश्‍लेषण करते हैं. 'अइसन' को हमने पूर्व में ही स्‍पष्‍ट किया है. 'बहुरिया' का अर्थ हिन्‍दी में प्रचलित 'बहु या वधु' से है. इसी प्रकार 'खटिया' हिन्‍दी खाट है. अब बचे छत्‍तीसगढ़ी शब्‍दों में 'चटपट' व 'लटपट' को देखें- छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'चटपट' में प्रयुक्‍त शब्‍द 'चट' का अर्थ शव्‍दशास्‍त्री इस तरह बताते हैं : मारने की आवाज, आग या धूप से तपकर किसी वस्‍तु के फूटने का शब्‍द, खट्टे-मीठे-तीखे चीज खाने पर जीभ चटकाने की आवाज, चट से बोलने की क्रिया आदि. इसके अतिरिक्‍त हिन्‍दी शब्‍द चाटना से निर्मित 'चट' का अर्थ चाट पोछकर खाया हुआ, पूरा खाया हुआ है, इससे संबंधित एक मुहावरा 'चट कर जाना' भी प्रचलित है. 'चट' के क्रिया विशेषण के तौर पर उपयोग होने पर इसे संस्‍कृत शब्‍द च