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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

रविवार की छुट्टी और गांव की खुशबू के साथ 'फरा' का स्‍वाद, अहा !

आज रविवार छुट्टी का दिन, वैसे तो हमारे जैसे निजी संस्‍थानों में सेवा दे रहे लोगों के लिए महीने के चार रविवार में से एक दो रविवार को ही पूरी तरह से छुट्टी मिल पाती है नहीं तो 'अर्हनिशं सेवामहे (टेलीफोन विभाग का ध्‍योय वाक्‍य)' मंत्र पढ़ते हुए सेवा देना होता है। पूरे सप्‍ताह लगभग सुबह 9 से रात 9 तक कार्यालयीन कार्यो में व्‍यस्‍त होने के बाद घर का कोई भी काम करने का मन नहीं होता, ऐसे समय में मैं तो 'गृह कारज नाना जंजाला' कह कर अपने आप को झूठी दिलासा दिलाता हूं और रविवार को चाहता हूं कि पूरा समय अपने घर परिवार को दू, ताकि इस दिन इस नाना जंजालों को पूरा कर सकूं। इस दिन मित्रों के फोन भी नहीं अटेंड करता क्‍योंकि 'नहीं' ना कहने के कारण मैं अधिकतम बार रविवार को अपने घर की खुशी बर्बाद कर बैठता हूं।
.... पर आज मुझे छुट्टी मिली सुबह कुछ घंटो के लिये और शाम को कुछ घंटो के लिये, शुक्र है, छुट्टी तो मिली, बहुत खुशी की बात है। ............. सुबह इसी खुशी के समय में श्रीमती जी नें छत्‍तीसगढ़ के पारंम्‍परिक व्‍यंजन फरा बनाने की घोषणा कर दी। मेरा छत्‍तीसगढि़या मन प्रफुल्लित हो उठा क्‍योंकि शहरों में रहते हुए ऐसे व्‍यंजन बहुत कम ही बनते हैं। ... तो फरा के लिए रात का बचा हुआ पका चावल (भात) और चांवल आटे को सान कर लोई तैयार कर ली गई और श्रीमती नें मुझे भी फरा बनाने के लिए किचन में आमंत्रित किया, मेरा किचन से बहुत कम नाता रहा है और सच्‍ची कहूं तो मुझे कुकिंग बिल्‍कुल पसंद नहीं है फिर भी आज रविवार का दिन था तो जैसे तैसे मैने दोनों हाथो से कुछ फरा को रूप देकर बाकी को श्रीमती के लिये सौंपकर वापस अपने लैपटाप पे आ गया। श्रीमती नें बाकी लोई से फरा बेलकर, तेल में जीरा, मिर्च का छौंक देकर धनिया आदि डालकर छत्‍तीसगढ़ का यह व्‍यंजन बनाया जिसे हमने पेटभर खाया आप चित्र देखें -
 
फरा हथेली से बेल लिया गया है
 
अब कड़ाही में पकने को तैयार
 
मुझे कुछ ज्‍यादा कड़क चाहिए तो फिर से काली कड़ाही में तली जा रही है
अब तैयार है गांव की खुशबू के साथ फरा
हमने सुना है कि दुर्ग की सांसद सरोज पाण्‍डेय ने पिछले सप्‍ताह अपने दिल्‍ली स्थित निवास में सांसदों को भोज में आमत्रित किया था और छत्‍तीसगढ़ी खाना-खजाना के साथ फरा भी परोसा था। मेरी आकांक्षा पांच सितारा होटलों में इन्‍हें परोसने की है, देखिये ये कब तक हो पाता है।
मुझे भान है कि उपर लिखा गया व्‍यौरा मेरे अनुसार से मेरे पोस्‍ट आईटम के योग्‍य नहीं है फिर भी 'फरा' के संबंध में पाठकों को बतलाने के लिए यह पोस्‍ट पब्लिश कर रहा हूं, क्षमा सहित. ...
संजीव तिवारी  

टिप्पणियाँ

  1. 'फरा' के संबंध में अच्छी जानकारी मिली।

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  2. हीन भावना त्यागें । पोस्ट बहुत काम की है ।

    ट्राई करते हैं फरा !

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  3. अरे का बात हे भैया, मजा आ गे, फरा के बात ला तो पढ़ के.
    अब्बड़ दिन होगे फरा खाए, काले घर माँ फरमाइश करत हवंव फरा खाए बर,
    जइसन दिखत हे फोटो माँ तो बघारे फरा खाए हव आप तो. उसने फरा घलोक खाए करव उहू हा अब्बड़ बने लागथे .

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  4. जय हो फ़रा बनईया देवी देवता के।

    हम फ़ोटो देख के मजा लेवत हन।

    जोहार ले

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  5. फ़रा बनाने में बहुत मेहनत लगती होगी इसीलिये आपको बुलाया होगा :)

    पहली बार सुना नाम "फ़रा", बहुत बढ़िया।

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  6. छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजनों में फास्‍ट फूड, अन्‍न का सदुपयोग, तेल-मिर्च-मसाले का कम इस्‍तेमाल जैसी बहुत सी खासियत है, स्‍वादिष्‍ट तो हैं ही, लेकिन ज्‍यादातर लोगों को 'पुटु' भाता है 'मशरूम' कहला कर. विषयांतर मान सकते हैं, पिछले दिनों हमलोग चर्चा कर रहे थे कि स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद किस तरह वासुदेव शरण अग्रवाल जी ने 'अहर्निशं सेवामहे' जैसे सूत्र और चिह्न निर्धारित करने में भूमिका निभाई थी. आपका यह पोस्‍ट स्‍वादिष्‍ट तो है ही.

