आरंभ Aarambha सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

स्‍वप्‍नों का व्‍यवसाय : Speak Asia और उसके चम्‍मच

अभी पिछले महीनें मुझे एक पुराने मित्र नें बहुत दिनों बाद फोन किया, मैंने पिछले वर्ष उसका एक हिन्‍दी ब्‍लॉग बनाया था। हाल चाल के बाद उसने पूछा कि मेरी ब्‍लॉगिंग कैसे चल रही है। इधर-उधर की बातों के बाद वो आया कि उसने भी घर में ब्राडबैंड कनेक्‍शन ले लिया है और वो हिन्‍दी नेट व हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के प्रति उत्‍सुक है। मैंनें सहयोग के लिए हामी भरी और बात बंद करनी चाही तो उसने कहा कि पते की बात तो बताना भूल गया। मैंने जब पूछा कि ये पते की बात क्‍या है तो उसने कुछ 'झाड़-झंखाड़' से कमाई वाली कोई योजना के बारे में विस्‍तार से बतलाया। चूंकि मुझे चमत्‍कारिक रूप से प्राप्‍त धन पर विश्‍वास और भरोसा नहीं है इसलिए मैंनें अपना काम जारी रखते हुए, उसका मान रखा और उसकी बात सुनी। उसके बातों को मेरे विरोधी मन नें जो कुछ ग्रहण किया उसमें सिर्फ एक वाक्‍य था 'स्‍पीक एशिया' 'आनलाईन सर्वे'। मैंनें मित्र को 'देखते हैं', कह कर चलता किया और मोबाईल बंद कर दिया। दूसरे दिन मित्र का पुन: फोन आया कि आपने नेट में 'स्‍पीक एशिया' 'आनलाईन सर्वे' सर्च किया क्‍या। मैंरे 'न

तन संयुक्‍त राष्ट्र संघ में, मन छत्‍तीसगढ़ में

पिछले दिनों राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी का संस्‍मरण हमने अपने पाठकों के लिए छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित किया था. महत्‍वपूर्ण एवं विश्‍व भर में चर्चित कारवां के बाद सुनील कुमार जी, अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में भारतीय मूल के लोगों द्वारा गांधी की 1930 की ऐतिहासिक दांडी-यात्रा की याद में निकाली गई 240 मील की पदयात्रा में भी शामिल हुए। इस पदयात्रा का संस्‍मरणात्‍मक विवरण दैनिक छत्‍तीसगढ़ के अप्रैल अंकों में प्रकाशित हुआ है. टैक्‍स्‍ट आधारित सर्च इंजनों में चाणक्‍य पीडीएफ समाचार पत्रों के आलेखों की अनुपलब्‍धता के कारण हम इस आलेख को ब्‍लॉगर दस्‍तावेजीकरण करते हुए, यहॉं क्रमश: पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्‍तुत है बारहवीं और आखिरी किस्त .... न्‍यूयार्क में संयुक्‍त राष्ट्र के मुख्यालय में जाना दिलचस्प होता है। मेरे वहां के मेजबान आनंद इसी मुख्यालय में काम करते हैं इसलिए उनके साथ वहां पहुंचना भी आसान होता है और भीतर तमाम चीजों को देखना-समझना भी। पिछली बार जब मैं वहां गया तब संयुक्‍त राष्ट्र की इमारत में

गांधीवादी पदयात्रा शुरू होने के पहले एक दिन हॉलीवुड में

पिछले दिनों राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी का संस्‍मरण हमने अपने पाठकों के लिए छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित किया था. महत्‍वपूर्ण एवं विश्‍व भर में चर्चित कारवां के बाद सुनील कुमार जी, अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में भारतीय मूल के लोगों द्वारा गांधी की 1930 की ऐतिहासिक दांडी-यात्रा की याद में निकाली गई 240 मील की पदयात्रा में भी शामिल हुए। इस पदयात्रा का संस्‍मरणात्‍मक विवरण दैनिक छत्‍तीसगढ़ के अप्रैल अंकों में प्रकाशित हुआ है. टैक्‍स्‍ट आधारित सर्च इंजनों में चाणक्‍य पीडीएफ समाचार पत्रों के आलेखों की अनुपलब्‍धता के कारण हम इस आलेख को ब्‍लॉगर दस्‍तावेजीकरण करते हुए, यहॉं क्रमश: पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्‍तुत है ग्‍यारहवीं किस्त .... दांडी मार्च-2 शुरू होने के पहले अमरीका के हॉलीवुड वाले शहर लॉस एंजल्स में मेरे पास एक दिन का वक्त खाली था। वहां के आयोजकों ने मुझे एक दिन पहले आने की सलाह इसलिए दी थी कि दांड़ी में 12 घंटे से अधिक का पडऩे वाला फर्क मैं झेल सकूं। दिन की जगह रात, और रात की जगह दिन कुछ लोगो

