विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
अभी पिछले महीनें मुझे एक पुराने मित्र नें बहुत दिनों बाद फोन किया, मैंने पिछले वर्ष उसका एक हिन्दी ब्लॉग बनाया था। हाल चाल के बाद उसने पूछा कि मेरी ब्लॉगिंग कैसे चल रही है। इधर-उधर की बातों के बाद वो आया कि उसने भी घर में ब्राडबैंड कनेक्शन ले लिया है और वो हिन्दी नेट व हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रति उत्सुक है। मैंनें सहयोग के लिए हामी भरी और बात बंद करनी चाही तो उसने कहा कि पते की बात तो बताना भूल गया। मैंने जब पूछा कि ये पते की बात क्या है तो उसने कुछ 'झाड़-झंखाड़' से कमाई वाली कोई योजना के बारे में विस्तार से बतलाया। चूंकि मुझे चमत्कारिक रूप से प्राप्त धन पर विश्वास और भरोसा नहीं है इसलिए मैंनें अपना काम जारी रखते हुए, उसका मान रखा और उसकी बात सुनी। उसके बातों को मेरे विरोधी मन नें जो कुछ ग्रहण किया उसमें सिर्फ एक वाक्य था 'स्पीक एशिया' 'आनलाईन सर्वे'। मैंनें मित्र को 'देखते हैं', कह कर चलता किया और मोबाईल बंद कर दिया। दूसरे दिन मित्र का पुन: फोन आया कि आपने नेट में 'स्पीक एशिया' 'आनलाईन सर्वे' सर्च किया क्या। मैंरे 'न