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जनवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

सतीश जैन की छत्तीसगढ़ी फिल्में - विनोद साव

इन दिनों छत्तीसगढ़ी फिल्मों में प्रेम ( मया ) की बहार है। ये वही बहार है जो हिन्दी फिल्मों में बीते दिनों की बात हो गई है। सुबुक सुबुक वाली बहार। ग्लीसरीनी ऑंसू से भरे नायक नायिकाओं की ऑंखों का सुबुक सुबुक मया। जिसमें कोई कृष्ण कन्हैया जैसा नायक होता था , जो नालायक आवारा किसम का प्रेमी होता था और ‘ मैं हूँ गँवार मुझे सबसे है प्यार ’ जैसा गीत गाते हुए खेत खलिहानों में घूमा करता था किसी शहरी छम्मक छल्लो के इन्तजार में। बाद में विरह के गीत गाकर और फिर खलनायक के साथ पहलवानी दिखाकर मामला सलटा देता था। आजकल छत्तीसगढ़ी फिल्मों में इस तरह का मया पलपला रहा है। अगर 1962 के बाद बनी एक दो छत्तीसगढ़ी फिल्मों को छोड़ दें तो सही मायने में छत्तीसगढ़ी भाषा में फिल्में नये राज्य के गठन के बाद बनकर आयी हैं - बॉक्स आफिस हिट मसालों से भरी हुई रंगीन और झकाझक फिल्में। इस तरह की शुरुवात करने का श्रेय सतीश जैन ले गए हैं जो कभी बॉलीवुड में अपनी किस्मत अजमा चुके है और वहॉं से ढेर सारा अनुभव बटोर कर अब छॉलीवुड में फिल्में बनाने में पिल पड़े हैं। सतीश जैन का यही अनुभव उन्हें छत्तीसगढ़ी फिल्मों के दूसरे निर्माता -

ऐंटरटेन रिव्यू : माटी की सौंधी महक मितान-420

छ त्तीसगढ़ी फिल्मों में परंपरा और संस्कृति को लेकर बुद्धिजीवी हमेशा सवाल उठाते रहे हैं। खासकर पत्रकार तो हर कांफ्रेंस में ‘ संस्कृति-परंपरा ’ वाला एक प्रश्न दागकर डायरेक्टर का कान ऐंठ ही देते हैं। डायरेक्टर भी कहां कम हैं। ऐसे आलोचनात्मक सवालों से बचने के लिए वे फुगड़ी , गिल्ली-डंडा दिखा देते हैं , करमा नाच दिखा देते हैं , इससे ज्यादा हुआ तो एकाध जसगीत भी डाल देते हैं। इस प्रयोग के पीछे डायरेक्टर की पहली मंशा सिर्फ इतनी होती है कि ‘ संस्कृति-परंपरा ’ वाले सवालों का जवाब दिया जा सके , और दूसरी मंशा ऐसे चीजों को पसंद करने वाले थोड़े-बहुत लोग उनकी फिल्म को देखने आएं। समझने की बात यह है कि फिल्मों में ‘ परंपरा और संस्कृति ’ का सवाल इसलिए नहीं है कि आप उसे फिल्म में दिखाकर समाज पर अहसान कर रहे हैं। सवाल इसलिए है कि आप कोई ऐसा चीज तो नहीं दिखाने जा रहे हैं , जो हमारी इस शालीन और सभ्य परंपरा के विपरीत हो। दरअसल , अब तक छत्तीसगढ़ी के ज्यादातर डायरेक्टर यही करते आए हैं कि ‘ संस्कृति-परंपरा ’ चिल्लाने वाले लोग जो कहते हैं , वो फिल्म में रंच भर डाल दें , उसके आगे अपनी मनमाफिक चीजें दिखा दें। कई फ

राजधानी में पारम्‍परिक नाचा के दीवाने

पि छले दिनों रायपुर के एक प्रेस से पत्रकार मित्र का फोन आया कि संस्‍कृति विभाग द्वारा राजधानी में पहले व तीसरे रविवार को मुख्‍यमंत्री निवास के बाजू में नाचा - गम्‍मत का एक घंटे का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है इस पर आपकी राय क्‍या है तो मैंने छूटते ही कहा था कि छत्‍तीसगढ़ की पारम्‍परिक विधा नाचा रात से आरंभ होकर सुबह ' पंगपंगात ' ले चलने वाला आयोजन है जिसमें एक-एक गम्‍मत एक-दो घंटे का होता है , आगाज व जोक्‍कड़ों का हास्‍य प्रदर्शन , जनउला गीत ही लगभग एक-डेढ़ घंटे का होता है तब कहीं जाकर सिर में लोटा  ' बोहे ' परी दर्शकों के पीछे से गाना गाते प्रकट होती है ' कोने जंगल कोने झाड़ी हो ...... ' इसके बाद प्रहसन रूप में शिक्षाप्रद कथाओं का   गम्‍मतिहा   नाट्य मंचन होता है। ऐसे में विभाग के द्वारा इतने सीमित समय में इस आयोजन को समेटने से इसका मूल स्‍वरूप खो सा जायेगा। बात आई-गई हो गई। आ ज राजधानी के आनलाईन समाचार पत्रों के पिछले पन्‍ने पलटते हुए इस कार्यक्रम का समाचार नजर आया तो रायपुर में मित्रों को फोन मिलाया और सिंहावलोकन वाले राहुल सिंह जी से इस सफल आयोज

रंगशिल्‍पी राष्‍ट्रीय नाट्य समारोह - 2010 : आप सभी आमंत्रित हैं