बाजार और सरकार की मिली-जुली साजिश वाला अमरीका

पिछले दिनों राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी का संस्‍मरण हमने अपने पाठकों के लिए छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित किया था. महत्‍वपूर्ण एवं विश्‍व भर में चर्चित कारवां के बाद सुनील कुमार जी, अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में भारतीय मूल के लोगों द्वारा गांधी की 1930 की ऐतिहासिक दांडी-यात्रा की याद में निकाली गई 240 मील की पदयात्रा में भी शामिल हुए। इस पदयात्रा का संस्‍मरणात्‍मक विवरण दैनिक छत्‍तीसगढ़ के अप्रैल अंकों में प्रकाशित हुआ है. टैक्‍स्‍ट आधारित सर्च इंजनों में चाणक्‍य पीडीएफ समाचार पत्रों के आलेखों की अनुपलब्‍धता के कारण हम इस आलेख को ब्‍लॉगर दस्‍तावेजीकरण करते हुए, यहॉं क्रमश: पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्‍तुत है दसवीं किस्त ....  दांडी मार्च-2 के दौरान कुल एक बार ऐसा मौका आया जब ट्रेन में बैठना नसीब हुआ। अमरीका में रेलगाडिय़ों का चलन नहीं के बराबर है। हर कोई अपनी बड़ी-बड़ी निजी कारों पर निर्भर रहता है और लंबी दूरी का सफर लोग विमान से तय करते हैं। ऐसे में सान फ्रांसिस्को शहर में गांधी प्रतिमा पर समाप

भारत-पाक विभाजन का इतिहास लेखन और उसी को लेकर विरोध प्रदर्शन

पिछले दिनों राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी का संस्‍मरण हमने अपने पाठकों के लिए छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित किया था. महत्‍वपूर्ण एवं विश्‍व भर में चर्चित कारवां के बाद सुनील कुमार जी, अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में भारतीय मूल के लोगों द्वारा गांधी की 1930 की ऐतिहासिक दांडी-यात्रा की याद में निकाली गई 240 मील की पदयात्रा में भी शामिल हुए। इस पदयात्रा का संस्‍मरणात्‍मक विवरण दैनिक छत्‍तीसगढ़ के अप्रैल अंकों में प्रकाशित हुआ है. टैक्‍स्‍ट आधारित सर्च इंजनों में चाणक्‍य पीडीएफ समाचार पत्रों के आलेखों की अनुपलब्‍धता के कारण हम इस आलेख को ब्‍लॉगर दस्‍तावेजीकरण करते हुए, यहॉं क्रमश: पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्‍तुत है नवीं किस्त .... कैलिफोर्निया में सान फ्रांसिस्को और बर्कले के आसपास का इलाका बे एरिया कहे जाने वाले इलाके में आता है जो कि समंदर से लगा हुआ है। इस समंदर के किनारे तक हम चल रहे थे और समंदर को देखते हुए चलने की जितनी हसरत थी वह पूरी की पूरी सर्द तेज हवाओं की मार से काफी जल्दी हवा हो गई थी। कुछ

आसमान छूती इमारतों वाले देश में आसमान तले जीते लोग भी

पिछले दिनों राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी का संस्‍मरण हमने अपने पाठकों के लिए छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित किया था. महत्‍वपूर्ण एवं विश्‍व भर में चर्चित कारवां के बाद सुनील कुमार जी, अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में भारतीय मूल के लोगों द्वारा गांधी की 1930 की ऐतिहासिक दांडी-यात्रा की याद में निकाली गई 240 मील की पदयात्रा में भी शामिल हुए। इस पदयात्रा का संस्‍मरणात्‍मक विवरण दैनिक छत्‍तीसगढ़ के अप्रैल अंकों में प्रकाशित हुआ है. टैक्‍स्‍ट आधारित सर्च इंजनों में चाणक्‍य पीडीएफ समाचार पत्रों के आलेखों की अनुपलब्‍धता के कारण हम इस आलेख को ब्‍लॉगर दस्‍तावेजीकरण करते हुए, यहॉं क्रमश: पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्‍तुत है   आठवीं किस्त  .... दुनिया के बाकी तमाम विकसित देशों की तरह अमरीका एक बड़ा साफ-सुथरा और खूबसूरत देश है। लोगों की जिंदगी में साफ-सफाई की आदत है और आमतौर पर लोग जरा सा भी कचरा डालने घूरे के डिब्‍बे तक चलकर जाते हैं। लेकिन इसमें एक अलग नौबत तब दिखाई पड़ती है जब बेकार लोग सडक़ किनारे दिखते हैं।

