विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
राम मंदिर मामले का फैसला 30 सितम्बर को आ रहा है, इस फैसले के बाद भारत में महाप्रलय आ जायेगा ऐसा टीवी वाले चीख चीख कर प्रचारित कर रहे हैं। हम कल गोरखपुर एक्सप्रेस से इलाहाबाद और वहां से गया जाने वाले थे जहां पांच अक्टूबर तक रूककर सनातन आस्था के अनुसार हमारे मॉं-पिताजी एवं पुरखों का श्राद्ध कर्म करना था किन्तु इन टीवी वालों नें हमारे बरसों के परिश्रम को पल भर में ध्वस्त कर दिया, वे गला फाड-फाड कर कह रहे हैं कि युगों के बाद आ रहा है यह दिन, फलां दिन ये हुआ फलां दिन वो हुआ और कल ये होगा ... टीवी देख-देख कर आज दोपहर से जनकपुरी और अजोध्या (स्वसुराल और मेरेगांव) से फोन पे फोन आ रहे हैं ... परिवार वालों की जिद है कि टिकट कैंसल करा कर कार्यक्रम रद्द कर दिया जाए और विवश होकर मुझे उनकी जिद माननी पड़ी है. ... .... पूरे देश की उत्सुकता हो उस विवाद के फैसले में ..... मेरी तो कतई नहीं ... क्योंकि मुझे विश्वास है न्याय भाईयों के बीच बंटवारा भले करा दे वैमनुष्यता नहीं कराती ..... खैर यह तो सामयिक है ... और भी गम है जमाने में, मेरे ढेरों काम पेंडि़ग पड़े हैं. साथियों मिलते हैं एक लम्बे