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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

बांग्लादेश : शतरंज का खेल

शतरंज की बिसात पर कैसे देश व जनता का भाग्य तय होता है, इसे सत्यजीत रे ने अपनी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में सुन्दर ढंग से चित्रित किया है। कुछ ऐसी ही बिसात हकीकत में कूचबिहार के राजा और रंगपुर के नवाब के बीच भी बिछा करती थी, जिसमें अक्सर गांव दांव पर लगाये जाते थे ऐसी बाजियों में कूचबिहार के राजा द्वारा जीते गये कई गांव रंगपुर राज्य के भीतर थे जबकि नवाब द्वारा जीते गये कई गांव कूचबिहार रियासत से घिरे थे। देश जब आजाद हुआ तो कूचबिहार भारत में और रंगपुर पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में शामिल हो गया। ऐसे में चारो ओर से दूसरे देश से घिरे इन गांव में पानी, बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी पहुंचाना किसी भी देश के लिए कठिन हो गया, और ये क्षेत्र विकास से अछूते ही रह गये। राजा व नवाब का शौक न सिर्फ इन ग्रामवासियों पर भारी पड़ा वरन् ये क्षेत्र दोनों देशों के लिए भी 60 सालों तक सिरदर्द बने रहे, जिसे हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा में सुलझाया जा सका।

बांग्लादेश ऐतिहासिक-सांस्कृतिक रूप से भारत का अभिन्न अंग है। बंगाल के पाल षासकों ने पूरे भारतवर्ष पर शासन किया और 1906 ई. में खिलजियों के आने के बाद सत्ता पर मुस्लिमों का प्रभुत्व रहा। मेरे विचार से बंगाल का इतिहास राजनैतिक या धार्मिक आधार पर नहीं वरन् सांस्कृतिक आधार पर लिखना उपयुक्त होगा, क्योंकि यह उस क्षेत्र व समाज का सबसे प्रबल तत्व है। यह बंगलाभाषियों की विषिष्टता है जिसने पूरे इतिहास में समाज को एक सांस्कृतिक इकाई के रुप में एकजुट बनाए रखा और जब भी दिल्ली की सत्ता कमजोर हुई इसने अपने को सांस्कृतिक ईकाई से स्वतंत्र राजनैतिक इकाई बनाने में देर नहीं की।

बंगाल के इतिहास में बैरों-भुईयां (बारह जमींदार) मुझे सबसे दिलचस्प लगता है। यह छोटे शासकों का सैनिक संगठन था जिसने अपनी स्वतंत्रता व सम्प्रभुता के लिए धर्म व जाति से ऊपर उठकर सदियों तक विषाल मुगल साम्राज्य से लोहा लिया। उनकी स्वाधीनता की लालसा व वीरता अपने समकालीन चित्तौड़ के महाराणा प्रताप की ही तरह प्रबल थी जिस कारण वे जननायक के रूप में स्थापित हुए।

सुन्दर वन का रायल बंगाल टाइगर 
अंग्रेजों ने अपने आर्थिक स्वार्थ के लिए कई तरह से बंगाल की सांस्कृतिक एकता को खण्डित करने को कोषिष की, सन् 1905 में जब बंगाल को धार्मिक आधार पर बांटा गया तो भारतीयों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी, पर अंग्रेज जाते-जाते, देष को धार्मिक आधार पर बांट ही गये। यह विचित्र स्थिति थी, क्योंकि सदियों से यह देष अपने तमाम अन्तर्विरोधों के बाद भी एक सामाजिक, आर्थिक इकाई के रुप में सफलतापूर्वक कार्य कर रहा था। पाकिस्तान की स्थिति तो और भी बदतर थी। उसे भारत के दोनों सिरों में दो अलग-अलग भू-खण्ड मिले थे। जिनमें सिवाए धर्म के और कुछ भी समान नहीं था। पर यह विभाजन जमीन का था, दिलों का नहीं। आज भी भारतीय अपने हिस्से के बंगाल को पष्चिम बंगाल कहते हैं जो कि भारत का पूर्वी हिस्सा है और बंगलादेषियों ने भी जब आजादी पाई तो गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के गीत को ही अपना राष्ट्रगान बनाया जिन्होंने भारत का भी राष्ट्रगान लिखा था। वे बंगलादेषी ही थे जिन्होंने कालान्तर में यह साबित किया कि देष के विभाजन का धार्मिक आधार कितना खोखला था।