सार्वजनिक जगह पर भी लोगों का निजी दायरे का दावा

पिछले दिनों राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी का संस्‍मरण हमने अपने पाठकों के लिए छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित किया था. महत्‍वपूर्ण एवं विश्‍व भर में चर्चित कारवां के बाद सुनील कुमार जी, अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में भारतीय मूल के लोगों द्वारा गांधी की 1930 की ऐतिहासिक दांडी-यात्रा की याद में निकाली गई 240 मील की पदयात्रा में भी शामिल हुए। इस पदयात्रा का संस्‍मरणात्‍मक विवरण दैनिक छत्‍तीसगढ़ के अप्रैल अंकों में प्रकाशित हुआ है. टैक्‍स्‍ट आधारित सर्च इंजनों में चाणक्‍य पीडीएफ समाचार पत्रों के आलेखों की अनुपलब्‍धता के कारण हम इस आलेख को ब्‍लॉगर दस्‍तावेजीकरण करते हुए, यहॉं क्रमश: पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्‍तुत है सातवीं किस्त .... दांडी मार्च-2 के दौरान अमरीका को कुछ अधिक बारीकी से और कुछ अधिक करीब से देखने का मौका इसलिए भी मिला कि पखवाड़े लंबी यह पदयात्रा शुरू होने के पहले एक दिन और खत्‍म होने के बाद तीन दिन मुझे एक साधारण सैलानी की तरह घूम ने का मौका मिला और अलग-अलग जगहों पर अलग- अलग बातों से स

गांधी की टी-शर्ट तले बस्ती जलाने के गौरव से भरा दिल!

पिछले दिनों राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी का संस्‍मरण हमने अपने पाठकों के लिए छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित किया था. महत्‍वपूर्ण एवं विश्‍व भर में चर्चित कारवां के बाद सुनील कुमार जी, अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में भारतीय मूल के लोगों द्वारा गांधी की 1930 की ऐतिहासिक दांडी-यात्रा की याद में निकाली गई 240 मील की पदयात्रा में भी शामिल हुए। इस पदयात्रा का संस्‍मरणात्‍मक विवरण दैनिक छत्‍तीसगढ़ के अप्रैल अंकों में प्रकाशित हुआ है. टैक्‍स्‍ट आधारित सर्च इंजनों में चाणक्‍य पीडीएफ समाचार पत्रों के आलेखों की अनुपलब्‍धता के कारण हम इस आलेख को ब्‍लॉगर दस्‍तावेजीकरण करते हुए, यहॉं क्रमश: पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्‍तुत है छठवीं किस्त .... गांधी की सोच को लेकर चल रहे दांडी मार्च-2 में तमाम बातें गांधी वादी ईमानदारी और पारदर्शिता की चलती थीं और इसमें शामिल लोग ऐसे ही थे जो कि भारत के सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार देखकर थके हुए थे और भड़ास से भरे हुए थे। ऐसी बातों के बीच जब साथ चल रहे एक सज्‍जन ने गांधी के नारे

अमरीका में बसे तन और भारत की तरफ खिंचे मन के बीच खींचतान

पिछले दिनों राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी का संस्‍मरण हमने अपने पाठकों के लिए छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित किया था. महत्‍वपूर्ण एवं विश्‍व भर में चर्चित कारवां के बाद सुनील कुमार जी, अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में भारतीय मूल के लोगों द्वारा गांधी की 1930 की ऐतिहासिक दांडी-यात्रा की याद में निकाली गई 240 मील की पदयात्रा में भी शामिल हुए। इस पदयात्रा का संस्‍मरणात्‍मक विवरण दैनिक छत्‍तीसगढ़ के अप्रैल अंकों में प्रकाशित हुआ है. टैक्‍स्‍ट आधारित सर्च इंजनों में चाणक्‍य पीडीएफ समाचार पत्रों के आलेखों की अनुपलब्‍धता के कारण हम इस आलेख को ब्‍लॉगर दस्‍तावेजीकरण करते हुए, यहॉं क्रमश: पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्‍तुत है पांचवीं किस्त .... अमरीका के कैलिफोर्निया में कदम-कदम पर भारतीय मूल के लोग दिखते हैं। और हमारे आयोजकों की तरह उनके संपर्क के अधिकांश लोग कम्‍प्‍यूटरों के पेशे से आए हुए हैं। जब वे भारत की दिक्कतों को लेकर वहां रहते-रहते एक आंदोलन छेडऩे की बात सोच रहे थे तो मैं एक तरीके से उनके सामने कई सवा