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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

ललित शर्मा जी दिल्‍ली में ........

दिल्‍ली से आ रही खबरों के अनुसार ललित शर्मा जी पुरानी दिल्ली रेल्वे स्टेशन पर देखे गए है ......  पाबला जी का मोबाईल आउट आफ कवरेज बता रहा है ....... क्‍या हो रहा है दिल्‍ली में जो दिग्‍गज ब्‍लॉगर दिल्‍ली कूच कर रहे हैं.

टिप्पणियाँ

  1. गोपनीय बात बता रहा हूँ ये लोग हैक कर लिये गए हैं.

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  2. आप लोग मेरी वजह से ब्लागर मीट में आने का कार्यक्रम न छोड़े. वह तो अविनाश वाचस्पति साहब ने ही अपनी पोस्ट में लिखा था कि जलजला मौजूद रहेगा इसलिए मैं दिल्ली पहुंच गया था. अब लौट रहा हूं. आप सभी लोग लाल-पीली-नीली जिस तरह की टीशर्ट संदूक से मिले वह पहनकर कार्यक्रम में पहुंच सकते हैं.
    यह दुनिया बड़ी विचित्र है..... पहले तो कहते हैं कि सामने आओ... सामने आओ, और फिर जब कोई सामने आने के लिए तैयार हो जाता है तो कहते हैं हम नहीं आएंगे. जरा दिल से सोचिएगा कि मैंने अब तक किसी को क्या नुकसान पहुंचाया है. किसकी भैंस खोल दी है। आप लोग न अच्छा मजाक सह सकते हैं और न ही आप लोगों को सच अच्छा लगता है.जलजला ने अपनी किसी भी टिप्पणी में किसी की अवमानना करने का प्रयास कभी नहीं किया. मैं तो आप सब लोगों को जानता हूं लेकिन मुझे जाने बगैर आप लोगों ने मुझे फिरकापरस्त, पिलपिला, पानी का जला, बुलबुला और भी न जाने कितनी विचित्र किस्म की गालियां दी है. क्या मेरा अपराध सिर्फ यही है कि मैंने ज्ञानचंद विवाद से आप लोगों का ध्यान हटाने का प्रयास किया। क्या मेरा अपराध यही है कि मैंने सम्मान देने की बात कही. क्या मेरा यह प्रयास लोगों के दिलों में नफरत का बीज बोने का प्रयास है. क्या इतने कमजोर है आप लोग कि आप लोगों का मन भारी हो जाएगा. जलजला भी इसी देश का नागरिक है और बीमार तो कतई नहीं है कि उसे रांची भेजने की जरूरत पड़े. आप लोगों की एक बार फिर से शुभकामनाएं. मेरा यकीन मानिए मैं सम्मेलन को हर हाल में सफल होते हुए ही देखना चाहता हूं. आप सब यदि मुझे सम्मेलन में सबसे अंत में श्रद्धाजंलि देते हुए याद करेंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा. मैं लाल टीशर्ट पहनकर आया था और अपनी काली कार से वापस जा रहा हूं. मेरा लैपटाप मेरा साथ दे रहा है.

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  3. ललित शर्मा जी से बात करने के इच्‍छुक शुद्ध तीन घंटे बाद मेरे फोन पर फोन लगाएं, न एक मिनिट पहले और न एक मिनिट बाद। जय ब्‍लॉगिंगाबाद।

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  4. बेनामी23 मई, 2010 09:38

    काली टोपी और लाल रूमाल तो सुना था ये काली कार और लाल टी शर्ट वाला मामला!?

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  5. कुमार जलजला
    मेरा तुमसे कोई व्यक्तिगत बैर नहीं है...बात सिर्फ उसूलों की है...तुम्हारी टिप्पणियों से साफ़ है कि कुछ भी हो तुम्हारे लेखन में प्रवाह है, बांधने की ताकत है...फिर तुम क्यों पहचान छुपा कर ये सब कर रहे हो...सबसे पहले अपना ब्लॉग बनाओ और वहां से अपनी बातें सबके सामने रखो...फिर कोई वजह नहीं कि तुम पर कोई ऊंगली उठाए...लेकिन पहचान छुपा कर टिप्पणियों के माध्यम से भ्रम फैला देना, मेरी नज़र में सर्वथा अनुचित है...ये तुम भी सही मानोगे कि किसी दूसरे पर तुम्हारी वजह से आंच न आए...फिर क्यों ये कहकर कि मैं मीट मे रहूंगा और कोई मुझे पहचान भी नहीं पाएगा...इससे तो मीट में पहुंचने वाले हर शख्स को परेशानी होती अलग और विवाद को न्यौता मिल जाता अलग...तुम अपना ब्लॉग बनाओ, फिर सबसे पहले तुम्हारा स्वागत करने वाला मैं हूंगा...

    जय हिंद...

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  6. संजीव भाई लखनऊ वालो ने तो पाबला जी को सरपरस्त बना ही लिया है अब देखे दिल्ली वाले क्या करते है आज :)

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  7. भाई साहब बोले थे कि वो कानपुर भी जा रये हैं
    इलाहबाद भी हो आना गुरु, पर घर वापस ज़रूर आ जाना ये नहीं कि अठारवीं

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  8. बेनामी24 मई, 2010 03:09

    इ ल्यो चमचागिरी

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