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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

जतिन दास की मांग जायज है

लगभग 17 वर्ष पूर्व भिलाई स्पात संयंत्र द्वारा अपने चौकों के सौदर्यीकरण के तहत प्रसिद्व कलाकार जतिन दास के द्वारा निर्मित कलाकृतियॉं भिलाई के सेक्टर 1 स्थित संयंत्र प्रवेश द्वार के पूर्व चौंक पर लगाई गई थी. कहते हैं कि इस कलाकृति को लगाने में संयत्र का लगभग 40 लाख रूपया खर्च हुआ था जिसमें लगभग 10 लाख रूपया जतिन दास को भुगतान किया गया था. हालांकि उस समय स्थानीय स्तर पर इसका जमकर विरोध भी हुआ था कि स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा कर बडी राशि खर्च करने का कोई औचित्य नहीं है किन्तु तत्कालीन प्रबंध निदेशक नें विरोध के बावजूद जतिन दास की कृतियों को यहॉं ससम्मान स्थापित किया.

आडे—तिरछे व उडते पक्षियों की लौह आकृतियॉं गोलाई में आकार लेकर संयत्र आने वालों का स्वागत करने लगी. वहां स्थापित कला को भिलाई के या छत्तीसगढ के कितने लोगों नें समझा यह कहा नहीं जा सकता किन्तु प्रसिद्व कलाकर की इस कृति के प्रति स्थानीय जनता की आस्था आरंभ से ही नहीं जाग पाई. जनता इस चौक को चिडियों की आकृतियों के कारण 'मुर्गा चौक' का नाम दे दिया. जतिन दास स्थापना के समय के विवाद और स्थापना के दिनों के बाद सभी के स्मृति से ओझल हो गए.


आज फिर जतिन दास जी इस लिये याद आये कि उनके द्वारा छत्तीसगढ में अपने संपर्कों से संपर्क कर यह बतलाया गया कि भिलाई स्पात संयत्र के द्वारा उनकी कलाकृतियों को उखाड दिया गया है और कबाड की तरह फेंक दिया गया है. यह बात हम स्थानीय निवासियों को भी ज्ञात नहीं थी. संयत्र के द्वारा जेपी सीमेंट को एकतरफा फायदा पहुचाने के उद्देश्य से फ्लाई ओवर का निर्माण कार्य का प्रारम्भ किया गया था और संयत्र के द्वारा बहुत साफगोई से यह प्रचारित किया जा रहा था कि संयत्र के मालवाहक ट्रकों को सुगमतापूर्वक पहुचाने के उद्देश्य से यह फ्लाई ओवर बनाया जा रहा है. इस फ्लाई ओवर के रास्ते में सेक्टर 1 का मुर्गा चौंक भी आ रहा था किन्तु हम यह सोंचते रहे कि इस चौंक पर स्थापित जतिन दास की कलाकृति फ्लाई ओवर की नीचे अपने मूल स्थान में सुरक्षित रहेगी. ज्यादा से ज्यादा कुछ मीटर आगे पीछे करके इसे बचाया जा सकेगा.


भिलाई स्पात संयंत्र ने ऐसा कुछ भी प्रयास नहीं किया बल्कि जतिन दास की कलाकृतियों को बेरहमी से उखाड कर मैत्रीबाग भेज दिया गया जहां परिवहन में कुछ कलाकृतियां टूट भी गई. मैत्री बाग में उन्हें कबाड की तरह डम्प कर दिया गया. विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि संयंत्र अब इन कलाकृतियों को मैत्री बाग में स्थापित करेगी. क्या जतिन दास को इसकी सूचना दी गई है के जवाब में संयंत्र के अधिकारी यह स्वीकारते हैं कि उन्हें सूचना दी गई है. किन्तु जतिन दास जी छत्तीसगढ में प्रकाशित खबर के माध्यम से कहते हैं कि उन्हें यह तब पता चला जब वे भिलाई मुर्गा चौंक आये और वहां से अपनी कलाकृतियों को गायब पाये. दूसरी तरफ सूत्र यह भी बतलाते हैं कि इसे मुर्गा चौक से मैत्री बाग में स्थापित करने के एवज में जतिन दास संयंत्र से मोटी रकम की मांग कर रहे हैं एवं संयंत्र द्वारा हील हवाला करने पर मीडिया संपर्कों का उपयोग संयंत्र पर दबाव बनाने के लिए कर रहे है.