जब पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरानों ने पूरे देश में उर्दू थोपने की कोशिश की तो बांग्लाभाषी पूर्वी पाकिस्तान में इसके खिलाफ एक बड़ा जन आन्दोलन खड़ा हुआ। जिसे आधार बनाकर शेख मुजीब की आवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की लगभग सभी संसदीय सीटों को जीतकर पाकिस्तानी नेशनल एसेम्बली में बहुमत प्राप्त कर लिया। यह स्थिति पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं को स्वीकार नहीं थी। शेख मुजीब को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए जुल्फिकार अली भुट्टो व जनरल याह्या खान ने देश में मार्शल लॉ लागू कर बंगालियों पर भीषण अत्याचार करने प्रारंभ कर दिये, जिससे डरकर बड़ी संख्या में शरणार्थी भारत आने लगे। जब स्थिति बेकाबू होती चली गयी तब भारत ने ‘‘मुक्ति वाहिनी’’ की अपील पर फौजी हस्तक्षेप किया। जिसकी अन्तिम परिणिति इतिहास का सबसे बड़ा आत्म समर्पण व नये राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश का उदय (दिसम्बर 1971) था।

बांग्लादेश आज स्वतंत्र राष्ट्र है किन्तु यह संसार के सबसे निर्धनतम राष्ट्रों में एक है। गंगा-ब्रह्मपुत्र के उपजाऊ दोआबे में बसा यह राष्ट्र अत्यधिक जनसंख्या से पीड़ित है। अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि और मछली पालन पर टिकी है और देश में खनिजों के अभाव के कारण औद्योगीकरण की संभावना लगभग नहीं है। यद्यपि जहाजों को तोड़कर उससे लोहा निकालने का काम यहाँ औद्योगिक स्तर पर होता है। बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में हाल में गैस की विशाल भण्डारों की खोज हुई है, जो बांग्लादेश की अपनी ऊर्जा जरूरतों से काफी बड़ा है और जिसे बेचकर वह अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है।

नियाजी द्वारा पाकिस्तानी हार की लिखित स्वीकारोक्ति  
बांग्लादेश भारत के राजनैतिक संबंध अच्छे रहे हैं, पर इसमें जमाते इस्लामी लगातार रोड़े अटकाती रहती है। इस पार्टी में मुख्यतः कठमुल्ले में पुराने पाकिस्तानी निजाम के समर्थक है, जो 1971 में भारत से मिली करारी शिकस्त को अब तक भूल नहीं पाये हैं। तीनों ओर भारत से घिरा हुआ यह देश, भारत से दुश्मनी मोल लेकर कदापि प्रगति नहीं कर सकता न ही भारत से दुश्मनी रखने की कोई ठोस वजह ही है। यद्यपि विवाद के कुछ मुद्दे हैं पर उनमें भी बातचीत से हल तक पहुंचा जा सकता है।

भारत-बांग्लादेश में तिस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर विवाद है। बांग्लादेश को आपत्ति है कि भारत, वर्षा ऋतु में फरक्का बैराज को खोल देता है, जिससे उसके यहाँ बाढ़ आ जाती है। जबकि अन्य ऋतुओं में गेट बंद रखने से बांग्लादेश को जल आपूर्ति बाधित होती है। वहीं भारत का तर्क है कि फरक्का चूंकि बैराज है इसलिए उसमें बांधों की तरह बहुत अधिक मात्रा में जल भण्डारण संभव नहीं है अतः वर्षा ऋतु में इसे खोलना उसकी मजबूरी है। जबकि अन्य ऋतुओं में हावड़ा बंदरगाह से गाद साफ करने के लिए उसे अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। इन सभी विवादों के बाद भी दोनों देश इस मुद्दे पर एक समाधान तक पहुँच गये हैं और प्रधानमंत्री के बांग्लादेश दौरे में इस पर समझौता भी हो जाना था पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्तियों के कारण इसे फिलहाल लम्बित ही रखा गया है।

