साठवें जन्म दिन पर हार्दिक शुभकामनाऍं : सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

साठवें जन्म दिन पर हार्दिक शुभकामनाऍं :

हमारे पारिवारिक हीरो - बड़े भैया प्रमोद साव

- विनोद साव

बड़े भैया साठ बरस के हो गए, उनकी षष्ठपूर्ति मनायी जा रही है। तब पता चला कि मैं भी संतावन बरस का हो गया हूँ। अपनी उम्र का एहसास तब होता है जब अपने आसपास के लोग साठ बरस के हो जाते हैं। बड़े भैया के बाद मैं था और मैंने ही सबसे पहले उन्हें भैया कहना शुरु किया था, बाद में मुझसे छोटे भाई-बहनों ने मुझे भैया कहना शुरु किया तब भैया बड़े भैया हो गए, तब से यही संबोधन उनके लिए ज्यादा प्रयुक्त होता है। भैया जिनका नाम प्रमोद साव है, वर्तमान में गुरुनानक उच्चतर माध्यमिक शाला, दल्ली-राजहरा के लोकप्रिय प्राचार्य हैं। हमारे पिता अर्जुनसिंह साव भी छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्कूलों के यशस्वी प्राचार्य थे। कोई भैया से पूछता है कि ‘आजकल आप क्या कर रहे हैं?’ तो वे कह उठते हैं कि ‘बस... अपने पिता के नक्शे कदम पर चल रहा हूँ।’

युवावस्था में प्रमोद साव
बाबूजी की तरह श्याम सलोने भैया भी आकर्शक व्यक्तित्व के धनी रहे हैं। उनकी ऑंखों में कुछ ऐसा सम्मोहन रहा है कि इस सम्मोहन का शिकार होने वालों की उन्हें कमी नहीं रही है। हमारे भरे पूरे परिवार में उनके व्यक्तित्व और विनम्र व्यवहार से लोग इतने सम्मोहित रहे हैं कि किसी ने उनसे कोई अपेक्षा भी नहीं की। अम्मॉं-बाबूजी और घर के बड़े बुजुर्गों ने उनसे कभी कोई खरे वचन नहीं कहे। भैया अपने भाई बहनों के बीच हमेशा रमे रहना चाहते हैं, इतने कि उन्हें कभी मित्रों की जरुरत नहीं पड़ी। भाइयों को ही उन्होंने अपना मित्र जाना और उन्हीं के बीच रहकर साठ बरसों का उन्मुक्त जीवन उन्होंने जी लिया। वे हम सात भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं पर अपने तीखे नाक-नक्श और सलोने पन के कारण देखने वालों को वे पॉंचों भाइयों में सबसे छोटे लगते हैं। बच्चे भी उनके साथ अपने को बड़ा सहज अनुभव करते हैं। शैली कहती है ‘बड़े पापा कितने स्वीट लगते हैं। उनका ड्रेस कोड अभी भी यंग एंड यूथ जैसा है।’ तब मिनी कहती है ‘नई तो क्या! बड़े पापा मुंबई में होते तो हीरो होते।’ भैया के बच्चे विनी और डम्पी इतने कायल हैं कि अपने पापा के साठवें जन्म-दिन की पार्टी वे चुपचाप एरेंज कर रहे हैं, अपने पापा को सरप्राइज देते हुए। इस बार उनकी बहू रीतु और पोती मिहिका भी शामिल हैं। भाभी का तो ये हाल है कि घर की देवरानियॉं कह उठती हैं कि ‘ये दीदी ना भैया (जेठजी) को एक सेकण्ड के लिए भी छोड़ती नहीं है। भैया बैठते हैं तो बैठती है, भैया खड़े होते हैं तो खड़ी होती हैं।’

परिवार के साथ आत्मीय क्षण
भाई-बहनों के बीच बैठकर भैया का चेहरा खिल उठता है। उनका सेलीब्रिटी मूड देखते ही बनता है। वे जीवन के सारे निर्णयों को भाई-बहनों के बीच रहकर तय करते हैं। उन्हें सब तीज-त्योहारों को मनाना, शादी ब्याह करना, पिकनिक मनाना या अस्पतालों के चक्कर लगाना सम्बंधी जितने भी कार्य हों वे परिवार में भाई बहनों के बीच रहकर ही करते हैं। उन्हें भोजन में स्वाद तभी आता है जब वे परिजनों से घिरे होते हैं। सहन-शीलता उनमें विकट है और यही उनका एक ऐसा गुण है कि कोई उनके व्यवहार से आहत नहीं होता। दुखों में उन्हें रोते हुए कभी नहीं देखा गया यह एक विलक्षण गुण भी उनके पास है। वे परिवार के हर सुख दुख में दल्ली-राजहरा से ट्रेन में बैठकर इतनी आसानी से दुर्ग आ जाते हैं जैसे वे कहीं दूर नहीं बसते बल्कि दुर्ग में ही रहते हों कहीं हमारे आसपास। यात्रा या कार्यक्रमों की कोई थकान या शिकन उनके चेहरे पर दिखलाई नहीं देती। हमेशा वैसे ही सम्मोहक नजर आते हैं जैसा उनकी ऑंखें कहती हैं।


22 जुलाई 2012 को साठ बरस पूरे कर लेने वाले इस युवा अग्रज को पूरे परिजनों की ओर से ढेरों बधाइयॉं।
विनोद साव, मुक्तनगर, दुर्ग, छत्तीसगढ
मो. 9407984014


20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्‍छी जानकारी दी है ..

    भैया को जन्‍म दिन की शुभकामनाएं ..
    आज के युग में ऐसा विरले ही देखने को मिलता है ..
    आपके संपूर्ण परिवार का आपस का प्रेम इसी तरह बना रहे ..
    समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

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  2. बहुत बहुत शुभकामनायें बड़े भैया को |
    स्वस्थ और सानंद रहें भरे -पूरे परिवार के साथ |
    सादर ||

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  3. प्रमोद भैया को उनके साठवें जन्मदिन पर बहुत बहुत बधाई । यह प्रेम ऐसा ही सदा रहे यह शुभकामना ।

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  4. Pramod Bhaiya is very inspiring person. May long live Bhaiya.

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  5. Happy birthday to the best dad I know,
    A father, A friend, I love and respect
    To teach, to guide, to protect.
    If everyone had such a father,
    A really good dad like you,
    The world would be so much better,
    It would look like God’s own design.

    Many Many Happy returns of the day Uncle ..Love you so much !!!! I am really glad and lucky to be a part of this family !!! Thanks a lot to Dumpy and my sweetest sis in the world Chutki !!!

    जवाब देंहटाएं
  6. Bahut hi achchha lekh hai. Aise chhote bhai sabko milen jo itana achchha bhavon ko abhivyakta ker sakte hon. Pramod Bhaiyya ko Janam din ki dher saari shubhkamnayen.

    जवाब देंहटाएं
  7. It is a precious gift by vinod chchaji forever for his 'BADE BHAIYA, and my great father.Every line is pin point perfect,as chachaji written.

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  8. Realy it is very precious gift by Vinod Chachaji to his 'BADE BHAIYA' ang my great father.Article is highely heart touching and every line is pin point perfect.

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  9. This is very precious gift by Vinod Chachaji to his 'BADE BHAIYA, and my great father,Article is very heart toching and every line is pin point perfect.

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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