छत्तीसगढ़ के जन-कवि स्व.कोदूराम "दलित" के 102 वें.जन्म दिन पर विशेष... सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

छत्तीसगढ़ के जन-कवि स्व.कोदूराम "दलित" के 102 वें.जन्म दिन पर विशेष...


-अरुण कुमार निगम 

कवि कोदूराम 'दलित' का जन्म ५ मार्च १९१० को ग्राम टिकरी(अर्जुन्दा),जिला दुर्ग में हुआ . आपके पिता श्री राम भरोसा कृषक थे.आपका बचपन ग्रामीण परिवेश में खेतिहर मजदूरों के बीच बीता. आपने मिडिल स्कूल अर्जुन्दा में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की . तत्पश्चात नार्मल स्कूल रायपुर , नार्मल स्कूल बिलासपुर में शिक्षा ग्रहण की .स्काउटिंग,चित्रकला ,साहित्य विशारद में आपको सदैव उच्च स्थान प्राप्त हुआ .१९३१ से १९६७ तक आर्य कन्या गुरुकुल,नगर पालिका परिषद् तथा शिक्षा विभाग दुर्ग की प्राथमिक शालाओं में आप अध्यापक और प्रधान अध्यापक के रूप में कार्यरत रहे .

अपने १९२६ में कवितायेँ लिखना प्रारंभ की. आपकी रचनाएँ अनेक समाचार पत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं."सियानी गोठ"(१९६७) तथा "बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय"(२०००) आपकी प्रकाशित पुस्तकें हैं.आपकी कविताओं तथा लोक कथाओं का प्रसारण आकाशवाणी भोपाल ,इंदौर, नागपुर, रायपुर से अनेक बार हुआ है.मध्य प्रदेश शासन , सूचना-प्रसारण विभाग , म.प्र.हिंदी साहित्य अधिवेशन ,विभिन्न साहित्यिक सम्मलेन ,स्कूल-कालेज के स्नेह सम्मलेन, किसान मेला, राष्ट्रीय पर्व ,गणेशोत्सव के कई मंचों पर अपने काव्य पाठ किया है. सिंहस्थ मेला (कुम्भ) उज्जैन में भारत शासन द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में महाकौशल क्षेत्र से कवि के रूप में आप आमंत्रित किये गए. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के नगर आगमन पर अपने काव्यपाठ किया है.

आप राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा, इकाई -दुर्ग के सक्रिय सदस्य रहे .दुर्ग जिला साहित्य समिति के उपमंत्री, छत्तीसगढ़ साहित्य के उपमंत्री, दुर्ग जिला हरिजन सेवक संघ के मंत्री, भारत सेवक समाज के सदस्य,सहकारी बैंक दुर्ग के एक डायरेक्टर ,म्यु.कर्मचारी सभा नं.४६७, सहकारी बैंक के सरपंच, दुर्ग नगर प्राथमिक शिक्षक संघ के कार्यकारिणी सदस्य, शिक्षक नगर समिति के सदस्य जैसे विभिन्न पदों पर सक्रिय रहते हुए आपने अपने बहु आयामी व्यक्तित्व से राष्ट्र एवं समाज के उत्थान के लिए सदैव कार्य किया है.

आपका हिंदी और छत्तीसगढ़ी साहित्य में गद्य और पद्य दोनों पर सामान अधिकार रहा है. साहित्य की सभी विधाओं यथा कविता, गीत, कहानी ,निबंध, एकांकी, प्रहसन, बाल-पहेली, बाल-गीत, क्रिया-गीत में आपने रचनाएँ की है. आप क्षेत्र विशेष में बंधे नहीं रहे. सारी सृष्टि ही आपकी विषय-वस्तु रही है. आपकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं. आपके काव्य ने उस युग में जन्म लिया जब देश आजादी के लिए संघर्षरत था .आप समय की सांसों की धड़कन को पहचानते थे . अतः आपकी रचनाओं में देश-प्रेम ,त्याग, जन-जागरण, राष्ट्रीयता की भावनाएं युग अनुरूप हैं.आपके साहित्य में नीतिपरकता,समाज सुधार की भावना ,मानवतावादी, समन्वयवादी तथा प्रगतिवादी दृष्टिकोण सहज ही परिलक्षित होता है.

हास्य-व्यंग्य आपके काव्य का मूल स्वर है जो शिष्ट और प्रभावशाली है. आपने रचनाओं में मानव का शोषण करने वाली परम्पराओं का विरोध कर आधुनिक, वैज्ञानिक, समाजवादी और प्रगतिशील दृष्टिकोण से दलित और शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व किया है. आपका निति-काव्य तथा बाल-साहित्य एक आदर्श ,कर्मठ और सुसंस्कृत पीढ़ी के निर्माण के लिए आज भी प्रासंगिक है.

कवि दलित की दृष्टि में कला का आदर्श 'व्यव्हार विदे' न होकर 'लोक-व्यव्हार उद्दीपनार्थम' था. हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों ही रचनाओं में भाषा परिष्कृत, परिमार्जित, साहित्यिक और व्याकरण सम्मत है. आपका शब्द-चयन असाधारण है. आपके प्रकृति-चित्रण में भाषा में चित्रोपमता,ध्वन्यात्मकता के साथ नाद-सौन्दर्य के दर्शन होते हैं. इनमें शब्दमय चित्रों का विलक्षण प्रयोग हुआ है. आपने नए युग में भी तुकांत और गेय छंदों को अपनाया है. भाषा और उच्चारण पर आपका अद्भुत अधिकार रहा है. आपकी रचनाएँ इन्टरनेट के www.gharhare.blogspot.in पर पढ़ी जा सकती है. पर पढ़ी जा सकती है.

कवि कोदूराम"दलित" का निधन २८ सितम्बर १९६७ को हुआ.

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