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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

सुप्रसिद्ध साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध की पत्नी श्रीमती शांता मुक्तिबोध का निधन

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में जनसंचार विभाग में रीडर एवं विभागाध्यक्ष संजय द्विवेदी जी नें अपने ब्‍लॉग चिंतन-शिविर में अभी कुछ समय पूर्व ही यह दुखद समाचार दिया है कि सुप्रसिद्ध साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध की पत्नी श्रीमती शांता मुक्तिबोध का गुरुवार की रात रायपुर में निधन हो गया. 88 वर्ष की शांता मुक्तिबोध लंबे समय से अस्वस्थ चल रही थीं.
1939 में गजानन माधव मुक्तिबोध के साथ प्रेम विवाह करने वाली शांता जी ने मुक्तिबोध जी के हर सुख-दुख में साथ निभाया. गजानन माधव मुक्तिबोध के निधन के बाद उन्होंने अपने बच्चों का लालन-पालन और बेहतर शिक्षा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. शांता जी के बेटे दिवाकर मुक्तिबोध देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं, वहीं गिरीश मुक्तिबोध भी पत्रकारिता से संबद्ध हैं. रमेश मुक्तिबोध और दिलीप मुक्तिबोध ने गजानन माधव मुक्तिबोध की अप्रकाशित कृतियों का संपादन किया है।
गजानन माधव मुक्तिबोध जी की कविता के साथ श्रीमती शांता मुक्तिबोध को हमारी श्रद्धांजली.....

मृत्यु और कवि

घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर
व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर
है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती,
जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर
बहुत संकुचित छोटा घर है, दीपालोकित फिर भी धुंधला,
वधू मूर्छिता, पिता अर्ध-मृत, दुखिता माता स्पंदन-हीन
घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, कवि का मन गीला
"ये सब क्षनिक, क्षनिक जीवन है, मानव जीवन है क्षण-भंगुर" ।

ऐसा मत कह मेरे कवि, इस क्षण संवेदन से हो आतुर
जीवन चिंतन में निर्णय पर अकस्मात मत आ, ओ निर्मल !
इस वीभत्स प्रसंग में रहो तुम अत्यंत स्वतंत्र निराकुल
भ्रष्ट ना होने दो युग-युग की सतत साधना महाआराधना
इस क्षण-भर के दुख-भार से, रहो अविचिलित, रहो अचंचल
अंतरदीपक के प्रकाश में विणत-प्रणत आत्मस्य रहो तुम
जीवन के इस गहन अटल के लिये मृत्यु का अर्थ कहो तुम ।

क्षण-भंगुरता के इस क्षण में जीवन की गति, जीवन का स्वर
दो सौ वर्ष आयु होती तो क्या अधिक सुखी होता नर?
इसी अमर धारा के आगे बहने के हित ये सब नश्वर,
सृजनशील जीवन के स्वर में गाओ मरण-गीत तुम सुंदर
तुम कवि हो, यह फैल चले मृदु गीत निर्बल मानव के घर-घर
ज्योतित हों मुख नवम आशा से, जीवन की गति, जीवन का स्वर ।

टिप्पणियाँ

  1. हमारी ओर से श्रद्धा सुमन !

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  2. दो सौ वर्ष आयु होती तो क्या अधिक सुखी होता नर

    मूल प्रश्न अब यही रहेगा,
    जीवन का उद्बोध कहेगा ।

    दिवंगता को श्रद्धान्जलि ।

    जवाब देंहटाएं
  3. वैसे भी एक बुजुर्ग का जाना एक इतिहास का अंत होता है, उसमें यदि बुजुर्ग साहित्य से जुड़ा हो तो उसका जाना बहुत बड़ी सामाजिक धरोहर की क्षति होती है।

    जवाब देंहटाएं
  4. एक युग समाप्त हुआ . अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

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  5. हमारी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि!

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