विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
मुंबई के फिल्म निर्माता बिस्वजीत बोरा नें ब्रिटिश नृवंशविज्ञानी पद्म भूषण डॉ. वेरियर एल्विन पर एक वृत्तचित्र बनाया है। फिल्म में बतलाया गया है कि वेरियर एल्विन नें निस्वार्थ समर्पण के साथ इस देश के मूल निवासियों की सेवा की है. फिल्म की अवधि 45 मिनट है.इस फिल्म का प्रोमों छत्तीसगढ़ के अधोवस्त्र विहीन आदिवासी बालाओं के चित्रों के साथ इस प्रमोशनल वेब साईट में उपलब्ध है। इस फिल्म के संबंध में अतिरिक्त जानकारी यदि आपके पास हो तो कृपया हमें भी बतलांए।
[ संजीव भाई मानव विज्ञानी की तर्ज़ पर नृवंशविज्ञानी से काम चलेगा ]
जवाब देंहटाएंहमें तो फिल्म की ही जानकारी नहीं थी ,अब ज़रा प्रोमों देखें कि क्या कह रहे हैं वे ?
@ धन्यवाद अली भईया, सुधार कर दिया है।
जवाब देंहटाएं... शानदार पोस्ट!!!
जवाब देंहटाएंफिल्म देखने के बाद पता चलेगा कि कितना न्याय हुआ है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया !
जवाब देंहटाएंइस वृत्त-चित्र को देखने की जिज्ञासा और उत्कंठा दोनों में रफ़्तार गयी आप का लेख पढ़ कर!
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