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दिसंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

रेल में जागृत जन-मन और बिना टिकट यात्रा करता पत्रकार

कार्यालयीन व व्‍यावसायिक व्‍यस्‍तता के कारण बहुत दिनों से कलम कुछ ठहरी हुई है, फेसबुक और ट्विटर में में मोबाईल के सहारे हमारी सक्रियता भले ही नजर आ रही हो किन्‍तु ब्‍लॉगिंग के लिए समय नहीं निकल पा रहा है। इस बीच मोबाईल गूगल रीडर से पोस्‍ट पढ़े जा रहे हैं और टिप्‍पणियां मुह में बुदबुदा दिये जा रहे हैं। आरंभ सहित मेरे अन्‍य ब्‍लॉग भी नियमित अपडेट नहीं हो पा रहे हैं। छत्‍तीसगढ़ी बेब पोर्टल गुरतुर गोठ के लिये ढेरों रचनायें आई है और उन्‍हें टाईप करने, यूनिकोड परिर्वतित करने या प्रस्‍तुति के अनुसार कोडिंग करने के लिए भी समय नहीं मिल पा रहा है। पिछले दिनों मैंनें अपने एक मित्र से ब्‍लॉगिया चर्चा दौरान जब यह बात कही तो मित्र नें दार्शनिक अंदाज में सत्‍य को उद्धाटित किया कि समय का रोना बहानेबाजी है , दरअसल आप उस काम की प्राथमिकता तय नहीं कर पा रहे हैं, आपके लिये प्राथमिक आपके दूसरे काम है इसलिये आप ऐसा कह रहे हैं। मैंनें इसे सहजता से स्‍वीकारा कि हॉं मेरे लिये प्राथमिक मेरा परिवार और मेरी रोजी रोटी है, बात आई गई हो गई। मित्र की बात दिमाग के किसी कोने में छुपी रही और जब-जब फीड रीडर लागईन हु

इप्‍टा के मित्रों भिलाई में आपका स्‍वागत! स्‍वागत! स्‍वागत!

आकाशगंगा भिलाई से आगाज.. 13th National Convention & Cultural Meet - IPTA

कचरा टैक्‍स कितना उचित

छत्तीसगढ़ शासन द्वारा हाल ही में नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के द्वारा बनाई गई उप विधि ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं, 2010 को प्रदेश के सभी नगर पालिक निगमों को अंगीकार करने के लिये प्रेषित किया गया है। रायपुर व भिलाई नगर पालिक निगमों सहित कई नगर पालिक निगमों में इस उप विधि को मेयर इन काउंसिल के द्वारा सामान्य सभा में पास करा कर लागू किया जा रहा है। भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी स्थाननीय नगर प्रशासन का मूल कर्तव्य रहवासियों को मूल नागरिक सुविधा उपलव्ध कराना होता है जिसके लिये स्थानीय नगर प्रशासन जनता से न्यूनतम शुल्क लेकर अधिकतम सुविधा मुहैया कराती है। अपने कामकाज के संचालन के लिये विधि में उपलब्ध करारोपण अधिकार के तहत वह अपनी वित्तीय व्यतवस्था करती है। समय-समय पर राज्य सरकार नगर पालिक निगम अधिनियम के प्रावधानों के तहत निगमों में करारोपण के लिये उपविधियों का निर्माण करती है और निगम अपनी सुविधानुसार इसे अंगीकार करती हैं, करारोपण कम या ज्यादा कर सकती है या अस्वीकार भी कर सकती हैं।  इसी क्रम में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं,

झमाझम छालीवुड : भुनेश्वर कश्यप

शिखा का हॉट अवतार इंडस्ट्री में शिखा ही एक मात्र ऐसी हीरोइन है, जो हॉट सीन देने में गुरेज नहीं करती।"टूरा रिक्शा वाला", "हीरो नं-०१" और "मैं टूरा अना़ड़ी तभो खिला़ड़ी" के बाद अब सतीश जैन की फिल्म "लैला टीप-टॉप छैला अंगूठा छाप" में हॉट रोल में दिखने वाली है। हालाँकि कुछ समीक्षकों ने इस तरह के दृश्यों की आलोचना भी की है, लेकिन शिखा इसे भूमिका की डिमांड मानती है। शिखा ने इस फिल्म में करण खान के साथ एक से ब़ढ़कर एक भ़ड़काऊ दृश्य दिए हैं। माना जा रहा है कि छॉलीवुड में की यह सबसे गरम दृश्य वाली फिल्म होगी। शुभ बैनर के तले निर्मित यह फिल्म १३ जनवरी को रिलीज होने वाली है। "मैं टूरा अना़ड़ी तभो खिला़ड़ी" में शिखा के जलवे कमाल नहीं दिखा पाए, देखते हैं लैला बनकर वह दर्शकों को कितना खुश कर पाती है। क्षमा "अंगद का पैर" छत्तीसग़ढ़ी फिल्म के कॉमेडियन कम डायरेक्टर क्षमानिधि मिश्रा को इंडस्ट्री में एक नया विशेषण मिल गया है। अंगद का पैर। मिश्रा जी जहाँ भी जाते हैं, कुछ न कुछ जुगा़ड़ कर ही आते हैं। मुंबई गए। वहाँ आमिर खान के साथ "

बांग्लादेश : शतरंज का खेल

शतरंज की बिसात पर कैसे देश व जनता का भाग्य तय होता है, इसे सत्यजीत रे ने अपनी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में सुन्दर ढंग से चित्रित किया है। कुछ ऐसी ही बिसात हकीकत में कूचबिहार के राजा और रंगपुर के नवाब के बीच भी बिछा करती थी, जिसमें अक्सर गांव दांव पर लगाये जाते थे ऐसी बाजियों में कूचबिहार के राजा द्वारा जीते गये कई गांव रंगपुर राज्य के भीतर थे जबकि नवाब द्वारा जीते गये कई गांव कूचबिहार रियासत से घिरे थे। देश जब आजाद हुआ तो कूचबिहार भारत में और रंगपुर पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में शामिल हो गया। ऐसे में चारो ओर से दूसरे देश से घिरे इन गांव में पानी, बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी पहुंचाना किसी भी देश के लिए कठिन हो गया, और ये क्षेत्र विकास से अछूते ही रह गये। राजा व नवाब का शौक न सिर्फ इन ग्रामवासियों पर भारी पड़ा वरन् ये क्षेत्र दोनों देशों के लिए भी 60 सालों तक सिरदर्द बने रहे, जिसे हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा में सुलझाया जा सका। बांग्लादेश ऐतिहासिक-सांस्कृतिक रूप से भारत का अभिन्न अंग है। बंगाल के पाल षासकों ने पूरे भारतवर्ष