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  7. @ मनोज कुमार जी, धन्‍यवाद.

    @ वि‍वेक सिंह जी, कोशिस करता हूं :)

    @ संजीत भाई, हव उसने फरा के जानकारी घलो देना है. :)

    @ ललित भाई, जोहार ले.

    @ विवेक रस्‍तोगी जी, :)

    @ राहुल भईया, बहुत गूढ़ बात कही है आपने, धन्‍यवाद.

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  8. अभी तक चखा नहीं है, इच्छा बलवती हो गयी है।

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  9. ये पोस्ट हम महिलाओं के लिए तो बड़े काम की है....सचित्र विवरण...ट्राई की जा सकती है किसी दिन...शुक्रिया.
    मैने पहली बार इस व्यंजन को जाना...'फरा' यू.पी.में किसी और व्यंजन को कहते हैं...
    वह भी बिलकुल पारंपरिक स्वाद लिए होते हैं..

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  10. मुह मे पानी आ रहा है, जाने कैसे भाभी जी ने फ़रा बनाया है, हमे भी कोरियर कर ही दीजिये। या फ़िर बनाने की विधि सामग्री सहित सही से बताईये. ताकी बना पाये...:} पूछकर....

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  11. फरा के बारे में एक कहानी यहाँ भी है-

    http://nishi-ashish.blogspot.com/2009/04/blog-post.html

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  12. फरा के बारे में जानकारी देती रोचक पोस्ट के लिए आभार.. पर संजीव जी अच्छा लगता अगर आप इसे सिर्फ छतीसगढ़ से नहीं बल्कि मध्य भारत का व्यंजन कहते.. मेरी परदादी जब तक जिन्दा रहीं हमारे यहाँ महीने में एक बार फरा बनते ही थे.. पास पड़ोस में भी.. और इसकी गिनती तो बुन्देलखंडी व्यंजन में भी है.. ये पोस्ट पढके लगता है कि कभी मध्यभारत की बोली-भाषा, पहनावा, खान-पान एक रहा होगा..

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  13. रविवार का आनंद फरा के संग!

    हमारे घर में भी यह बन ही जाता है कभी-कभी
    बढ़िया चित्रमयी लेख

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  14. हमारे यहाँ भी फरा बहुत बनता था मगर अब तो अर्सा बीता खाये हुए..आज यहाँ देखकर याद हो आई. आभार.

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  15. fara ke baare me itani swadisht jankari di abhar.. jee karta hai anguliyan hi chatata rahun

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  16. खाए तेन बने करे , फ़ेर हमन ला ललचाए काबर भाई ? बने करे सुरता देवाय । सुधर लागिस । जय हो ।

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  17. बाऊ जी, नमस्ते!
    बहुत भाया आपका फरा!
    कमाल है, मैंने भी कुछ पकाया है.....
    आशीष
    --
    बैचलर पोहा!!!

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  18. फोटो देखकर मुंह में पानी आ गया। एक नए डिश से अवगत कराने के लिए शुक्रिया। इसे फाईव स्टार होटल में परोसने की आपकी आकांक्षा जरूर पूरी हो। इसके लिए मैं भी दिल से दुआं करता हूं।

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  19. फोटो देखकर मुंह में पानी आ गया। एक नए डिश से अवगत कराने के लिए शुक्रिया। इसे फाईव स्टार होटल में परोसने की आपकी आकांक्षा जरूर पूरी हो। इसके लिए मैं भी दिल से दुआं करता हूं।

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  20. फोटो देखकर मुंह में पानी आ गया।

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  21. आपका लेख अच्छा लगा
    .धन्यवाद
    * पोला त्योहार की बधाई .*

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  22. क्या बात है ? किचन में सहयोग की कहानियां सुनाई जा रही हैं :)

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  23. भैया गौरव डहर ले आप मन ला अउ ऐ फरा के बनईया हमर भउजी ला गाडा गाडा परनाम हे...
    आप मन के फरा ला देख के सिरतोन जी ललचागे फेर एखर संग पताल के चटनी होतीस ता फरा के हा सुवाद अउ बढ़ जातिस............आप मन हा हमर संस्कृति जेन हा नंदात जात हे ओला जीवित रखे प्रयास करे हवाव ओखर बर में आप मन ला जोहर देवत हव अउ मोर ब्लॉग में मार्गदर्शन करे के बिनती करत हव !!
    आपे मन के, गौरव

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  24. .
    mouth watering dishes. I have enjoyed phara and batti in my childhood. After my mother's demise, I never got to taste it.

    Your post made me nostalgic.

    Writing this comment with tears in eyes.

    zealzen.blogspot.com

    ZEAL
    .

    जवाब देंहटाएं
  25. वा संजीव भईया, ए कुर कुर फरा देख के तो मुहुँ हा पनिया गे जी. यहा ठेठरी-खुर्मी के दिन म घलोक भौजी हर फरा बनाए के बेरा निकाल डारिस. फोटो म अतका सुग्घर अउ गुरतुर दिखत हे के दू -तीन ठन ल उठाय के मन होगे.

    जवाब देंहटाएं
  26. वाह संजीव भाई , गरम गरम फरा और मिरचा के चटनी के सुरता दिला के मुंह म पानी आ गए... दिल्ली म मोमोस खा खा के अतका गे हव ... फरा के फोटो देख के मुह ले लार चूचुवागें

    जवाब देंहटाएं
  27. अद्भुत व्यंजन लग रहा है यह फरा। बनाना भी आसान ही लगता है। इसके लिए अब श्रीमतीजी को रात थोड़ा ज्यादा चावल बनाने के लिए कहता हूँ। प्रयोग के बाद आपको सूचित करता हूँ :-)

    जवाब देंहटाएं

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