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अक्तूबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

16 मोड़ों के सफर में साथ रहे अली भईया

विगत दिनों ब्‍लॉग संहिता निर्माण के लिए देशभर के चुनिंदा ब्‍लॉगरों नें वर्धा में एकत्रित होकर मानसिक मंथन किया जिसकी खबरें पोस्‍टों के माध्‍यम से आनी शुरू हो गई थी और हम वहां नहीं जा पाने का मलाल लिए 10 अक्‍टू. को प्रादेशिक प्रवास पर निकल गए थे, आयोजन स्‍थल से भाई सुरेश चिपलूनकर जी और संजीत त्रिपाठी जी से फोन संपर्क बना हुआ था पर मन वर्धा हिन्‍दी विवि में अटका था। दूसरे दिन हम प्रवास से अपने गृह नगर वापस पहुचे, पूर्व तय कार्यक्रम के अनुसार जगदलपुर से अली भईया दो दिन पहले ही राजनांदगांव आ चुके थे और 11 अक्‍टू. को हम सब ब्‍लॉगरों की सुविधानुसार दुर्ग-भिलाई आने वाले थे। इस आभासी दुनिया में एक  ब्‍लॉगर दूसरे ब्‍लॉगर से उसके पोस्‍ट और टिप्‍पणियों के माध्‍यम से वैचारिक साम्‍यता से अपने संबंधों की जड़ों की गहईयां तय करता है और संपर्क के माध्‍यमों यथा मेल, फोन आदि के माध्‍यमों से अपने आपसी संबंधों को और प्रगाढ़ बनाते जाता है, अली भईया से मेरा संबंध कुछ इसी तरह से रहा है। मैं उनके पोस्‍टों की गहराईयों में छुपे संदेशों में सदैव डूबता उतराता रहता हूं और मोबाईल वार्ता में बड़े भाई सा स्‍वाभाविक

छत्तीसगढ़ के जन-कवि स्व.कोदूराम 'दलित' की पुण्यतिथि में तीन पीढि़याँ उपस्थित

जनकवि कोदूराम ''दलित'' के ज्‍येष्‍ठ पुत्र श्री अरुण कुमार निगम के द्वारा प्रेषित एक रपट :- छत्तीसगढ़ के जनकवि स्व.कोदूराम 'दलित' की पुण्यतिथि नवागढ़ में स्थित शासकीय स्व.कोदूराम 'दलित' महाविद्यालय में मनाई गई.यह महाविद्यालय काफी वर्षों से नवागढ़ में स्थित है.इस बात की जानकारी दलित जी के परिवार को भी नहीं थी. महाविद्यालय के प्राचार्य , नवागढ़ के नागरिकों तथा विद्यार्थियों को यह नहीं मालूम था कि स्व.कोदूराम 'दलित' कौन है और कहाँ के हैं. जिला चिकित्सालय,दुर्ग के जिला मलेरिया अधिकारी डा. विनायक मेश्राम ने एक दिन नवागढ़ का दौरा करते हुए दलित जी का नाम महाविद्यालय के प्रवेश द्वार पर देखा और उत्सुकतावश महाविद्यालय में जाकर प्राचार्य से मिले और बताया कि दलितजी हमारे बड़े पिताजी हैं. प्राचार्य श्री इतवारीलाल देवांगन बहुत खुश हुए और उन्होंने दलितजी के बारे में विस्तृत जानकारी चाही. डा.मेश्राम ने उनका मोबाईल नंबर लेकर उन्हें आश्वस्त किया कि वे दलित जी के ज्येष्ठ पुत्र अरुण निगम से शीघ्र ही संपर्क कराएँगे. इस प्रकार मुझे अपने पिताजी के नाम पर महाविद्यालय

अरपा पैरी के धार ..... छत्‍तीसगढ़ के पत्रकार इसे अवश्‍य पढें

छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के भव्‍य स्‍थापना समारोह की तैयारियों के बीच समाचार पत्रों के द्वारा राज्‍य के थीम सांग के संबंध में समाचार जब प्रकाशित हुए तो छत्‍तीसगढ़ के संस्‍कृतिधर्मी मनीषियों को खुशी के साथ ही बेहद आश्‍चर्य हुआ। कतिपय समाचार पत्रों के स्‍थानीय पत्रकारों ने प्रदेश के प्रसिद्ध गीत ' अरपा पैरी के धार ... ' के गीतकार के रूप में लक्ष्‍मण मस्‍तूरिहा का नाम छापा। यह भूल कैसे समाचार पत्रों में छपा यह पता ही नहीं चला, एक समाचार पत्र को देखकर दूसरे समाचार पत्र भी यही छापते रहे और अपने प्रादेशिक ज्ञान (अ) का झंडा फहराते रहे, किसी ने भी प्रदेश के संस्‍कृति विभाग या किसी साहित्‍य-संस्‍कृति से जुडे व्‍यक्ति से पूछने की भी जहमत नहीं उठाई। हम इन दिनों कुछ व्‍यस्‍त रहे इस कारण अखबारों को भी पलटकर नहीं देख पाये, हमें इसकी संक्षिप्‍त जानकारी भाई श्‍याम उदय 'कोरी' से दो लाईना चेटियाते हुए हुई और उसके दूसरे दिन व्‍यंग्‍यकार व कवि राजाराम रसिक जी से ज्ञात हुआ कि डॉ.परदेशीराम वर्मा जी नें इस पर अपना विरोध जताते हुए सभी समाचार पत्रों के संपादकों से संपर्क भी किया। कुरमी समाज नें भी इस

सफर में हमसफर के पदचाप की आवाज साथ है

साथियों हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत के आरंभिक दौर से लेकर अभी तक छत्‍तीसगढ़ी माटी की छटा बिखेरने के उद्देश्‍य से प्रथमत: आवारा बंजारा में फिर आरंभ में आलेख प्रकाशित होते रहे हैं। हम अपनी प्रादेशिक सांस्‍कृतिक-परंम्‍पराओं व कला-साहित्‍य के संबंध में अपने ब्‍लॉग में जानकारी परोस कर स्‍वांनंदित होते रहे हैं। भारत व विश्‍व के कोने कोने के हिन्‍दी इंटरनेट पाठक जब हमारी परंपराओं के प्रति उत्‍सुकता जाहिर करते हैं तो हमारा उत्‍साह और दुगना हो जाता है। इसी उत्‍साह से हमने क्षेत्रीय लेखकों-संपादकों के पत्र-पत्रिकाओं, संग्रहों व रचनाओं के ढेरों पन्‍नों को काफी समय देते हुए यूनिकोड कनर्वट किया, टाईप किया और हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में ढेरों ब्‍लॉग पोस्‍ट दर पोस्‍ट बनाकर उसे उन्‍ही के नाम से पब्लिश किया है, जिसकी सूची काफी लम्‍बी है जिसके बावजूद हम अभी भी असंतुष्‍ट हैं। जब भाई लोग अपने पोस्‍टों की संख्‍या के संबंध में ब्‍लॉगिंग परम्‍पराओं के अनुसार पोस्‍ट लिखते हैं तब हमें भी अपने द्वारा पब्लिश पोस्‍टों की संख्‍या को भी जताने-बताने को जी चाहता है :) ..... किन्‍तु अपनी-अपनी खुशी, बड़े ब्‍लॉगर भाई लोग ऐसा करते