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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

16 मोड़ों के सफर में साथ रहे अली भईया

विगत दिनों ब्‍लॉग संहिता निर्माण के लिए देशभर के चुनिंदा ब्‍लॉगरों नें वर्धा में एकत्रित होकर मानसिक मंथन किया जिसकी खबरें पोस्‍टों के माध्‍यम से आनी शुरू हो गई थी और हम वहां नहीं जा पाने का मलाल लिए 10 अक्‍टू. को प्रादेशिक प्रवास पर निकल गए थे, आयोजन स्‍थल से भाई सुरेश चिपलूनकर जी और संजीत त्रिपाठी जी से फोन संपर्क बना हुआ था पर मन वर्धा हिन्‍दी विवि में अटका था। दूसरे दिन हम प्रवास से अपने गृह नगर वापस पहुचे, पूर्व तय कार्यक्रम के अनुसार जगदलपुर से अली भईया दो दिन पहले ही राजनांदगांव आ चुके थे और 11 अक्‍टू. को हम सब ब्‍लॉगरों की सुविधानुसार दुर्ग-भिलाई आने वाले थे।
इस आभासी दुनिया में एक  ब्‍लॉगर दूसरे ब्‍लॉगर से उसके पोस्‍ट और टिप्‍पणियों के माध्‍यम से वैचारिक साम्‍यता से अपने संबंधों की जड़ों की गहईयां तय करता है और संपर्क के माध्‍यमों यथा मेल, फोन आदि के माध्‍यमों से अपने आपसी संबंधों को और प्रगाढ़ बनाते जाता है, अली भईया से मेरा संबंध कुछ इसी तरह से रहा है। मैं उनके पोस्‍टों की गहराईयों में छुपे संदेशों में सदैव डूबता उतराता रहता हूं और मोबाईल वार्ता में बड़े भाई सा स्‍वाभाविक स्‍नेह उनसे पाता रहा हूं, इसलिये उनसे प्रत्‍यक्ष मिलने की इच्‍छा बलवती हो चली थी ऐसे में उनके दुर्ग आने के समाचार से मैं उत्‍साहित रहा। 11 अक्‍टू. की सुबह पाबला जी का फोन आया कि वे आज पुणे जाने वाले हैं अत: अली जी यदि आज आये तो उनसे मुलाकात हो जाती। 11 अक्‍टू. को मेरे संस्‍था प्रमुख भी प्रवास पर थे अत: मुझे काम के बीच में कुछ विश्राम की सहूलियतों की संभावना भी थी, मैंनें कहा आज का ही कार्यक्रम तय करते हैं और मोबाईल घंटियों से पहले अली भईया फिर ललित भईया, शरद कोकाश भईया, बा.कृ. अय्यर भईया, सुर्यकांत गुप्‍ता भईया से चर्चा कर मिलन कार्यक्रम तय कर लिया। मिलन की पूर्वपीठिका एवं मिलन के मजेदार पलों से आप ललित भईया और अली भईया के पोस्‍टों से रूबरू हो गए होंगें। 
11 को सुबह जल्‍दी कार्यालय के लिए निकल पड़ा, चाहता यह था कि किसी भी प्रकार से एक बजे तक भिलाई के छ़टपुट कार्यों को निबटाकर कचहरी चौंक पहुच जांउ क्‍योंकि अली भईया को मैं एक बजे वहां से पिकअप कर अपने घर लाने वाला था, भिलाई में नगर निगम में मुझे कुछ काम था वहां कार्यालय खुलते ही बीस मिनट में काम निबटाकर जैसे ही बाहर निकला तो देखा स्‍थानीय विधायक महोदय भीड़ के साथ मुख्‍य द्वार खड़े थे और दरवाजे को पुलिस नें बंद कर दिया था, मैं कुछ देर इंतजार करता रहा पर दरवाजा 12.00 तक नहीं खुला, विधायक के साथ की भीड़ नारेबाजी करती रही, मेरी धड़कने बढ़ गई। 12.30 को द्वार खुला वहां से मैं औद्योगिक क्षेत्र स्थित विद्युत मंडल के कार्यालय की और बढ़ चला वहां एक दस्‍तावेज उसी दिन जमा करना आवश्‍यक था, फिर कचहरी चौक दुर्ग की ओर सफर में मोबाईल बजते रहे वहां पहुचने में मुझे तय समय में पांच मिनट देरी हुई और अली भईया तब तक नहीं पहुचे थे। उनके आते तक मैंनें इत्‍मिनान से सांस लिया, ऐसा मेरे कार्य व्‍यवसाय में अक्‍सर होता है परिस्थियां मजबूर कर देती हैं समय की पाबंदी को झुठलाने के लिए।
वहां से मेरे घर तक 16 मोड़ों के सफर में गाईड बनते हुए और शाम तक उनके साथ रहते हुए मेरे चेहरे पर अली भईया के साथ होने की खुशी छाई रही, तय कार्यक्रम के अनुसार हम घर में भाभीश्री और मेरी श्रीमती को छोड़कर ब्‍लॉगर्स मीट के लिए वेज रेस्‍टारेंट तृप्ति की ओर प्रस्‍थान करने वाले थे किन्‍तु नानब्‍लॉगरों के लंच बाहर लेने की चाहत के कारण हम सब संयुक्‍त रूप से तृप्ति के लिए निकल पड़े। इसी बहाने भाभीश्री और मेरी श्रीमती से शरद भईया और ललित भाई का परिचय हो पाया, पाबला जी देर से आये इस कारण उनसे उनकी मुलाकात नहीं हो पाई। दोपहर से ललित भईया, शरद भईया, पाबला जी, अली भईया और मेरी आपस में बातें होती रही जो शाम होते तक खत्‍म न हुई, मैं अली भईया के पोस्‍टों पर और कुछ जनजातीय परिस्थितियों पर चर्चा करना चाह रहा था किन्‍तु हम ब्‍लॉग से हटकर आत्‍मीय पारिवारिक बातों में कुछ इस कदर खोए रहे कि इसका ध्‍यान ही नहीं आया। शाम होने पर अली भईया को विदा कहने के मूड में हम नहीं थे किन्‍तु सड़क की हालात और ट्रैफिक की भीड़ को देखते हुए हमने उन्‍हें गले मिलकर विदा किया, बड़े भाई के विशाल हृदय के मेरे दिल से मिलन की धड़कन को आज भी महसूस कर रहा हूं। 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति .

    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  2. bloger meet की आपको बधाई, विवरण के लिए आभार.
    - विजय

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  3. आपके सौजन्य से मैं भी संक्षिप्त सी मुलाकात कर पाया अली जी से

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    बेटी .......प्यारी सी धुन

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  5. अड़बड़ दुरिहा दिखत हे गा फ़ोटो मा घर हां
    मैं त सिरतोन मा भकवा जाए रहितेंव। पूछत-पूछत हलाकान हो जातेवं। बने करे नक्सा देखा देस त।

    जोहार ले दशेला तिहार के बधाई

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  6. बढ़िया मीट संजीव भाई. बधाई.
    दसहरा की ह्रदय से शुभकामनाएं.

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  7. अच्छा हुआ जो उस दिन ब्लाग्स पर चर्चा नहीं हुई वर्ना प्रवृत्तियों पर भी बात होती और दुखी होते रहते ! आत्मीयता के पल जितनें भी ज्यादा हो सकें जी लेना बेहतर है ! आप सभी से मिलकर ऐसा मुमकिन भी हुआ ! अब यही हमारी पूंजी है !


    घर का नक्शा बुक मार्क कर लिया है ! मेरे ख्याल से हर ब्लागर के लिए ये एक शानदार आईडिया है कि वो अपने मित्रों के लिए अपने घर के मोडों का नक्शा ज़ारी करे :)

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  8. ye badhiya mulakat rahi aap logon ki, chalti rahe ye mel-mulakat,

    dash-hare ki badhai aur shubhkamnayein

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  9. बहुत ही बढ़िया विवरण...मिलन की ख़ुशी तो सबके चेहरों से परिलक्षित हो रही थी...(दूसरे ब्लोग्स पर पोस्ट किए फोटोज देख कर )
    पर ये नॉन-ब्लोगर्स को घर पे छोड़ जाने का प्लान क्यूँ...ये तो नाइंसाफी थी :)
    अच्छा हुआ...उनलोगों ने अपनी इच्छा सामने रखी...वरना हम ख़ूबसूरत तस्वीरों से वंचित रह जाते.

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  10. सांप्रदायिक सौहार्द का मिलन. पुलिसवाले के चश्में से देखा.

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  11. इस मेल मुलाकात के बारे में जानकर खुशी हुई। यह पूँजी संभाल कर रखनी होगी।
    अली भाई का नक्शे वाले आइडिया बढिया है।

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  12. मैंने नक्से में गिने तो मोड़ सिर्फ १२ निकले. बाकि के चार कहाँ गए जी ?

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  13. चर्चे हैं भाई चर्चे हैं इस मीट के

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  14. ब्‍लॉगरों का अपना-अपना अन्‍दाजे-बयां भाने वाला है.

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  15. ब्लागर्स परिवार मिलन की नई परंपरा के हम भी कभी लंबरदार बने ऐसी ख़्वाहिश है। आपकी प्रसुति मन को उकसा रही है।

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  16. सबसे मुलाकात कर कहाँ गायब हैं प्रभु?

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  17. यह अच्छा किया घर के रस्ते का नक्शा लगा दिया । वैसे हम तो बिना नक्शे के ही पहुंच गये थे ..

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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