इसके अलावा दोनों देशों के बीच समुद्र में नये बनने वाले द्वीप भी विवाद पैदा करते रहते हैं और भारत बांग्लादेश से चकमा आदिवासियों के विस्थापन व उत्तर पूर्व के आतंकवादी संगठनों को बांग्लादेश से मिल रही मदद पर चिंता जताता रहा है पर इन सभी मुद्दों का हल आपसी बातचीत से निकाला जा सकता है।

बांग्लादेश भारत के लिए खाद्यान्नों, वाहनों, इंजीनियरिंग सामान व अन्य उपभोक्ता वस्तुओं का अच्छा बाजार है। वह अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भी हमारा समर्थक रहा है। हाल ही में ब्रह्मपुत्र पर चीन द्वारा बनाये जा रहे बांधों की श्रृंखला का दोनों देश मिलकर विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे दोनों पर दुष्प्रभाव पड़ना तय है। खासकर बांग्लादेश पर इसका गंभीर असर होगा।
मो. युनुस नोबेल पुरस्कार प्राप्त समाज सेवी 

बांग्लादेश आर्थिक विकास क्षेत्र में भी भारत का साझेदार रहा है हाल ही में वहाँ जिन गैस भण्डारों की खोज हुई है उससे न सिर्फ बांग्लादेश वरन् भारत के बंगाल व उड़ीसा के तटीय क्षेत्रों में भी विकास को बल मिलेगा। बांग्लादेश कोलकाता बंदरगाह से मणिपुर व त्रिपुरा राज्य को जोड़ने के लिए कारीडोर देने के लिए सिद्धान्ततः सहमत हो गया है जिससे इन दोनों राज्यों के विकास में तेजी आयेगी।

दोनों देश एक दूसरे की मदद से अपने विकास में अभी और तीव्रता लाने की ओर अग्रसर हैं। बांग्लादेश का समृद्ध और मजबूत बनना भी भारत के हित में है पर इसके लिए उसे जमाते इस्लामी जैसी फिरकापरस्त पार्टी व हुजी जैसे आतंकवादी संगठनों से कड़ाई से निपटना होगा, जो दंगे-फसाद फैलाकर न सिर्फ देश के विकास को रोक रहे हैं वरन् अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बांग्लादेश की छवि को खराब कर रहे हैं।



विवेक राज सिंह
समाज कल्‍याण में स्‍नातकोत्‍तर शिक्षा प्राप्‍त विवेकराज सिंह जी स्‍वांत: सुखाय लिखते हैं।अकलतरा, छत्‍तीसगढ़ में इनका माईनिंग का व्‍यवसाय है. 
इस ब्‍लॉग में विवेक राज सिंह जी के पूर्व आलेख - 

सभी चित्र गूगल खोज से साभार

टिप्पणियाँ

  1. बड़ा ही गहन आलेख, अंग्रेजों ने जी भर के बाँटा है हमें।

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  2. बढिया जानकारी भरा लेख।
    आभार....

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  3. राहुल सिंह जी की टिपण्णी मेल पर -
    ''सालता रहने वाला घाव''.

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  4. बांग्लादेश को भी यह बात समझ नहीं आती कि भारत के साथ चलने में फ़ायदा ही फ़ायदा है...

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  5. विवाद कहाँ नहीं होते, लेकिन असली बात मंशा की है। कट्टरपंथी सोच हमेशा से विस्तारवाद से प्रेरित रही है।
    आशा है ऐसा ही स्तरीय लेखन आगे भी जारी रहेगा।
    शुभकामनायें।
    एक अनुरोध है - वर्ड वैरिफ़िकेशन डिसेबल कर दीजिये, संवाद सरल हो जायेगा।

    sanjay@mo sam kami se mail par

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  6. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने, ऐसे लेख मुख्य धारा की मीडिया मे नही आते और जनमानस देश के सामने उपस्थिति खतरो और मौको के बारे मे न जान पाने के कारण सरकार पर नीतिगत दबाव नही बना सकता। आगे सतत लेखन करते रहियेगा।
    धन्यवाद

    arunesh c dave

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