अब जो भी हो इसमें जनता की रूचि ज्यादा नहीं है किन्तु आश्चर्य होता है कि संयंत्र के वास्तुविद व योजनाकार आगामी सत्रह साल के नगर परिवहन योजना का भी आंकलन नहीं कर पाये. संयंत्र के उत्पादन व कच्चे माल के परिवहन की भविष्य की आवश्यकताओं पर संयंत्र के अभियंताओं नें कैसे नहीं सोंचा यह समझ से परे है. सत्रह साल पहले 40 लाख रूपये खर्च करके मुर्गा चौंक स्थापित करने की योजना बनाते समय क्यों नहीं सोंचा गया कि अगले 17 सालों में आवश्यकतानुसार इसके उपर फ्लाई ओवर बनाया जायेगा इसलिये इसे यहां स्थापित ना किया जाय.

जिस मैत्री बाग में इसे स्थापित करने की दलील यह कह कर दी जा रही है कि यहां जनता की ज्यादा आवाजाही है, तो क्या यही बात पंद्रह साल पहले नहीं थी. तब भी मैत्री बाग उपयुक्त स्थान था किन्तु संयंत्र के दूरदर्शी अभियंताओं, अधिकारियों नें इसे सेक्टर 1 में स्थापित किया. लगाने में 40 लाख और उखाडने भी लाखों खर्च किये गए होगें अब इसे पुन: लगाने में करोडो खर्च किये जायेगें. इस करोड में बंदर बाट नहीं होगी यह भी स्वीकार करने योग्य बात नहीं है क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही इसी मुर्गा चौंक के पास का फ्लाई ओवर स्लेब भरभराकर गिर गया था और घटना व परिस्थितियां स्वमेव सिद्व कर गई.

ऐसे में जतिन दास जो उन कलाकृतियों के जनक है कुछ पैसे मांग भी रहे है तो संयंत्र के अधिकारियों की सांसें क्यूं फूल रही है. संयंत्र नें स्वयं फैसले करके अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जतिन दास की कलाकृतियां लगाई है तो उसे उनके सम्मान की रक्षा भी करनी चाहिए.

आज राहुल सिंह जी के फोन नें चौकाया, भिलाई स्पात संयंत्र से कोई काम नहीं पडने के कारण उधर आना जाना नहीं होता पर आज दोपहर को ही निकल पडा यह देखने कि मुर्गा चौक का क्या हाल है. चौक तो बरकरार है पर जतिन दास की कलाकृतियों का कोई अता पता नहीं है. वापस घर आते तक मित्रों के दो और मेल प्राप्त हो चुके थे जिसमें जतिन दास का विरोध भी दर्ज था. ई टीवी के दुर्ग—भिलाई प्रभारी वैभव पाण्डेय एवं अन्य पत्रकारों से वस्तुस्थिति की जानकारी लिया. शाम तक छत्तीसगढ नें प्रमुखता से इस खबर को अपने मुख्य पृष्ट पर लगा दिया था धन्यवाद छत्तीसगढ.

संजीव तिवारी 

टिप्पणियाँ

  1. मेरे लिए यह चौंकाने वाली बात इसलिए हुई कि दिल्‍ली के एक परिचित ने फोन कर इस बारे में जानना चाहा.

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  2. आपका लेख वास्तव में एक छुपे हुए हकीकत को बयां कर रहा हैं...लिहाजा मुझे भी यह कहने में कोई संकोच दिखाई नहीं पड़ता कि जतिन दास जी की मांग जायज हैं...आप अगर मेरा जिक्र नहीं भी करते तो चलता ...क्योंकि सच तो यह हैं कि मेरे से ज्यादा इस बारे में आपका पता था हां ..थोड़ी सी मदद आपकी जानकारी को पुख्ता बनाने में जरुर की हैं....पर सच में इस लेख में पुरी मेहनत आपकी हैं। आपको इस लेख के लिए बहूत-बहूत बधाई ...प्रणाम.

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  3. kalakaron ki durdasha har yug men hui hai chahe wah katha me jiwit tajmahal bananewala hi kyon na ho .par trasadi kala ko kyon jhelani pade.
    is dharohar ko surakshit rahana chahiye sath hi kalakar ko sasamman usaka haq.
    AAPAKO AABHAR NAHIN PRANAM SWIKAR HO.

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  4. मालिक,
    दास की मांग जायज़ है या नाजायज़ यह तय करना तो आपके ही अख्तियार में है !

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  5. पता नहीं कलाकृतियों की स्थापना और उखाड़ना इतने हल्कें में कैसे कर दिया जाता है।

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  6. जतिन दास जी का कहना जायज है, किसी भी कलाकृति पर कलाकार का कापी राईट होता है।

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  7. nice post !!! thanks for sharing with us

    http://www.bigindianwedding.com/

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  8. आज 15/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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