रामचन्‍द्र देशमुख ‘बहुमत सम्‍मान’ सुमिन को सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

रामचन्‍द्र देशमुख ‘बहुमत सम्‍मान’ सुमिन को

चित्र सीजी गीत संगी से साभार
कला साहित्‍य एवं संस्‍कृति की पत्रिका बहुमत द्वारा प्रदत्‍त रामचंद्र देशमुख बहुमत सम्‍मान इस वर्ष जनजातीय लोकगीत धनकुल की प्रख्‍याता गायिका श्रीमती सुमिन बाई बिसेन को दिया जायेगा। 12 जनवरी को शाम साढ़े चार बजे भिलाई होटल के बहुद्ददेशीय सभागार में आयोजितत एक गरिमामय समारोह में सम्‍मान निधि, शाल, श्रीफल एवं प्रशसित पत्र से सम्मानित किया जायेगा। सात सदस्‍सीय निर्णायक समिति की अनुशंसा के आधार पर उनका चयन किया गया है।

डीपी देशमुख एवं मुमताज नें बताया कि सुमिन बाई बिसेन लुप्त हो रही जनपदीय लोक परम्परा धनकुल की विलक्षण लोकगायिका हैं। धनकुल की परम्परा का विस्‍तार दंडकारण्‍य के उस मैदानी भूभाग में पाया जाता है जो इंद्रावती नदी के तट पर है। धनकुल वाद्य यंत्र धनुष, हण्‍डी, चावल फटकने का सूपा और बांस की कमची के संयोजन से बनता है। इस वाद्य की संगीत के लिए अलग से किसी भी ताल वाद्य की आवश्‍यकता नहीं होती। सुमिन बाई बिसेन इस वाद्य यंत्र से अत्‍यंत मोहक ध्‍वनि उत्पन्न करती है। साथ ही तीजा जगार, चारखा गीत और शिव पार्वती विवाह प्रसंग का अद्भुत गान करती है।

63 वर्ष की श्रीमती सुमिन बाई बिसेन ने कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की है। वे 40 वर्षों से निरंतर गायन में संलिप्त हैं। संपूर्ण छत्‍तीसगढ़ एवं अविभाजित मध्‍यप्रदेश के अनेक हिस्‍सों में अनेक प्रतिष्ठित मंच पर वे अपनी कला का प्रदशन कर चुकी हैं।


धनकुल वाद्य के साथ बस्तर बैंड के महिला लोककलाकार

धनकुल वाद्य यंत्र के जरिए परम्परागत रूप से इन्हें गाया जाता है। धनकुल गीतों को पूरी आस्था और भक्ति के साथ दो गुरू माताओं द्वारा स्वर दिया जाता है। मिट्टी की हंडी के साथ धनूष और सूप तथा बांस की खपची से धनकुल वाद्य यंत्र का निर्माण किया जाता है। धनकुल वाद्य के साथ पारंपरिक रूप से गाए जाने वाले जगार गीतों का अद्भुत संकलन श्री हरिहर वैष्‍णव जी के द्वारा किया गया है एवं इस संबंध में जनमानस को परिचित कराने का काम भी वे लगातार कर रहे हैं, धनकुल के संबंध में अधिक जानकारी के लिये सीजीगीत संगी में श्री हरिहर वैष्‍णव जी के आलेख यहां देखें। वैष्‍णव जी नें सुमिन बाई बिसेन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी लोक-गाथा धनकुल को लिपिबद्ध कर संपादित किया है जिसका प्रकाशन छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रायपुर नें किया है।

उल्लेखनीय है कि बहुमत सम्‍मान का यह निरंतर 13 वां आयोजन है। यह अब तक हरि ठाकुर, पवन दीवान, नारायण लाल परमार, लक्ष्‍मण मस्‍तुरिया, ममता चंद्राकर, देवी प्रसाद वर्मा, सुमित्रा बाई खांडे, कोदूराम वर्मा, न्‍यायिक दास मानिकपुरी, गोविन्‍दराम निर्मलकर, रामहृदय तिवारी, एवं पंचराम देवदास को प्रदान किया जा चुका है।


आयोजन समिति के विनोद मिश्र एवं बालकृष्‍ण अय्यर जी नें इस अवसर पर इस पोस्‍ट के माध्‍यम से हिन्‍दी ब्‍लॉगरों को भी सादर आमंत्रित किया है, आप सभी से अनुरोध है कि इस कार्यक्रम में आयें एवं लोकसंस्‍कृति को सम्‍मानित करने की इस परंपरा के सहभागी बने।

टिप्पणियाँ

  1. यह एक महत्‍वपूर्ण निर्णय माना जा सकता है इस मायने में कि जिन रामचन्‍द्र देशमुख जी ने छत्‍तीगढ़ की लोककला के संरक्षण के लिए उन्‍हें मंच पर ला कर लोकप्रियता दिलाई, उन्‍हें बचाए रखने की दिशा दिखाई, उनकी याद में एक ऐसी विधा के कलाकार को सम्‍मानित करने का निर्णय लिया गया है जो उन दुर्लभ विधाओं में से है, जो बिना मंच के भी अपना अस्तित्‍व और महत्‍व लगभग बचाए हुए हैं. आयोजकों, निर्णायकों के साथ आपको भी बधाई और धन्‍यवाद.

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  2. सुमिन बाई बिसेन को लेकर बढिया जानकारी।
    बधाई हो उनको।

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  3. लोककला, स्थानीय वाद्ययन्त्र, आलौकिक सुख।
    यह नगीने लहके सम्मुख लाने का अतिशय आभार..

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  4. सुमिन बाई जी को मैं बचपन से रेडियो में सुनते आ रहा हूं.फिर लगभग तीन साल पहले एक कार्यक्रम के दौरान भेंट हुई.कुछ साल पहले अच्‍छे तकनीक के साथ धमकुल की रिकार्डिग भी कराया गया था.लगभग दो घंटें की (शंकर पारबती बिहाव).सम्‍मान मिलने पर बधाई.

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  5. यही कहूंगा कि यदा कदा सम्मान भी सम्मानित होने का अवसर ढूंढ लेते हैं !

    अच्छा निर्णय !

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  6. बढ़िया , कार्यक्रम की रपट पास-पड़ोस पर लगाई है देखना

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