विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
लोक भाषाओं को देश भाषा मानने वाले अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी से हिन्दी ब्लॉग जगत परिचित है। अमरेन्द्र भाई की मातृभाषा वही है जो रामचरित मानस की भाषा है। साहित्यिक इतिहास के कालखण्डो में अवधी और बृज भाषा नें हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है किन्तु आज ये लोक भाषाये किंचित उपेक्षित सी हो गई हैं। अमरेन्द्र जी देश भाषा अवधी में अवधी डाट इंफो (अवधी कै अरघान) संचालित करते हैं। उनका मानना है कि लोक भाषा को पहचान देने के उद्देश्य में ब्लॉग का एक अहम स्थान है। लोक भाषा छत्तीसगढ़ी में मेरे द्वारा भी एक ब्लॉगमैगजीन गुरतुर गोठ संचालित की जाती है, जो अमरेन्द्र जी जैसे भाषा के शुभचिंतकों के उत्साहवर्धन से कायम है। नेट में अवधी भाषा सहित सभी लोक भाषाओं के उत्तरोत्तर विकास की संभावनाओं पर आशान्वित अमरेन्द्र जी का एक अनौपचारिक साक्षात्कार बरगद डाट ओरआरजी के द्वारा लिया गया है, आइये देखें/सुने और लोक भाषाओं पर कार्य करने वाले सभी ब्लॉगर मित्रों को आशीर्वाद देवें ताकि उनका उनका उत्साह कायम रहे -
अमरेन्द्र और अवधी डॉट इंफो के बारे में जानना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंमधुर लोकभाषाओं को स्वर देने का स्तुत्य प्रयास।
जवाब देंहटाएंAntahstal ko chhuu lene waale prayaas aap log kar rahe hain. Parampitaa parmeshwar aap sabhii ke stutya prayaason ko saphalataa paradaan karein, yahii mangal kaamanaa hai.
जवाब देंहटाएंकरीबी रिश्ता है अवधी और छत्तीसगढ़ी का.
जवाब देंहटाएंसंजीव तिवारी और अमरेन्द्र अपनी-अपनी मातृभाषाओं को अपनी-अपनी समझ के अनुसार समृद्ध करने में लगे हैं। यह बातचीत अच्छी रही। मेरा सुझाव है कि इस बातचीत को टाइप करके भी डाल दिया जाय!
जवाब देंहटाएंइस बातचीत को सुनवाने के लिये शुक्रिया। आभार!
अमरेंद्र भाई का अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम सराहनीय है। वे भावी पीढ़ी के लिये हमारी भाषाई धरोहर को सहेज रहे हैं।
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ...
अवधी मे काम करते रहने के लिए अमरेन्द्र भाई को बधाई।
जवाब देंहटाएंभारतेन्दु मिश्र
all the very best to you..
जवाब देंहटाएंअमरेन्द्र जी का अवधी के प्रति स्नेह अद्भुत है ,वह इस बोली के प्रति इतना समर्पित हैं कि मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि वह अपने निश्छल स्वभाव व सहज अभिव्यक्ति के द्वारा इसे नया आयाम देने में सफल होंगे |मेरी शुभकामनाएँ सदैव उनके साथ हैं |-आशीष पाण्डेय
जवाब देंहटाएंदोस्तों क्या आप जानते हें 4 जून को डेल्ही में बाबा रामदेव इस भ्रस्ताचार के खिलाफ एक आन्दोलन करने जारहे हे अधिक जानने के लिए ये लिंक देखें
जवाब देंहटाएंhttp://www.bharatyogi.net/2011/04/4-2011.html
saadhuvaad!
जवाब देंहटाएंसंजीव जी , बहुत बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंकाफी प्रेरणा तो मैं आप से ही लेता हूँ , आपका छत्तीसगढ़ी के लिए किया जाने वाला उद्योग मील का पत्थर सिद्ध होगा.
करने को बहुत कुछ है, सभी का स्नेह और शुभकामनाएं सहायक हैं, ऐसे ही बनी रहें. इस दृष्टि से जिन सज्जनों ने यहाँ भी भरोसा बढाया है, सभी का आभारी हूँ ..सादर..!!
बहुत बढ़िया और आवश्यक लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंअमरेन्द्र उन बेहतरीन लेखकों में से एक हैं जो बहुत अच्छा व अनूठा कार्य कर रहे हैं , हिंदी ब्लॉग जगत इनका ऋणी रहेगा...
कुछ समय पहले एक लेख अमरेन्द्र पर लिखा था आपकी नज़र है !
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/12/blog-post_09.html
हार्दिक शुभकामनायें !