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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

कचरा टैक्‍स कितना उचित


छत्तीसगढ़ शासन द्वारा हाल ही में नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के द्वारा बनाई गई उप विधि ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं, 2010 को प्रदेश के सभी नगर पालिक निगमों को अंगीकार करने के लिये प्रेषित किया गया है। रायपुर व भिलाई नगर पालिक निगमों सहित कई नगर पालिक निगमों में इस उप विधि को मेयर इन काउंसिल के द्वारा सामान्य सभा में पास करा कर लागू किया जा रहा है। भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी स्थाननीय नगर प्रशासन का मूल कर्तव्य रहवासियों को मूल नागरिक सुविधा उपलव्ध कराना होता है जिसके लिये स्थानीय नगर प्रशासन जनता से न्यूनतम शुल्क लेकर अधिकतम सुविधा मुहैया कराती है। अपने कामकाज के संचालन के लिये विधि में उपलब्ध करारोपण अधिकार के तहत वह अपनी वित्तीय व्यतवस्था करती है। समय-समय पर राज्य सरकार नगर पालिक निगम अधिनियम के प्रावधानों के तहत निगमों में करारोपण के लिये उपविधियों का निर्माण करती है और निगम अपनी सुविधानुसार इसे अंगीकार करती हैं, करारोपण कम या ज्यादा कर सकती है या अस्वीकार भी कर सकती हैं। 

इसी क्रम में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं, 2010 बनाई गई है। इसके अनुसार सरकार के द्वारा निगम क्षेत्रों के लिये जो शुल्क निर्धारित किये गए हैं उसका अवलोकन करते हुए यह स्पष्ट होता है कि वे न्यूनतम कतई नहीं है। इस उपविधि के प्रभाव में लाये जाने के पूर्व भी निगम द्वारा कचरे के निबटान हेतु कार्य किया जा रहा था। यह कार्य सभी नगर पालिक निगम के लिए पर्याप्त था। किन्तु समझ से परे है कि ऐसी क्या आवश्यकता हुई जो जनता के सर पे इस तरह भारी करों का बोझ डालने का निर्णय लिया गया। इसके परिपेक्ष्य में सिंगापुर और मलेशिया यात्राओं का असर मूल है। सरकार सिंगापुर व मलेशिया जैसी स्वच्छ नगरीय निकाय की परिकल्पना कर रही है जहॉं के निवासियों का प्रति व्यक्ति आय साढ़े तीन लाख रूपये प्रति वर्ष है, वहॉं की मूल आर्थिक आधार पर्यटन है और उन्हें अपने नगरों के सौंदर्य पर विशेष ध्यान देना उनकी आवश्यकता है इसलिये वहां साफ सफाई का व्यय अधिक है जबकि भारत में एक सामान्य व्यक्ति को 32.00 रूपये प्रति दिन कमाना भी दूभर है ऐसे में साफ सफाई का पूरा भार उस व्यक्ति पर डाल देना अनुचित है।

यह कर निगम क्षेत्र के अधिसंख्यक जनता के प्रति अतिरिक्त एवं अन्यायपूर्ण है अब निगम क्षेत्र में रहने वाले झ़ुग्गी-झोपड़ी निवासी को भी रू. 720.00 प्रति वर्ष निगम को देना पड़ेगा जबकि उसे मुश्किल से दो वक्त की रोटी मिल रही है। निगम गरीबों के मुह से निवाला छीन कर अपना बजट सुदृढ़ करे यह युक्तिसंगत नहीं है। यदि इस उपविधि को नगर पालिक निगम में लागू किया जाना अत्यावश्यक जान पड़ता है तो भी इतना भारी करारोपण अलोकतांत्रिक है इसके बदले में न्यूनतम राशि नगर पालिक निगमों को तय करनी चाहिए। यद्धपि प्रस्तुत उपविधियों को लागू करने या नहीं करने का स्वैच्छिक अधिकार निगम के पास सुरक्षित है। 

