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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

मारकोनी : दमित यौन आंकाक्षाओं का प्रतिष्ठित नाम

'मारकोनी!!!' प्रथम राज्य स्तरीय अधिवक्ता सम्मेलन में एक वरिष्ठ अधिवक्ता नें दूसरे वरिष्ठ अधिवक्ता को आवाज दिया. मैनें विरोध किया कि सर उनका नाम तो ... है. 'नहीं! मारकोनी नाम है उसका! हा हा हा!.. यह उसका निक नेम है!' सीनियर नें कहा. मारकोनी, उम्र है तकरीबन 55 साल, वकील के काले कोट में सामान्य सा इकहरे बदन का लम्बा युवक. कहते हैं उसकी शादी नहीं हुई है. न्यायालय परिसर के वरिष्ठ अधिवक्ताओं और बाबूओं के बीच वह अपने इसी नाम से पहचाना जाता है. पर क्यूं? ज्दाया जिद कर पूछने पर वरिष्ठ बताते हैं कि मारकोनी शहर के एक प्रतिष्ठित वकील परिवार से ताल्लुक रखता है जिसके परिवार में एक से एक नामी वकील हैं. जवानी में उसकी शादी के लिए एक से एक लड़कियों के रिश्ते आए किन्तु कभी उसके मॉं बाप तो कभी स्वयं वह, लड़कियॉं छांटते रहे और धीरे धीरे विवाह की उम्र खिसक गई. पत्नी का स्वप्न संजोये वह उन दिनों यहॉं वहॉं से बड़े बड़े घरों से आए अपने रिश्ते की बातें मित्रों को बताता और मित्र उसका मजाक उड़ाते कि तुम्हारे लायक लड़की अभी बनी नहीं है, तुम लोगों को नये माडल की गाड़ी चाहिए जो पूरे शहर में ना हो

छत्तीसगढ़ी भाषा के शब्दकोश, भाषा और मानकीकरण की चिंता

- संजीव तिवारी शब्द भाषा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण और अपरिहार्य कड़ी है. शब्द के बिना भाषा की कल्पना करना निरर्थक है. वास्तव में शब्द हमारे मन के अमूर्त्त भाव, हमारी इच्छा और हमारी कल्पना का वीचिक व ध्वन्यात्मक प्रतीक है. सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ साथ ही मनुष्य को भान हो गया था कि मनोभाव के संप्रेषण के यथेष्ठ अभिव्यक्ति की आवश्यकता है. इस अभिव्यक्ति के लिए सही शब्द का चयन आवश्यक है. सही शब्द के चयन के लिए तदकालीन विद्वानों नें शब्दों के संकलक की आवश्यकता पर बल दिया और भाषा के विकास क्रम अनवरत बढ़ता गया. एक प्रकार की अभिव्यक्ति वाले किसी बड़े भू भाग के अलग-अलग क्षेत्रों में शब्दों के विविध रूपों में एकरूपता लाने के उद्देश्य से शब्दों और भाषा का मानकीकरण का प्रयास आरम्भ हुआ. यह निर्विवाद सत्य है कि लिपियों के निर्माण से भी पहले मनुष्य ने शब्दों का संग्रहण व लेखाजोखा रखना आरम्भ कर दिया था, इस के लिए उस ने कोश निर्माण शुरू किया गया. यह गर्व करने वाली बात है कि सब से पहले शब्द संकलन भारत