आरंभ Aarambha सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

नवंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

संस्कृति के उजले पक्ष के लिए कार्य करें : कोदूराम

संस्कृति के उजले पक्ष के लिए कार्य करें : कोदूराम सुशील भोले छत्तीसगढ़ के एकमात्र शब्दभेदी बाण अनुसंधानकर्ता कोदूराम वर्मा राज्य निर्माण के पश्चात् यहाँ की मूल संस्कृति के विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों से संतुष्ट नहीं हैं। उनका मानना है कि यहाँ के नई पीढ़ी के कलाकारों की रुचि भी अपनी अस्मिता के गौरवशाली रूप को जीवित रखने के बजाय उस ओर ज्यादा है कि कैसे क्षणिक प्रयास मात्र से प्रसिद्धि और पैसा बना लिया जाए। इसीलिए वे विशुद्ध व्यवसायी नजरिया से ग्रसित लोगों के जाल में उलझ जाते हैं। 87 वर्ष की अवस्था पूर्ण कर लेने के पश्चात् भी कोदूराम जी आज भी यहाँ की लोककला के उजले पक्ष को जन-जन तक पहुँचाने के प्रयास में उतने ही सक्रिय हैं, जितना वे अपने कला जीवन के शुरूआती दिनों में थे। पिछले 13 अक्टूबर 2011 को धमतरी जिला के ग्राम मगरलोड में संगम साहित्य समिति की ओर से उन्हें ‘संगम कला सम्मान’ से सम्मानित किया गया, इसी अवसर पर उनसे हुई बातचीत के अंश यहाँ प्रस्तुत है- 0 कोदूराम जी सबसे पहले तो आप यह बताएं कि आपका जन्म कब और कहाँ हुआ?  मेरा जन्म मेरे मूल ग्राम भिंभौरी जिला-दुर्ग में 1 अप्रैल 1924

चीन: ड्रैगन की दुम पर

चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस का प्रसिद्ध कथन है कि ‘‘दूसरों से वैसा व्यवहार न करें, जैसा आप स्वयं के लिए पसंद न करते हो’’ पर आजकल उनके देशवासी याद रखने योग्य सिर्फ कामरेड माओ की उक्तियों को ही मानते है। भारतीय तेल व गैस उत्खनन कम्पनी ओएनजीसी विदेश को वियतनाम के दक्षिण चीन सागर में खनन की मिली अनुमति को चीन के विदेश मंत्रालय ने चीन-वियतनाम के आपसी विवाद में भारत का बेवजह दखल करार दिया है।  उनसे पूछा जाना चाहिए कि कि वैधानिक रूप भारत में शामिल पाक अधिकृत काश्मीर पर चीनी सैनिकों द्वारा बनाये जा रहे काराकोरम राजमार्ग पर उनकी क्या राय है। उनकी राय का पता नहीं, पर लगता है कि भारत ने ड्रैगन की दुम पर पैर रख दिया है और यह भारत सरकार का सोच-समझकर उठाया गया कदम है।  चीन में बुद्ध चीन-भारत के संबंध पिछले कुछ दशकों से तनावपूर्ण अवश्य है पर इतिहास के पन्नों पर ये काफी मधुर रहे हैं। भारतीय सिन्धु घाटी सभ्यता के ही समकालीन चीन की ह्वांग-हो घाटी की सभ्यता थी। भारत के उपगुप्त व अन्य कई बौद्ध भिक्षुकों ने चीन में धर्म प्रचार किया और बौद्ध धर्म सदियों तक चीन का राजकीय धर्म बना रहा। चीन के फाह्यान व हे

भिलाई-दुर्ग साहित्यिक बिरादरी द्वारा श्रीलाल शुक्ल को भावभीनी श्रद्धाँजलि

राग दरबारी के यशस्वी लेखक श्रीलाल शुक्ल (31 दिसम्बर 1925-28 अक्टूबर 2011) के दुःखद् निधन से शोकाकुल भिलाई-दुर्ग के संस्कृतिकर्मियों द्वारा उनके चित्र पर सभी उपस्थितों ने सिंघई विला, भिलाई में 30 अक्टूबर, 2011 को श्रद्धा-सुमन अर्पित किये। जन सांस्कृतिक मंच के संरक्षक व विख्यात समालोचक डॉ. सियाराम शर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न श्रद्धाँजलि व स्मरण सभा में वरिष्‍ठ साहित्यकार डॉ. नलिनी श्रीवास्तव ने स्मृति-दीप प्रज्वलित कर सभा की शुरूआत की। भिलाई इस्पात संयंत्र के पूर्व जनसम्पर्क व राजभाषा प्रमुख अशोक सिंघई  ने सभा का संचालन किया तथा उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुये कहा कि मृत्यु से मात्र दस दिनों पूर्व 45वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से अलंकृत पद्मभूषण श्रीलाल शुक्ल बहुपठ्य लेखक थे। हिन्‍दी भाषा के गद्य के टिकाऊ विकास में उनका योगदान अद्वितीय है। प्रेमचंद द्वारा गढ़ी भाषा को उन्होंने और अधिक विस्तार देते हुये जनोन्मुख बनाया। उन्हें मिले समस्त सम्मान व्यंग्य की धारा को मिले सम्मान व स्वीकृतियाँ हैं। परसाईजी के बाद व्यंग्य विधा में श्रीलाल शुक्ल ने गंभीर काम किया और अपनी वरेण्य वि