नगर पालिक निगम द्वारा प्रस्तावित सेवा शुल्क अनुसूची के अनुसार 500 वर्ग फिट से कम प्लिंथ क्षेत्रफल वाले निवासियों से रू. 240.00 प्रति वर्ष लिया जाना है। इसी तरह 1000 वर्ग फिट से ज्यादा के निवास भवनों पर 1200.00 प्रति वर्ष निर्धारित है। इसके साथ ही सभी गृहों के लिए सम्पत्ति कर के साथ समेकित कर के नाम से अतिरिक्त रू. 600.00 प्रति वर्ष पूर्व से ही लिया जा रहा है। इस उपविधि के अनुसार प्रस्तावित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर निर्धारित शुल्कों पर भी नजर डालें, ऐसे रेस्टारेंट जिसमें 25 से 50 कुर्सियां हो उसे 12000.00 प्रति वर्ष व 25 से कम कुर्सियों पर 6000.00 प्रति वर्ष इसमें हमारे मुहल्ले के सभी चाय दुकान भी आ जायेंगें। होटल व लाजों पर 12000.00 से 180000.00 प्रति वर्ष करारोपण निर्धारित किया गया है जबकि प्रदेश में होटल व्यवसाय लगभग ठप्प पड़ा हुआ है, सरकार द्वारा प्रदेश में पर्यटन हेतु पर्यटकों के नहीं लुभा पाने के कारण यह जैसे तैसे चल रहे इस व्यवसाय को इस करारोपण से तगड़ा झटका लगेगा। शैक्षणिक संस्थाओं के लिये नियत कचरा टैक्स भी कम नहीं है स्कूल हेतु 60000.00, महाविद्यालय हेतु 24000.00 प्रति वर्ष नियत है। चिकित्सा्लय एवं नर्सिंग होम के लिये 60000.00 से 120000.00 प्रति वर्ष नियत है, दुकान व व्यावसायिक परिसरों हेतु क्षेत्रफल के अनुसार 100 से 500 वर्ग फिट से अधिक पर 1200.00 से 18000.00 प्रति वर्ष एवं व्यावसायिक परिसरों पर 1.50 प्रति वर्ग फिट तय किया गया है जिसके अनुसार शहर के बड़े व्यावसायिक परिसर व शापिंग माल के लिये लाखों रूपये सालाना कचरा टैक्स वसूला जायेगा।

यह सेवा शुल्क मूलत: व्यवसायियों के लिये बहुत भारी है, दुकान, काम्पकलेक्स, रेस्तरां एवं होटल संचालकों के लिये नियत किये गए शुल्क अत्यधिक हैं, रेस्तेरां संचालक अपना कचरा स्वियं ही इकट्ठा करते हैं एवं उसका विधिवत निबटान करते हैं ऐसी स्थिति में उन पर भारी शुल्कों का दायित्व मंदी के इस दौर में व्यावसायिक घाटे का सबब बनने वाला है। इन बढे शुल्कों का भुगतान कर पाने में असमर्थ व्यवसायी के साथ ही साथ इस व्ययवसाय से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़े हजारों अन्य जन पर भी बेरोजगारी का संकट आने वाला है। छत्तीसगढ़ की छवि को व्यावसायिक प्रसिद्धि दिलाने में यहां के व्यावसायिक परिसरों की अहम भूमिका है, आज व्यवसाय से सरकार को अत्यधिक राजस्व लाभ भी प्राप्त हो रहा है। नये उपविधि के तहत् निगम क्षेत्र के वाणिज्यिक परिसरों हेतु नियत रू. 1.50 प्रति वर्ग फिट/ प्रतिमाह का दर भी अनुचित है। निगम क्षेत्र के सभी वाणिज्यिक परिसर कचरा निबटान के लिये अपने निजी संसाधनों का प्रयोग कर रहे है। उन्हें नगर पालिक निगम द्वारा पूर्व से ही सम्पत्ति कर के बढ़े हुए दर पर भुगतान करना पड़ रहा हैं। निगम क्षेत्र के अधिकतम वाणिज्यिक परिसर को परिसर प्रबंधकों नें किराये/पट्टे पर दे रखा है और वर्तमान में उनके पास केवल सार्वजनिक उपयोग के पैसैज व सीढ़ी आदि हैं ऐसे में यदि वाणिज्यिक परिसर प्रबंधन से 1.50 प्रति वर्ग फिट/ प्रतिमाह के दर से शुल्क निर्धारित किया जाता है तो यह उनके लिये भारी होगा। 

