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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

प्रो. अश्विनी केशरवानी की कृति बच्चों की हरकतें आनलाईन प्रस्‍तुत

सन् 1980 से 2000 के दो दशक में बच्चों की हरकतों पर भारतीय और विदेशी परिवेश में मनोवैज्ञानिकता के आधार पर प्रो. अश्विीनी केशरवानी जी नें  कई आलेख लिखें हैं। राष्‍ट्रीय पत्रिका धर्मयुग में प्रो. केशरवानी जी की बाल मनोवैज्ञानिक विषयक रचनाएं लगातार प्रकाशित होती रहीं हैं। इसके अलावा इनकी रचनाएं नवनीत हिन्दी डाइजेस्ट और अणुव्रत में भी नियमित छपती रहीं। सर्वोदय प्रेस सर्विस और युवराज फीचर के माध्यम से बच्चों की हरकतों पर रचनाएं देश की छोटी बड़ी सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई और रचनाओं के ऊपर अखबारों में संपादकीय लिखे गए। इस महत्‍वपूर्ण विषय पर प्रो. अश्विनी केशरवानी जी के आलेखों का संग्रह 'बच्‍चों की हरकतें' के नाम से पिछले वर्ष प्रकाशित हुआ था।


'बच्‍चों की हरकतें' में संग्रहित सभी आलेखों की उपादेयता को देखते हुए हमनें अपने पाठकों के लिए एक ब्‍लॉग बनाकर उसमें पब्लिश कर दिया है। प्रो. केशरवानी जी से यह कार्य करने का बीड़ा हमने पिछले वर्ष ही लिया था किन्‍तु समयाभाव के कारण इसे समय पर पूर्ण नहीं कर पाये थे। कल देर रात और आज अलसुबह से लगातार कार्य करते हुए इसे अब आनलाईन प्रस्‍तुत कर रहे हैं।






प्रो. केशरवानी जी की इस कृति को ब्‍लॉग प्‍लेटफार्म देने का आग्रह मेरा था किन्‍तु मेरा अनुभव रहा कि ऐसे कार्यों के लिए अतिरिक्‍त समय की आवश्‍यकता होती है किन्‍तु निजी संस्‍थानों में सेवा देते हुए मेरे पास समय की उपलब्‍धता का ही संकट है। छत्‍तीसगढ़ में घोषित तौर पर मुफ्त में ब्‍लॉगिंग सर्विस देने की मेरी छवि को अब बदलने की आवश्‍यकता है, क्‍योंकि इस ब्‍लॉग सेवा के कारण मेरे बहुत से व्‍यवस्थित कार्य में बाधा पहुच रही है। शेष अगले पोस्‍ट में इस पर विस्‍तार से लिखूंगा ....


संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया ज़नाब!
    इससे प्रो. की कृतियों को पढ़ने का हमें भी अवसर मिलेगा!

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  2. स्वागत योग्य प्रयास ।
    शुभकामनाएं।

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  3. प्रिय भाई संजीव जी ,
    मुफ्त में ब्लागिंग सर्विस भले ही ना दें पर आपका थोड़ा सा समय हमें भी चाहिए होता है बस ये ध्यान रखा जाए :)

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  4. समय की कमी ही एक सबसे बड़ी समस्या है भैया।

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  5. समयाभाव के बावजूद आपने मेरी ‘‘बच्चों की हरकतें‘‘ पुस्तक को आन लाइन प्रस्तुत कियाए इसके लिए हार्दिक आभारी हंू

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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