प्रस्तावित उपविधि के अनुसार संकलित शुल्क के मद से कचरे के निबटान हेतु किसी ठेकेदार को ठेका दिये जाने का प्रावधान है जबकि निगम के पास पूर्व में ही कचरे के निबटान के लिये अतिरिक्त बजट एवं प्रस्ताव रहा है जिससे पूर्व में ही कचरे का समुचित निबटान सुचारूरूप से होता आया है। इस उपविधि के विरूद्ध हमारी विशेष आपत्ति यह है कि ठेकेदारों के आय में वृद्धि के हेतु से जनता पर यह अतिरिक्ति करारोपण क्यूं किया जा रहा है जबकि कचरे का निबटान के लिये पूर्व से ही योजना एवं व्यह निधारित हैं। इस उपविधि को लागू करने के उद्देश्य से जो नगर पालिक निगमों के द्वारा जो सेवा शुल्को निर्धारित किया गया है वह अव्यवहारिक प्रतीत होता है एवं जल्द बाजी में सरकार के द्वारा नगर पालिक निगम को वित्तीय स्वायत्‍तता देने के उद्देश्य से जनता पर मनमाना करारोपण का अधिकार दे दिया जाना प्रतीत होता है।

नगर पालिक निगम अधिनियम, 1956 की धारा 429 के अनुसार प्रस्तावित उपविधि पर विचार करने के दिनांक से छ: सप्ताह पूर्व दो स्थानीय समाचार पत्र में आशय की सूचना प्रकाशित किया जाना आवश्यक है। इसी तरह उक्त उपविधि की मुद्रित प्रतिलिपि नगर पालिक निगम के कार्यालय में सूचना-पत्र के प्रकाशन के दिनांक से एक माह तक की अवधि के लिए जनता के अवलोकनार्थ रखना भी आवश्यकक है, यदि इन नियमों का पालन नगर पालिक निगमों के द्वारा नहीं किया गया है तो यह उपविधि संज्ञान में लाए जाने पर अप्रभावी मानी जावेगी। विधिवत सूचना-पत्र का प्रकाशन नहीं किये जाने एवं नगर पालिक निगम में उपविधि के मुद्रित प्रति के नहीं रखे जाने के कारण, क्षेत्र की जनता इस पर विधि के अनुरूप आपत्ति या सुझाव भी नहीं दे पा रही है और क्षेत्र की जनता के मौलिक अधिकारों का खुलेआम हनन हो रहा है। जनता को दावा-आपत्ति-सुझाव का अवसर दिये बिना पारित इस उपविधि का कोई संवैधानिक अस्तित्व नहीं है फिर भी उपविधि प्रभावी होने के कगार पर है। इसकी जानकारी नहीं होने के कारण जनता इस उपविधि के विरोध में कोई आवाज बुलंद नहीं कर पा रही है एवं सरकार चुपके चुपके कचरा टैक्स के एवज में पैसा वसूलने का अपना जाल कसते जा रही है।

व्यापक जन हित में ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं, 2010 को सरकार को रद्द करना चाहिए यह जनता के उपर अनावश्यक करारोपण है। हमारा मानना है कि निगम क्षेत्र में सफाई अति आवश्यक है और इसमें हम सबको सहयोग करना चाहिये यह हमारा नैतिक दायित्व भी है किन्तु निगम द्वारा इस दायित्व का सारा भुगतान जनता व व्यवसायियों पर डाला जा रहा है जो कि अनुचित एवं अलोकतांत्रिक है। हमारा सुझाव है कि परिसर में उत्पन्न कचरे की मात्रा के अनुसार कर लिया जाये एवं ठेकेदारों को उसी अनुपात में भुगतान किया जाये। 

संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. सर्वथा अनुचित है...प्रशासन विदेशी फार्मुले को आजमाना छोड़ जमीनी हकिकत को देखते हुए टेक्स लगाय,

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  2. सरकार को अपना हित साधने की बजाय जनता के हितों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए .......जागरूक करता हुआ आलेख

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  3. Very very Nice post our team like it thanks for sharing

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